पुल / नीना अंदौत्रा पठानिया

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाँव में नया पुल बना, पहली बार गाँव में बस पहुँची।

बूढ़ा दादा छड़ी टेकता आया… ख़ामोशी से बस को देखता रहा।

“क्यों नहीं बैठते दादा?” — किसी ने पूछा।

बूढ़ा दादा आँखें पोंछते हुए बोला, — “पहले जवान बेटे को शहर भेजा था… जो आज तक लौटकर नहीं आया।”

बस का इंजन गरजा… धूल उड़ी।

दादा मुस्कुराया, — “अब बूढ़ी हड्डियाँ शहर जाएँगी…, लौटने की जल्दी नहीं।”

हवा में बस के पीछे एक उम्र बह गई।

गाँव फिर थोड़ा और सूना हो गया।