पुरुष कॉप फिल्में बनाम महिला कॉप फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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पुरुष कॉप फिल्में बनाम महिला कॉप फिल्में
प्रकाशन तिथि :04 मार्च 2016


प्रकाश झा का कहना है कि बिहार के लोगों के जीन्स में राजनीति है। भारत में क्रिकेट तथा सिनेमा से भी अधिक लोकप्रिय है राजनीति और यह एक नशे में बदल चुका है। यह विशुद्ध भारतीय जीनियस है कि हमने राजनीति को भी एक नशे में बदल दिया है। अब यह अफीम की तरह हो गई है। प्रख्यात लेखक मनोहर श्याम जोशी ने लिखा था कि टेलीविजन पर चुनाव के नतीजे किसी भी सीरियल या फिल्म से अधिक लोकप्रिय होते हैं और इसलिए हमें वर्षभर 'चुनाव-चुनाव' खेलना चाहिए। उनका तात्पर्य था कि चुनाव को मनोरंजक टेलीविजन सीरियल की तरह मानना चाहिए। टेलीविजन पर सोप-ऑपेरा और संसद में राजनीति ऑपेरा की तरह प्रस्तुत होती है। इस तरह की सोच का कारण यह है कि अवाम के कष्ट विगत अनेक दशकों में बढ़ते रहे हैं और किसी सरकार से उन्हें न्याय नहीं मिला है। यह जरूर हुआ है कि कष्ट के प्रकार बदलते रहे हैं। दुख सबसे बड़ा अय्यार है, वह नाना प्रकार के वेश पहनकर, विभिन्न मुखौटे लगाकर हमारे जीवन में मौजूद रहता है। सरकारें और उनकी काम करने की शैलियां ही हमारा स्थायी दुख हैं और हमने उसे कभी नहीं बदलने वाली नियति का हिस्सा मान लिया है।

प्रकाश झा ने 'परिणीति', 'मृत्युदंड', 'अपहरण', जैसी सार्थक सफल फिल्में बनाई हैं, परंतु 'राजनीति' नामक फिल्म को उन्होंने कई तरह से प्रचारित किया। वह फिल्म 'गॉडफादर' का ही एक संस्करण थी, यह बात उन्होंने गोपनीय ही रखी है। उन्होंने प्रदर्शन पूर्व अपने नायक रणवीर कपूर को राहुल गांधी की तरह लोकल ट्रेन में सफर कराया। 'राजनीति' ने उन्हें खूब धन दिया, परंतु वह 'मृत्युदंड', 'अपहरण' और 'गंगाजल' की तरह सार्थक फिल्म नहीं सिद्ध हुईं और उसके बाद प्रकाश झा की गाड़ी अपनी मूल पटरी से उतर गई तथा 'आरक्षण' जैसे हादसे हुए। अब 'जय गंगाजल' से उनके पटरी पर लौटने की आशा की जा सकती है। अजय देवगन ने प्रकाश झा की फिल्मों में इंसपेक्टर की भूमिका भावना की इस तीव्रता से अभिनीत की है कि 'जंजीर' के पटकथा लेखक सलीम साहब ने कहा कि अब तक इंसपेक्टर की भूमिका में किसी भी अभिनेता ने अजय देवगन की तरह काम नहीं किया। यह कथन इसलिए महत्वपूर्ण है कि स्वयं सलीम साहब ने अपने साथी जावेद अख्तर के साथ 'जंजीर' और 'शक्ति' में इंसपेक्टर पात्र रचे हैं।

प्रकाश झा ने 'जय गंगाजल' में इंसपेक्टर पात्र को महिला पात्र में बदल दिया है। यह फिल्म निर्माण का पुराना पैंतरा है कि जब फिल्मकार को कम मेहनताने पर सितारा नायक नहीं मिलता, तो वह उसे नारी पात्र में बदल देता है। प्रियंका चोपड़ा अमेरिकन सीरियल 'क्वांटिको' में भी महिला कॉप हैं, जिसे अपराधियों ने षड्यंत्र करके अपनी बिरादरी से बाहर करवा दिया है। आज प्रियंका चोपड़ा अत्यंत लोकप्रिय हैं और इसका लाभ प्रकाश झा को मिलेगा। दक्षिण भारत की अनेक फिल्मों में महिला कॉप की भूमिका प्रस्तुत की गई है। तब्बू ने भी महिला पुलिस अफसर की भूमिका अजय देवगन अभिनीत 'दृश्यम' में बड़े प्रभावोत्पादन ढंग से प्रस्तुत की है।

मुमकिन है अपराधी महिला इंसपेक्टर द्वारा पकड़े जाने और पीटे जाने को अपने पौरुषीय दंभ का अपमान मानते हों और उन्हें यह बात बहुत चुभती हो कि वे महिला द्वारा पीटे जा रहे हैं। महिला को मर्द से कमतर माने जाने वाले झूठ को भी बड़े कौशल से सच की तरह स्थापित किया गया है और इस काम में सदियां लग गई हैं। यह संभव है कि अपने शिकार युग में ही पुरुष ने महसूस किया हो कि नारी का निशाना और चुस्ती उससे बेहतर है, अत: नारी को किसी और तरह से भरमाया जाये। इस साजिश की खूबी यह है कि महिला ने भी अपनी कमनीयता को अपने सौंदर्य का हिस्सा मान लिया है। उसे यह भी नहीं समझ में आया कि सौंदर्य अवधारणा भी उसके खिलाफ साजिश का हिस्सा है और इस धारणा की पुष्टि करने में सौंदर्य प्रसाधन उद्योग भी पूरी ताकत से भिड़ गया। इसी के साथ यह भी जुड़ा है कि 'उजले' के प्रति आदर दिखाया जाये और 'उसकी कमीज मेरी कमीज से अधिक सफेद क्यों है' को भी सौंदर्य प्रसाधन प्रचार तंत्र का मंत्र बना दिया गया। इन सारी साजिशों के करण मानव शक्ति का धारदार हिस्सा भोथरा बना दिया गया। वह बेचारी आइने में ही अपने रूप निहारती रहे और पुुरुष इसका भरपूर लाभ उठाए। अब यह तो विश्वास से नहीं कहा जा सकता कि क्या 'आई लव यू' भी किसी साजिश का हिस्सा है। प्रेम को नशे में बदलना भी एक जीनियस का काम है।