पुण्य तिथि पर / विद्यासागर नौटियाल
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स्मरण: समीर रतूडी
एक साल पहले आज के ही दिन सुबह, अपोलो अस्पताल, बंगलौर, के I.C.U में लगभग 8 बजे प्रात: जब डॉक्टर एक चित पड़े शरीर के छाती पर जोर जोर से पंप कर रहे थे, रह-रह कर भी सांस आ रही थी, फिर रुक रही थी, यह पल उस समय डॉक्टर द्वारा एक सामान्य क्रिया थी लेकिन यह एहसास नहीं हुआ की यह चित पड़ा शरीर जाते-जाते अपने व्यक्तिव्य का बोध करा रहा हो, उस चित पड़े शरीर में बसी आत्मा उस चितेरे व्यक्तित्व का ध्येय बयान कर कर रही थी, संघर्षो व आदर्श विचारों से परिपूर्ण अंतिम समय में भी संघर्ष करते दिखे, पल भर के लिए मौत को भी सोचने के लिए मजबूर कर दिया ! लेकिन विधि का विधान....................
एक साधारण व संघर्षो की जिन्दगी जीने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार स्व. विद्यासागर नौटियाल की तुलना मुन्सी प्रेम चंद से की गयी.. और उनको पहाड़ का प्रेम चंद कहा गया ! अपने जीवन काल में संघर्षो व आदर्श विचारों को अपना हथियार बनाकर स्व: नौटियाल ने अनेक मोर्चो पर बुलंदी हासिल के है ! पहाड़ की संस्कृति व सभ्यता उनके कहानियों की नींव व पहाड़ के संघर्ष उनके कहानियों की रीड रही है! ‘भेंस का कटया’ में जिस रूप में संबधों का बखान हुआ है, वह किसी भी कथाकार के लिए चित्रित करना आसान नहीं, कहानी के उस अंश का मार्मिक वर्णन सामने हो रही घटना के तरह प्रतीत होता है ! ‘भीम अकेला’, ‘यमुना के बागी बेटे’,’सूरज सबका है’, आदि शीर्षक कथा के मानवीय सम्बन्ध को दृष्टित करते है! ‘पहल सम्मान’, श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफ्फको साहित्य सम्मान, आदि सम्मान उनके कहानी में पहाड़ के संघर्षो की पुष्ठी होती है!
साहित्यकार के साथ-साथ एक राजनितिक के रूप में उनका अपना अमूल्य योगदान है, लाल घाटी से चर्चित टिहरी-प्रतापनगर स्व: नौटियाल व उनके साथियों के कम्युनिस्ट विचारों की देन है ! अपने साथियों के साथ कम्युनिस्ट पार्टी का परचम लहराते हुए देवप्रयाग विधानसभा से विधायक भी रहे !उनके जनता व साथियों के प्रती समर्पण उनके अपने छात्र जीवन से ही दिखती है, बनारस हिन्दू विश्वविधालय के संसद के प्रधान मंत्री के रूप में रहे, तत्पश्च्यात भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के छात्र संघटन आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (A.I.S.F.) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे ! कम्युनिस्ट के लाल सलाम का मायने आज नौटियाल जी के जीवनी से साफ़ दिखाई देता है !