पुल बनाने वाले / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
अन्तायक नगर में, असी नामक नदी जहाँ सागर से मिलती है, शहर के आधे हिस्से को उसके दूसरे हिस्से से जोड़ने के लिए एक पुल बनाया गया था। इस पुल का निर्माण पहाड़ से लाई गई बड़ी-बड़ी शिलाओं को जोड़कर किया गया था जिन्हें अन्तायक के खच्चरों पर लादकर यहाँ लाया गया था।
पुल बन जाने के बाद उसके एक खम्बे पर अरबी और ग्रीक में यह खुदवाया गया गया -
"इस पुल को अन्तायकस द्वितीय ने बनवाया।"
तमाम जनता खूबसूरत असी नदी के ऊपर बने उस सुन्दर पुल पर चलते हुए आरपार जाने लगी।
एक शाम, कुछ-कुछ पागल किस्म का एक नौजवान, उस खम्भे पर चढ़ गया जिस पर इबारत लिखी हुई थी। उसने उस पर कालिख पोत दी और उसके ऊपर लिखा - "इस पुल में इस्तेमाल किए गए पत्थर खच्चरों पर लादकर पहाड़ से नीचे लाए गए हैं। इस पर से गुजरते हुए आप उन खच्चरों की पीठ पर, जिन्होंने इसे बनाया है, पाँव रखकर गुजर रहे होते हैं।"
लोगों ने जब उसकी लिखी इबारत को पढ़ा तो कुछ ने उसका मजाक उड़ाया और कुछ का मुँह खुला रह गया। कुछ ने कहा, "हाँ-हाँ, हमें पता है यह किसकी करतूत है। वह थोड़ा-थोड़ा पागल नहीं है, ...।"
लेकिन एक खच्चर ने दूसरे से हँसते हुए कहा, "क्या तुम्हें नहीं याद कि हम ही उन पत्थरों को ढोकर लाए थे? और आज तक कहा यह जाता है कि पुल को महाराज अन्तायकस ने बनाया।"