पुरुष लम्पटाई से जन्मे उद्योग की कथाएं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 09 सितम्बर 2014
विशाल भारद्वाज की पहली फिल्म "मकड़ी' में बाल कलाकार की भूमिका करने वाली युवती शरीर बेचने के अपराध में पकड़ी गई तो उसने कहा कि अनेक फिल्म सितारे यही करते हैं। सच तो यह है कि सफल महिला सितारों की वार्षिक आय 100 करोड़ है, अत: पैसे की कमी उन्हें नहीं है परंतु फिल्म उद्योग से जुड़ी कभी-कभार छोटी भूमिकाएं करने वाली लड़कियां आर्थिक मजबूरी के कारण इस धंधे में शामिल हो सकती है। समाज की आर्थिक खाई से अनेक व्याधियां जन्म लेती हैं। टेलीविजन अब झोपड़ पट्टी में भी पहुंच गया है आैर उस पर प्रस्तुत वैभव का अतिरेक भी असंतोष जगाता है। वेश्यावृति को संसार का सबसे पुराना व्यापार बताया गया है अर्थात सिनेमा आैर टेलीविजन के उदय के हजारों वर्ष पूर्व ही यह व्यवसाय प्रारंभ हो चुका था। व्यापार का प्रारंभ बार्टर सिस्टम से प्रारंभ हुआ जिसमें वस्तु के बदले वस्तु ली आैर दी जाती थी। सदियों बाद सिक्के का चलन प्रारंभ हुआ। तब भी मनुष्य चमड़ी सिक्के के पर्याय के रूप में प्रयोग की जाती रही है। दरअसल पुरुष मन ही वेश्यावृत्ति व्यवसाय का केंद्र है।
इससे जुड़ी अजीबोगरीब प्रथाएं भी हैं, मसलन विवाह में वधू की विदाई के साथ उसकी दासी भी आती थी।
धृतराष्ट्र ने गांधारी के साथ आई दासी से भी एक पुत्र प्राप्त किया है जिसने राज सभा में द्रोपदी के चीरहरण का विरोध किया था आैर कुरुक्षेत्र में भी युयत्सु पांडवों की आेर से लड़ा है। जाबाली-सत्यकाम कथा भी महाभारत का हिस्सा है। इसी तरह विदुर का जन्म भी दासी की कोख से हुआ है आैर उसे राजकुमारों की तरह पाला अवश्य गया परंतु उसकी दासी मां को महल में कोई स्थान नहीं दिया गया। संभवत: दासी की कोख से जन्म लेने के कारण ही पांडू के वनवास लेने पर नियम विरुद्ध अंधे धृतराष्ट्र को राजा बनाया गया जबकि विदुर को सिंहासन देने पर संभवत: कुरुक्षेत्र का युद्ध ही नहीं होता।
भारत में वेश्या कोठों की परंपरा बहुत पुरानी है आैर एक जमाने में उन्हें अदब की पाठशाला भी माना जाता था। लगभग 60 वर्ष पूर्व यह 'होम डिलीवरी' में बदल गया आैर कॉल गर्ल्स व्यवस्था सामने आई तथा फोन पर सेवा उपलब्ध हो गई। 'कॉल गर्ल्स' पर '78 पार्क एवेन्यू' नामक लोकप्रिय उपन्यास है जिस पर हॉलीवुड में फिल्म बन चुकी है। हमने कुछ दिन पूर्व ही 'मर्दानी' में मनुष्य मांस के व्यापार का एक पक्ष देखा है। इसी व्यवसाय को कई गरिमामय नाम भी दिए गए हैं आैर देवदासी प्रथा पर भी अनेक किताबें हैं तथा पद्मिनी कोल्हापुरे को लेकर एक फिल्म भी बनाई गई थी। इस फिल्म का नाम "आहिस्ता आहिस्ता' था। इतिहास में आम्रपाली की कहानी भी दर्ज है। दक्षिण के एस एस वासन ने सन् 43 में एक 'दासी' नामक फिल्म बनाई थी जिसमें राज नर्तकी की विशाल कोठी का धोबी प्राय: उनकी नौकरानियों को कहता है कि वह सोने की मुद्राएं बचा रहा है आैर एक दिन यथेष्ठ मात्रा में जमा हो जाने पर राज नर्तकी से प्रेम निवेदन करेगा। यह विषय राज नर्तकी के महल में उपहास का विषय है। जब उस धोबी ने इस तरह स्वर्ण मुद्रा संचयन की बात करना बंद की तब दासी ने पूछा कि क्या उसकी इच्छा मर गई है। धोबी का कहना है कि भावना की तीव्रता से याद करने पर राज नर्तकी उसके स्वप्न में आने लगी है, अत: स्वर्ण मुद्रा जमा करना उसने बंद कर दिया है। राज नर्तकी ने राजा से शिकायत की कि स्वप्न में आने की तीन हजार स्वर्ण मुद्राएं उसे दिलाई जाए। रानी ने दरबार में एक आइने के सामने तीन हजार स्वर्ण मुद्रा रखवाई आैर राज नर्तकी से कहा कि वह आइने में स्वर्ण मुद्रा की छवि उठा सकती है। स्वप्न में आने का मुआवजा आइने की छवि हो सकता है।
यह खेल अत्यंत पुराना है आैर इस पर अनेक अफसाने लिखे गए हैं, फिल्में बनाई गई हैं परंतु फिल्मों में प्राय: इस मुद्दे का रूमानी रूप दिखाया जाता है आैर यथार्थ में बदन की जो धुनाई होती है आैर आत्मा लहूलुहान होती है उसका यथार्थ रूप प्रस्तुत नहीं किया गया है। जापान में गेहिशा परंपरा अत्यंत पुरानी है आैर इन सुसंस्कृत वेश्याओं पर भी अनेक फिल्में बनी हैं। श्याम बेनेगल की 'मंडी' में निष्कासित वेश्याएं बीहड़ में घर बनाती हैं तो धीरे-धीरे वहां बाजार विकसित होता है आैर कालांतर में शहर बन जाता है। एक दिन सत्ता निर्णय करती है कि इस 'गंदगी' को खदेड़ कर शहर से दूर भेजा जाए। तवायफंे भी शहर बसाती हैं आैर खदेड़ी जाती हैं। सआदत हसन मंटो की एक लघु कथा में अमीरजादा सीढ़ियोंके नीचे बनी खोली में अधेड़ तवायफ को तीन सौ रुपए माहवर धंधा बंद करने का देता है, क्योंकि सीढ़ियां चढ़ते समय उसे वितृष्णा होती है। कुछ दिन के बंद के बाद दुकान खुल जाती है उसके तीन सौ रुपए लौटाकर कहती है कि वर्षों की आदत का क्या करूं? बहरहाल वेश्यावृत्ति का संसार ही रहस्यमय है।