पीसी माय / धनन्जय मिश्र

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बदलाव संसार रोॅ एक शाश्वत सत्य रूपी ऐन्हों चक्र छेकै जै में भगवानों जबेॅ नै बचैला पारै छै तॉ हमरा सिनी नरी लोगों रोॅ की बिसात छै। दिन जबेॅ बीती जाय छै तॉ हौ दिनों रोॅ लेली आदमी रोॅ ममता शायद बहा रहै छै, जेकरा से बीतलो काल कैय्होॅ पुरानोॅ नै होय छै। हम्में भी बीतलो काल रोॅ बड्डी कायल छियै, कैन्हें कि जबेॅ हौ स्मृति मानस पटल पर आवै छै तॉ चलचित्र नांकी एक-एक दृश्य साकार होय लागै छै।

पीसी माय रोॅ स्मृति आय तक हमरोॅ मानस पटल पर ताजा छै। हुनको दिलों में हमरा लेली एतना प्रेम आरोॅ ममता भरलो रहै जेकरोॅ कोय सानी नै रहै। हुनी ममता आरोॅ त्याग रोॅ साक्षात प्रतिमूर्ति रहै। हुनको सौंसे जीवन त्याग, तपस्या आरोॅ बिपदा सें ही भरलो रहै, कैन्हें कि हुनी बाल-विधवा जे रहै। हुनी जीवन भर विधि लेख केॅ स्वीकार करी केॅ आपनोॅ निष्कलंक आचरण रोॅ मिशाल बनलो छेलै। हुनकोॅ सौंसे ज़िन्दगी एक आह छेलै, आरोॅ वहा आह हमरोॅ याद रोॅ भी आह आय तक बनलोॅ छै।

हमरा याद छै कि जहिया सें हम्में होश संभालने छियै तहिया सें हुनका रंगीन साड़ी पिन्हलोॅ आरोॅ आपनोॅ माथा रोॅ बाल बान्हलोॅ नै देखने छियै। देखने छियै तॉ सिरिफ यहाँ कि हुनी लम्बी छरहरी श्यामल गौरवर्ण सौंसे देह उजरोॅ साड़ी उजरोॅ बाँही तक ब्लौजोॅ सें झॉपलों ढकलोेॅ लाजोॅ आरोॅ दुःखों से भरलोॅ उत्तरदायित्व लेलोॅ आशमान सें उतरली एक फरिस्ता लागै छेलै। हुनकोॅ नाम कहियो नै खतम होय बाला 'अजनासो देवी' रहै, जिनका हम्मी नै सौंसे गामों रोॅ लोगे ने प्यार से 'बड़का दीदी' कहै छेलै। हुनी हमरोॅ दादा लोकनाथ मिसर रोॅ सात संतानोॅ में सबसे बड़ो संतान छेलै। हुनी समाजोॅ केॅ कूप्रथा रोॅ शिकार होलो छेलै। जे उमर बच्चा बुतरू रोॅ खेलै-कुदै आरोॅ पढै रोॅ रहै हौ दस सालोॅ रोॅ उमरोॅ में ही हुनको बियाह होय गेलोॅ रहै आरोॅ साले दू सालोॅ में हुनी बिधवौह होय गेलो रहै। दामपत्य जीवन की होय छै की हुनी हौ उमरी में बुझने होतै है बात तॉ सिरिफ दैभै बताय लॉ पारेॅ।

हमरा याद छै कि हमरो बापे ने हमरा बतैने रहै कि जबेॅ बड़का दीदी के पति रोॅ मरैरोॅ खबर हुनी सुनने छेलै तेॅ घरोॅ भरी में कन्ना रोहट होलो छेलै। मतुर हुनी स्थिर छेलै, कैन्हे कि हुनी बुझैल नै पारने छेलै कि घरोॅ रोॅ लोग कैन्हें कानै छै। जबेॅ हुनकोॅ हाथोॅ रोॅ चुड़ी भांगीं के सीथी रोॅ सिन्दूर धोने रहै तबेॅ ही हुनी जानलकै कि हम्में विधवा होय गेलीयै आरोॅ तहियाय सें हुनको जीवन स्थिर छेलै, आरोॅ हुनी आपनोॅ जीवन रोॅ दिशा मोड़ी केॅ धर्म-कर्म, पर्व, त्योहार, तपस्या-उपवास में लगाय केॅ धर्म-परायणता रोॅ प्रतिमूर्ति बनी गेलै रहै। हुनको जीवन दुःखो रोॅ लोर सें भरलोॅ कटोरी छेलै।

हमरो यादोॅ रोॅ भरलो परत दर परत खुलते गेलै आरोॅ हौ परतोॅ रोॅ पार हम्में देखलियै कि हमरो पीसी माय हमरा लेली बचपन में पालने-पोसने बाली हमरो माय ही छेलै। हुनकोॅ आँचल हमरोॅ लेली ममता स्नेह रोॅ भरलो आकाशगंगा छेलै। हमरोॅ माय ने तॉ सिरिफ हमरा जनम देने रहै, मतुर पीसी माय तॉ यशोदा मैया बनी केॅ हमरा उबारी लेने रहै। हुनकोॅ आँखों रोॅ एकतारा में हमरोॅ लेली भरलो अगाध ममता इकट्ठा रहै छेलै जेकरा में हम्में हरदम नहाय छेलियै। हम्में बचपनों मेंएक दाफी भयंकर न्युमोनियाँ ज्वर से ग्रसित होलोॅ छेलियै। गाँव घरोॅ रोॅ नीम-हकीम बैध्यों सें जबेॅ हमरोॅ हालत बिगड़ी गेलोॅ रहै। बचै रोॅ आश खतम होय रहलोॅ रहै, तॉ वही समय हमरोॅ पीसी माय हमरा लैके बिना केकरो सें पुछने भागी केॅ आपनो बहिनी घोॅर सबोरोॅ से रोजे पैदल आबी केॅ भागलपुर केॅ हौ समय रोॅ नामी शिशु रोग विशेषज्ञ डॉॉ 'कातो बाबु' से इलाज कराय केॅ हमरा प्राणदान देने छेलै। हौ ऋण कि हम्मंे कहियौह हुनका चुकाय लॉ पारवै? आरोॅ भाग्य रोॅ है रं विडम्बना होलै कि जवॉ हम्में जवान होयकॉ कमाबे लागलियै तॉ हौ बेचारी ही स्वर्ग सिधारी गेलै प्रेम रोॅ बिरासत हमरोॅ पास छोड़ी केॅ। जे प्रेम हमरा लेली निराकार आरोॅ भावनात्मक रहै। हुनका गुजरला रोॅ बाद हौ प्रेम आबेॅ हमरा कहाँ मिलतै। है सोची केॅ आय भी हमरोॅ आँखी सें लोर भरभराय केॅ गिरी जाय छै।

आय भी पीसी माय रोॅ पवित्र याद हमरो लेली चलते-फिरते एक चलचित्र छेकै। हौ चलचित्र रोॅ तस्वीर हमरा है दिखलाय छै कि बचपनों में हम्में हुनका सें कोनों बात मनवाय लेली पहिने तॉ खुब कानै छेलियै। तभियो गर बात नै बनै छेलै, तबेॅ हम्में आपनोॅ दोनों हाथों से हुनको दोनों गोढ़ छानी लै छेलियै। बात मनवाय में हम्में कहियौह मार खाय केॅ सफल होय छेलियै। असफलता रोॅ तॉ वहाँ कोनों बाते नै रहै छेलै। हुनी धर्म-कर्म रोॅ तॉ साक्षात साध्वी छेलै। हेकरोॅ नतीजा है होय छेलै कि हुनी हर लागै बाला चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, कार्तिक पूर्णिमा, माघी पूर्णिमा, भदवी पूर्णिमा में गंगा स्नान करै लेली रेलगाड़ी सें भागलपुर रोॅ बरारी घाट, कहियों बुढ़ानाथ घाट जैतै छेलै आरोॅ हुनका साथै हम्मु लागले रहियै। भागलपुर टीसन सें सटलोॅ देबी बाबु धर्मशाला में आपनोॅ गाँव-घरोॅ रोॅ सहयात्री साथै रात्री विश्राम होय छेलै। राती घरोॅ सें लानलोॅ चुड़ा, मुढ़ी, बुटो रोॅ औकुरी, तेल, नोन, अचार साथे कुछछु सामग्री दोकानोॅ सें किनी के खाय में हौ आनन्द लागै छेलै जेकरोॅ कोय वर्णन नै छै। हम्में कखनु चोराय केॅ हिम्मत करी केॅ धर्मशाला सें निकली केॅ टीसन डरलो-डरलो जाय केॅ आरोॅ तुरत वहाँ से फेरू है सोची कॉ लौटी आबै छेलियै कि कॉही हम्में हेराय नै जइयो या कोय हमरा पकड़ी के लै नै भागी जाय। लौटी कॉ आबी केॅ है बात हम्में पीसी माय केॅ बतैय्यो दै छेलियै। हौ पर हुनी हमरा आपनोॅ छाती से लगाय कॉ ममता रोॅ एक-दू धुमक्का लगाय केॅ सुताय दै छेलै। हम्में हुनको धड़कन आरो प्राण छेलियै। फेरू हुनी अनरझपके भोरोॅ में उठी केॅ रास्ता भर गीत-नाद गैने गंगा स्नान करै छेलै। यही क्रम में हुनी आरोॅ विशेष अवसरोॅ पर चाहे रथ-यात्र रहे, मकर संक्राति या महा शिवरात्री रहेॅ वहाँ जैतै रहै छेलै।

हमरो यादोॅ रोॅ चलचित्र घुमी रहलो छै। वहीं तस्वीरोॅ रोॅ बीचों में एक तस्वीर है कहै छै कि एक दाफी पीसी माय आपनोॅ मझला भाय स्वतंत्रता सेनानी सहदेव मिसर आरोॅ गामों रोॅ दू-तीन धर्मपरायण आदमी साथे स्वामी बद्रीनाथ आरोॅ केदारनाथ धामोॅ रोॅ यात्र लेली कार्यक्रम बनैने रहै। हौ समय बद्रीनाथ आरोॅ केदारनाथ धामोॅ रोॅ यात्र बड़ा दुरूह आरोॅ कष्टप्रद मानलो जाय छेलै। जंगल से भरलो पहाड़ी रास्ता। रास्ता रोॅ बीचोॅ-बीचोॅ में बड़का-बड़का पथ्थर रोॅ स्खलन केॅ सम्भावना बराबर बनलोॅ रहै छेलै। होकरा पर हिंसक पशु-पक्षी रोॅ खतरा, रास्ता रोॅ नीचे सौ दूसौ फीट गहरी खाई यात्र केॅ आरोॅ भयंकर बनाय छेलै। लोगों रोॅ मानना रहै कि हौ धामों रोॅ यात्र के बीचों में जे यात्री रोॅ मौत होय जाय छै हौ यात्री सीधे स्वर्ग चल्लो जाय छै, आरोॅ जे बची केॅ घुरी आबी जाय छै हौ समाज में धर्मात्मा कहलाय छै, आरोॅ मरला पर हुनका भी स्वर्ग मिलै छै। यहाँ सोची कॉ समाज रोॅ कत्ते नी स्त्राी-पुरूष है धामोॅ रोॅ यात्र करैला दुःखोॅ-धरकनोॅ से ही सही मतुर तैयार रहै छेलै। बलुक आय है यात्र बहुत्ते आसान होय गेलोॅ छै।

हमरा सें छिपाय कॉ यात्र लेली सब तैयारी होय रहलो रहै, मतुर हमरा सें की है तैयारी छिपैलॉ पारलै? हम्में जबेॅ है बातोॅ कॉ जानलियै तॉ पीसी माय (बड़का दीदी) साथै हम्मु जैबोॅ रोॅ जिद पकड़ी कॉ आफत मचाय देलियै। हमरा मनाय लेली कत्ते रं रोॅ प्रलोभन मीट्ठो-मीट्ठोॅ बहलाय रोॅ बात पीसी माय साथे हमरॉ बापौ कहै छेलै, मतुर हमरोॅ एक्के जिद रहै कि तोरा सिनि साथे हम्मु जैबे करभोॅ। हेकरोॅ नतीजा है होलै कि दू दिन तक हम्में कानते-कपसते रहलियै। खाना-पीना बंद। आँख फूली कॉ कुप्पा होय रहलोॅ रहै। सब अबाक रहै। हमरो हालत देखी कॉ पीसी माय रोॅ करेजोॅ फाटी रहलो छेलै। फेरू पीसी माय रोॅ आदेश होलै कि तोहे आबे आरोॅ काने नै हमरा साथे तहूँ जैइहैैं। है सुनि कॉ हम्में सामान्य भै गेलियै। बात है छेलै कि हुनका सिनी एक गुप्त मान्त्राणा करलकै कि सुलतानगंज (गंगाधाम) तक हेकरा साथे लै जइबै आरोॅ सुलतानगंज टीसनों में हेकरा मिसरपुर बाली छोटकी पीसी माय (कारो दीदी) रोॅ सुपूर्द करी देबै आरोॅ हुनी हमरा लैकेॅ मिसरपुर चल्ली जइतै।

अक्षरतः वहॉ होलै। हम्में हुलासो सें सभ्भे साथे रेलगाड़ी पर चढ़ी केॅ इतराय रहलो छेलियै। सुलतानगंज जैतें-जैतें हम्में कखनी सुती गेलियै हमरा कुछछु पता नै चललै। हमरा पता तबॉ चललै, जबॉ हम्में मिसरपुर पहुँची गेलियै। फेरू हमरोॅ वहॉ भी कन्नारोहट शुरू छेलै, मतुर वहाँ रं-रं रोॅ मनोरंजन साधन रं-रं रोॅ खाय पीयै रोॅ समान छेलै जेकरा में हम्में ओझराय कॉ कानवो भूली गेलियै। यहीं ठियां जारी चलचित्रों रोॅ एक दृश्य हेनो दिखलाय पड़लै जै में मिसरपुर रहै। जे पढ़लो लिखलोॅ मैथिल ब्राहम्ण रोॅ एक गाँव रहै। है दृश्य ने हमरोॅ जीवन कॉ एक नया आयाम देने रहै। मैट्रिक पास करला रोॅ बाद हमरोॅ बापो रोॅ आगु हमरोॅ उच्च शिक्षा लेली एक भयंकर समस्या खाड़ो होय गेलै। हम्में कहाँ पढ़भै, केना कॉ पढ़भै, हमरोॅ बापोॅ रोॅ कमजोर आर्थिक स्थिति में ओझराय रहलो रहै। ठीक वहाँ वक्ती यहा मिसरपुर वाली पीसी माय (कारो दीदी) ने हमरा सहारा देलकै। हम्में मुरारका कॉलेज, सुलतानगंज में नाम लिखाय कॉ मिसरपुर से क्लाश करेॅ लागलियै। हिनीयोॅ हमरा बड्डी मानै छेलै। हमरोॅ वहॉ एक्के काम रहै, खाना आरोॅ समय पर पढैला कॉलेज जाना। पीसौतो बड़ोॅ भैया राम जीवन मिसर (जीबो भैया) राम छेलै तॉ हुनको पत्नी 'बाबा दाय' हमरा लेली सीता भाभी छेलै। छोटो भाय रंजीत, अजीत, आरो मिथिलेश मिसर हमरोॅ भाय छेकै। हमरा ठीक समय पर रोजे खाना खिलाय कॉ कॉलेज भेजै में भाभी रोॅ उत्तरदायित्व रोॅ निर्बाह हुनी नीको सें करी रहली छेलै, जेकरा सें हम्में आत्मविभोर छेलियै। हम्में पाँच छौ साल तक रही कॉ बीॉएसॉसीॉ रोॅ बाद बीॉएडॉ भी वॉही सें करने छेलियै जेकरा सें हमरोॅ जीवन कॉ एक दिशा मिललो रहै।

पीसी माय हमरोॅ घरोॅ रोॅ मलकैन रहै। खेती गृहस्थी सें लैके तेल-नोंन रोॅ गाड़ी हुनिये जेना-तेना खींची रहली छेलै। हमरोॅ बापोॅ रोॅ पास जे समस्या आबै छेलै, होकरा बड़का दीदी ही पुरा करै छेलै। घरोॅ रोॅ बाहर हमरोॅ दादा जी रोॅ एक बंगला जे वास्तव में गाँव भरी में नामी छेलै। आय भी छै। है बंगला काली मंडप रोॅ बाद गाँव रोॅ हृदयस्थली छै। हेकरो आस-पास रोॅ क्षेत्र 'चाँदनी चौक' कहावै छै। हो समय गाँव में धार्मिक वातावरण रहै। गाँव भरी में जत्ते भी छोटोॅ-छोटोॅ रूपों मेंधार्मिक आयोजन जेना रामायण कथा, महाभारत कथा, भजन-कीर्त्तन होय छेलै, हौ सब यही बंगला पर होय छेलै आरोॅ है सब आयोजन रोॅ सूत्रधार बड़का दीदी ही रहै छेलै। सफाई सें लैकेॅ विभिन्न आयोजन रोॅ सूचना दै रोॅ जिम्मेदारी हिनके जिम्मा रहै छेलै। आरोॅ हुनी निभावै भी छेलै।

हमरा याद छै कि एक दाफी यही बंगला पर एक धार्मिक आयोजन होय रहलो रहै। पंडित जी कथा बांची रहलो रहै। बातावरण शान्त आरोॅ करूणा से भरलोॅ रहै। वहीं समय पीसी माय संवादों रोॅ क्रम मेंही पंडित जी सें एक प्रश्न पुछने रहै। अच्छा पंडित जी, तोंय एक बात बताबो-"तोंय बेदशास्तर, रामायण, महाभारत सभ्भें पढ़ै छौ। कन्हौ तॉ ज़रूरे लिखलोॅ होतै कि विधवा होला पर जनानी रोॅ देह कि छूती जाय छै। ओकरा कि भूतें-प्रेतें, अंधर बतासें कोय नै छुऐ छै, यहाँ तक कि जम्मोॅ नै। हम्में आबें जीबी कॉ की करबै। हम्में मरी जांव तेॅ तरीजांव।" दीदी रोॅ बोली में हुनको बितैलोॅ विधवा जीवन रोॅ हर दर्द भरलोॅ छेलै। है प्रश्न सुनी कॉ पंडित जी रोॅ आँख लोराय गेलै आरोॅ कोनोॅ बोल नै फुटलै। कखनु-कखनु बड़का दीदी रोॅ अंतर मन सें है आवाज निकलै छेलै कि औरत आपनोॅ जीवन में तखनियें पूर्ण होय छै जखनी हुनी माय बनै छै। बिना संतानों सें हुनका स्वर्ग नै होय छै आरोॅ हुनको आत्मा सदा भटकतेॅ रहै छै। है डरो सें दीदी रोॅ बेचैनी सौंसे जीवन में साफ झलकै छेलै। कोय ठीक्के कहने रहै कि "औरत रोॅ जीवन तॉ कच्चा घड़ा रोॅ मानिक तुनुक-मिजाज होय छै, जेकरा रंन्न-भंन्न करै लेली एक अभाव रोॅ हल्का चोट ही काफी छै।" मतुर यहाँ तॉ अभावे-अभाव रहै।

बड़का दीदी परोपकारी रहै। है मिसरो बंगला पर जखनी भी कोय साधु-महात्मा, भुखलोॅ अतिथि आबै छेलै आरो दीदी केॅ मालुम होय छेलै तॉ हुनी खुशी-खुशी प्रेमोॅ सें आपने भुखलो रही कॉ भी हुनका सिनी केॅ खिलाय छेलै। हुनको रोपलो पीपल रोॅ बृक्ष आय भी अतिक्रमित ओड़हारा पोखर पर शान सें लहराय रहलो छै आरोॅ वही रूपोॅ में हुनी आय भी जिन्दा छै। हुनको कहना रहै कि एक बृक्ष दस संतानोॅ रोॅ बराबर होय छै। हमरा याद छै कि दीदी रोॅ महाप्रस्थान केॅ आस-पास रोॅ समय हमरो छोटका पुत्र तरूण कुमार रोॅ जनम होय गेलोॅ रहै। तखनिये हमरोॅ हाई स्कली रोॅ नियुक्ति पत्र भी विज्ञान शिक्षक लेली आबी गेलो रहै। हम्में दीदी रोॅ हालत देखी कॉ डाक्टरी सेवा रोॅ बादो भी हुनका छोड़ी कॉ योगदान लेली जाय ला नै चाहै छेलियै। है सुनी कॉ बड़का दीदी हाँसी कॉ हमरा से कहने रहै कि "है तोरोॅ ज़िन्दगी रोॅ सवाल छेकौ। तोहे पैसा कमैवो तबेॅ नी हमरोॅ ईलाज होतै। देखै छो घरोॅ रो माली हालत कत्ते खराप छौ। तोहे योगदान करै ला जल्दी जा, हमरा एखनी कुछछु नै होतै।" हम्में एक सप्ताह रोॅ बाद जबेॅ घुरी केॅ घोॅर ऐलो रहियै तॉ हमरा बाहरे में है मालुम होय गेलै रहै कि बड़का दीदी आबेॅ नै रहलै। है सुनी कॉ हम्में बेचैन होय गेलियै आरोॅ करेजोॅ फाटे लागलै। हम्में हक्कन करी कॉ काने लागलियै। है देखी कॉ हमरोॅ पत्नी किरण मिश्रा ने कपसते हुए हमरा बतैने रहै कि "तोहे कोनोॅ नै, धीरज धरो। यै में तोरो की दोष छै। तोहे बड़का दीदी केॅ अंतिम गंगाजोल आरोॅ तुलसी दल नै दैल पारलो तॉ की होलै, हम्में हुनको अंतिम यात्र गंगाधामों में ही कराय देने छियै आरोॅ आय भी हुनी घरोॅ रोॅ" तुलसी चौरा"नांकी हमरा सिनी दिलोॅ में जिन्दा छै।"