पुलिस प्रेरित फिल्मों की भेल / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पुलिस प्रेरित फिल्मों की भेल
प्रकाशन तिथि : 27 फरवरी 2020


गोविंद निहलानी की फिल्म ‘अर्द्ध सत्य’ में हवलदार का अमरीश पुरी अभिनीत पात्र अपने पुत्र ओम पुरी अभिनीत पात्र पर दबाव बनाता है कि वह पुलिस विभाग में दाखिल हो जाए। ओम पुरी को साहित्य पसंद है, परंतु पिता की इच्छानुरूप वह पुलिस में सब इंस्पेक्टर बनता है। वह अपने साहस से डाकुओं के गिरोह को पकड़ता है, परंतु इस शौर्य का श्रेय अन्य अफसर को दिया जाता है, क्योंकि उस अफसर को एक नेता की सिफारिश प्राप्त हो गई थी। इस अन्याय के कारण आक्रोश से भरा ओम पुरी दो आरोपियों की इतनी पिटाई करता है कि वे मर जाते हैं। मामला गंभीर है और केवल शेट्टी नामक एक अपराध सरगना ही अपने राजनीतिक रिश्ते से लाभ उठाकर ओम पुरी की सहायता कर सकता है।

ओम पुरी उस गॉड फादर के भव्य बंगले में प्रवेश करता है। शेट्टी उसे बचाने का वचन इस शर्त पर देता है कि इसके बाद वह पुलिस में रहते हुए अपराध सरगना शेट्‌टी के लिए काम करेगा, एक पालतू कुत्ते की तरह। ओम पुरी शेट्‌टी की हत्या कर देता है और थाने पर जाकर आत्मसमर्पण कर देता है। सलीम-जावेद की ‘आक्रोश’ की मुद्रा वाला पुलिस पात्र अपने माता-पिता के साथ किए गए अन्याय का बदला लेते हैं। अत: वे सामाजिक आक्रोश से संचालित पात्र नहीं माने जा सकते। ‘अर्ध सत्य’ की पटकथा महान लेखक विजय तेंडुलकर ने लिखी थी।

फिल्म ‘देव’ में अमिताभ बच्चन और ओम पुरी पुराने मित्र हैं और एक ही बैच में प्रशिक्षित हुए हैं। ओम पुरी एक दंगाग्रस्त क्षेत्र में नियुक्त है। पुलिस द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से विरोध करने वालों पर लाठियां चलाई जाती हैं और बीस लोग पुलिस की गोलियों से मार दिए जाते हैं। ओम पुरी घटनास्थल पर मौजूद था और उसके आचरण की जांच के लिए उसका मित्र अमिताभ बच्चन अभिनीत पात्र नियुक्त किया जाता है। इसके पूर्व घटी एक घटना में अमिताभ अभिनीत पात्र अपने परिवार के एक सदस्य को खो चुका है। इस फिल्म के एक दृश्य में करीना कपूर अपने समाज की सभा में समाज के स्वयंभू नेताओं के दोगलेपन को उजागर करती है, जिस कारण उसका अपना समाज उससे खफा है।

सुभाष कपूर की फिल्म ‘जॉली एलएलबी-2’ में दिखाया गया है कि कमाई वाले थानों में नियुक्ति के लिए अघोषित नीलामी होती है। कानून व्यवस्था बनाए रखने वाले विभाग पर गैरकानूनी दबाव बनाए जाते हैं। प्रकाश झा की ‘दामुल’, ‘मृत्युदंड’ और ‘गंगाजल’ में पुलिस पात्रों की दुविधा व असमंजस को बखूबी प्रस्तुत किया गया है। ‘वेडनेसडे’ नामक फिल्म में अनुपम खेर अभिनीत पुलिस अफसर पात्र नसीरुद्दीन अभिनीत पात्र को देखकर समझ लेता है कि इस आम आदमी ने पूरी व्यवस्था को हिला दिया। अनुपम खेर सब कुछ जानकर भी उसे गिरफ्तार नहीं करता।

अमिताभ बच्चन ने के. भाग्यराज की फिल्म ‘आखिरी रास्ता’ में दोरही भूमिकाएं अभिनीत की हैं। एक भूमिका पुलिस इंस्पेक्टर की है तो दूसरी इंस्पेक्टर के पिता की है जो अपनी पत्नी से दुष्कर्म करने वालों को दंडित कर रहा है। सलीम-जावेद ने अशोक कुमार अभिनीत ‘संग्राम’ से प्रेरित दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म ‘शक्ति’ लिखी थी। पुलिस अफसर के नन्हे बेटे को गुंडों ने अगवा किया है और दबाव बनाते हैं कि उनके गिरफ्तार किए गए सरगना को छोड़ दें, अन्यथा वे उसके बेटे को मार देंगे। बच्चा किसी तरह छूट जाता है, परंतु उसके मन में गांठ पड़ गई है कि उसके पिता ने उसके लिए कुछ नहीं किया। दरअसल, पुलिस को मानवीय करुणा की दृष्टि से देखा जानना चाहिए। कुछ वर्ष पूर्व रिश्वत का नया ढंग ईजाद हुआ है कि धर्मनिरपेक्ष देश के कुछ थानों के गेट पर छोटा मंदिर बना दिया गया है और शिकायत दर्ज करने आए आम आदमी से कहा जाता है कि मंदिर में चढ़ावा दे दें। अजब-गजब भारत में सब कुछ संभव है।