पुरस्कार / गोवर्धन यादव
एक पहलवान को अपने भाई के आपरेशन के लिए पन्द्रह हज़ार रुपयों की सक्त आवश्यक्ता थी, इसी बीच एक ईनामी दंगल की घोषणा हुई, जिसमें जीतने वाले पहलवान को पुरस्कार स्वरुप पच्चीस हज़ार और हारने वाले को मात्र पांच हज़ार रुपय दिए जाने की घोषणा कि गई थी,
वह इस हाथ आए मौके को वह गंवाना नहीं चाहता था, साथ ही वह यह भी जानता था कि वह सामने वाले पहलवान से जीत नहीं पाएगा, ज़्यादा रक़म प्राप्त करने के लिए उसने एक योजना बनाई और वह उस पहलवान के घर जा पहुँचा,
"पहलवानजी, नमस्ते,"
"नमस्ते भाईजी, आप कौन हैं, शायद इससे पहले आप से मुलाकात नहीं हुई" ,
"ठीक कह रहे हैं आप, शायद आपने पटियाला वाले पहलवान बजरंगी का नाम तो सुन ही होगा, जो अब तक किसी से नहीं हारा है,"
"हाँ शायद सुना है, शायद नहीं भी, तुम उसे कैसे जानते हो,"
" पहलवानजी मैं ही बजरंगी हूँ, मैंने सोचा कि अखाडे में हाथ मिलाने के पहले मैं आपसे घर पर ही हाथ मिला लूँ,
"हाँ हाँ, क्यों नहीं, आओ बैठॊ,"
"देखिए पहलवानजी, यह तो तय है कि आप मुझसे अखाडे में जीत नहीं सकते, चूंकि आप इसी शहर के रहने वाले हैं, हार जाने के बाद आपकी बदनामी होगी सो अ़लग, हर कोई आपको हारा हुआ कहेगे, जिसे आप बर्दाश्त नहीं कर पाएँगे, मैं ठहरा बाहर का आदमी, क्या जीता और क्या हारा, कौन याद रखेगा, भलाई इसी में है कि जैसा मैं कहता हूँ, आप मान जाइये,"
स्थानीय पहलवान से सोचा"बात तो ठीक कह रहा है ये, फिर अखाडे में किसका दांव लग जाए, किस का नहीं, नहीं कह जा सकता, यदि सचमुच में मैं हार गया तो बदनामी होगी" काफ़ी सोचने-विचारने के बाद उसने सामने वाले पहलवान के मन का हाल जानना चाहा,
" आख़िर तुम कहना क्या चाहते हो? उसने प्रश्न किया,
" बात सीधी-सी है जी, मुझे जीतने पर पच्चीस हज़ार और आपको पांच हज़ार मिलेगे, कुल राशि होती है तीस हजार, यदि आप आधे-आधे पर मान जाते हैं, तो आपको दस हज़ार का फ़ायदा होगा अलग से और जीत भी आपके ही हिस्से में आयेगी, आप विजेता कहलाएगे, अब बतलाइये आप क्या करना चाहेगें,
स्थानीय पहलवान ने सोचा"रुपया तो हाथ का मैल है, आज नहीं तो कल इसे कमाया जा सकता है, लेकिन हार का ठीकरा वह् कब तक ढोता फ़िरेगा, अतः इसकी बात मान लेने में ही फ़ायदा है, उसने कहा" तुम ठीक कहते हो मेरे भाई, चलिए यह सौदा हमें मंजूर है" कहते हुए उसने तपाक से हाथ मिला लिया,
दूसरे दिन दोनों अखाडे में मिले, थोडी देर तक जोर-आजमाइश होती रही, कभी पहला भारी पडता तो कभी दूसरा, दर्शकदीर्घा से तालियाँ जब-तब बजती रही, अंत में वही होना था, जो पहले से तय किया गया था, स्थानीय पहलवान की जीत हुई और वह हार गया, आयोजकॊं ने दोनों को निर्धारित राशियाँ पुरस्कार स्वरुप भेंट में दी और घर आकर दोनों ने रक़म का बंटवारा कर लिया,
वह इस बात पर खुश था कि उसे आपरेशन में लगने वाली रक़म प्राप्त हो गई थी और दूसरा इसलिए खुश हो रहा था कि वह जीत गया है।