पुस्तकों की सैर(बाल साहित्य) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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पूरे संसार में देखा जाए तो बच्चों की संख्या सबसे ज़्यादा है। पोषण चाहे मन का हो या शरीर का सब जगह बच्चों की उपेक्षा होती है। ज़रूरी नहीं कि सदा जानबूझकर ही ऐसा किया जाता हो। कभी-कभी यह उपेक्षा लापारवाही के कारण भी होती है। बहुत से अभिभावक बच्चे के खानपान, टीकाकरण आदि सभी बातों के लिए जागरूक होते हुए भी उनके मानसिक पोषाहार पर ध्यान नहीं देते। यह मानसिक पोषाहार हैं पुस्तकें। बच्चों के लिए अभाव न होने पर सारे साधन जुटा पाने वाले माता-पिता का ध्यान इस ओर बहुत कम जाता है। उनका सोचना है कि बाप दादा के सुझाए नुस्खों से बच्चों को सही रास्ता सिखा देंगे। ऐसा सोचना अधिक व्यावहारिक नहीं है। बच्चे अपने परिवेश को देखकर, उससे जुड़कर संसार को, आसपास की गतिविधियों को अधिक समझते हैं। यहाँ पर विभिन्न आयु-वर्ग के बच्चों की गतिविधियों को जिन पुस्तकों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है, उनका यहाँ संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है।

1-मैं अच्छी हूँ ना! (आरती स्मित): पुस्तक इस दिशा में एक अच्छा कदम है। माँ आशी से नाराज़ हो गई. क्यों हुई, इसको बहुत सहज भाव से प्रस्तुत किया गया है। प्राय: माता-पिता छोटी-छोटी गलतियों को सही करने का एक ही उपाय जानते हैं, वह है दण्डित करना। आशी के पास बहुत सारे खेल-खिलौने हैं। वे सब उसके दोस्त हैं। उसे उन सबसे प्यार है, जिनमें पिंकू उसके साथ बिस्तर पर सोता है और डाली झूले में। सब उसके बेहद करीब हैं। मछलियों को वह खाना खिलाती है, वे भी उसकी दोस्त हैं। मछलियों को खाना खिलाना उसके जीवों के प्रति प्रेम को दर्शाता है। लेखिका ने इस जीव-प्रेम का कोई उपदेश नहीं दिया, बल्कि कार्य के माध्यम से उस प्रेम की पुष्टि की है। उसको किताबों से भी प्रेम है, रंग भरना उसे अच्छा लगता है। सीधे स्वभाव से आशी अपने बारे में बताती चलती है। मुँह से खाना गिराना, पानी मुँह में भरकर पिच्च से निकाल देना उसकी खराब आदतें हैं। आशी की इस आदत से माँ नाराज़ हो जाती है। उसे कहती कुछ नहीं, बस उसकी गलती का एहसास कराती है। गलती का यही एहसास उसे सुधार की ओर प्रेरित करता है। छोटी-छोटी बातों को पिरोकर बालसुलभ चेष्टाओं का चित्रण इस पुस्तक की विशेषता है। पुस्तक में कोई उपदेश न देकर बच्चे को सुधरने का अवसर दिया गया है।

2-सारी दुनिया प्यारी दुनिया (जयन्ती मनोकरन, अनुवाद: पंकज चतुर्वेदी) : : चित्रों से सुसज्जित छोटी-सी पुस्तक है। एक पृष्ठ पर एक वाक्य और एक भरापूरा चित्र। वाक्य के साथ दिए गए चित्र बोलते हैं, तुलना करते हैं-क्या अच्छा है, क्या अच्छा नहीं लगता है। सूरज अच्छा लगता है, लेकिन सूरज की अधिक गर्मी के कारण पैदा हुआ सूखा नहीं। सूखा भी ऐसा कि कुआँ सूख जाए और बाल्टी भर पानी भी न मिल सके. दोनों स्थितियों में चित्रित वालिका की आँखें बिना शब्द और वाक्य के भी खुशी और आश्चर्य के भाव प्रकट कर देती हैं। हवा अच्छी लगती है, पर बवण्डर भतभीत करता है। बारिश खुशी देती है, तूफ़ान बचाव की मुद्रा में एक साथ कई भावों को उभारता है। इसी तरह नदियाँ और बाढ़, पहाड़ और ज्वावालामुखी, बर्फ़ और हिमस्खलन, समुद्र और सुनामी के प्रभाव को शब्दों से भी अधिक भाव-चित्रों द्वारा बहुत गहराई से अभिव्यक्त किया है।

3-नन्हा पौधा (लेखन एवं चित्रांकन-ज़मर जलील) : ध्वन्यात्मक सरल शब्दावली से सजी छोटी-छोटी गेय कविताओं के माध्यम से ज़मर जलील ने नन्हे पौधे के माध्यम से पर्यावरण की जागरूकता प्रस्तुत की है। स्कूल से लौटते समय रानी कुम्हलाए, मुरझाए, भूख प्यास से रोते नन्हे पौधे को देखकर मोहन और मोती को आवाज़ लगाती है। सब उसको पानी देने का निश्चय करते हैं। रानी घर से पानी लाकर पौधे को पिलाती है। पौधा तरोताज़ा हो जाता है। कबरी बकरी समेत सभी खुश हैं। सब पानी डालें, इसका एक ही उपाय है कि और पौधे लगाएँ। बस फिर क्या था, नन्हे हाथ इस काम में जुट जाते हैं। पौधे हरे-भरे होकर बाग का रूप ले लेते हैं। सब झूला भी झूलते हैं, फल भी खाते हैं। कविता की ये पंक्तियाँ बच्चों की जुबान पर अनायास ही आ जाएँगी-'स्कूल की घण्टी टुन-टुन टुन' , 'रानी बोली सुन-सुन सुन' , 'इक पौधे में इतना पानी / हो गया यह तो पानी-पानी'।

4-अवनि और मटर का पौधा (श्रुति राव, चित्रांकन-देबस्मिता दासगुप्ता): मटर के बीज से पौधे बनने तक का सफ़र एक छोटी-सी कहानी के माध्यम से समझाया गया है। विज्ञान की यह जानकारी बिना किसी तामझाम के बच्चों को पूरी प्रक्रिया समझा देती है। सूखे मटर के बीज का कटोरे से गिरना न अम्मा ने देखा न अवनि ने। चिक्की बिल्ली ने पंजा मारा तो वह रसोई के दरवाज़े की तरफ़ लुढ़क गया, फिर पंजा मारा तो बगीचे में चला गया। मैना ने चोंच मारी, तो मिट्टी में जा गिरा। केंचुआ बाहर निकला और सुराख में वापस चला गया। मटर फिसलकर उस सुराख में क्या गिरा कि मिट्टी में सनकर कुछ आराम करने लगा। फिर किसी दिन बारिश आई, मटर भीगकर फूल गया, एक दुम निकल आई और सिर पर ताज भी। सूरज को छूने की कोशिश में बड़ा होता गया। सबको आश्चर्य हुआ कि मटर का पौधा यहाँ कैसे उग आया! रोचक कथा-सूत्र और सार्थक चित्रों से लेखिका और चित्रकार ने अपनी बात समझा दी है। विज्ञान के शिक्षक इस तरह की विधि को अपनाएँ, तो जटिल विषय को भी सरलता से समझाया जा सकता है।

5-सैर सपाटा (अमर गोस्वामी, चित्रांकन: पार्थो सेन गुप्ता): अमर गोस्वामी ने अपनी रोचक कथा शैली में बन्दर, चूहा, खरगोश, गिलहरी और भालू पाँच दोस्तों के पिकनिक का सुन्दर चित्रण किया है। उनका आँख मिचौनी, चोर सिपाही खेलना दौड़ना और उसके बाद कुछ खाने की तैयारी। खरगोश गाजर, भालू पत्तागोभी, गिलहरी टमाटर, चूहा मूली लेकर आए. मिलकर सबने धोया काटा और मिलाया। अब यह चूहे, खरगोश और गिलहरी के अनुसार जो बना वह चाट, पंचरंगा, मिलीजुली, बन्दर ने इसे बल बढ़ाने वाला सलाद कहा। गतिविधियों से सजी इस रचना का समापन चूहे के इस मज़ेदार संवाद से होता है-"अब से मैं यही खाऊँगा। मुझे बड़ा होकर शेर बनना है।" सलाद बल बढ़ाने वाला है, तो फिर चूहे के मन में शेर बनने की बात आएगी ही। छोटी-सी किताब में हमारी बदलती आहार शैली के विपरीत किसी उपदेश के प्रकृति आहार सलाद के महत्त्व को स्थान दिया है।

6-क्या देखती है अनु? (लेखन-चित्रांकन-लावण्या कार्तिक): लावण्या की यह पुस्तक अलग ढंग से जानकारी बढ़ाती है। अनु को घर और बाहर का अवलोकन करने पर-घर, दीवार पर चींटियाँ, बहुत सारे आकार-पेड़ के तनों के गोले, मधुमक्खी के छत्ते, पत्तों पर और उसके हाथों की रेखाएँ, पानी की लहरें और उसी का साम्य लिये उसके घुँघराले बालों की लहर, बादलों में छुपे फुदकते खरगोश आदि। पुस्तक रोचक है और बालकल्पना को जाग्रत करने वाली है।

7-सूर्य (डॉ.कविता भट्ट) : बच्चों के लिए कविता-कहानी की पुस्तक तो बहुत मिल जाएँगी, लेकिन सरल और रोचक भाषा में विज्ञान विषय की जानकारी देने वाली पुस्तकों का बहुत अभाव है। बच्चों में तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए इस तरह की पुस्तकों की नितान्त आवश्यकता है। डॉ कविता भट्ट की पुस्तक 'सूर्य' इस दिशा में एक सार्थक प्रयास है। लेखिका ने सौर परिवार के मुखिया तथा ऊर्जा के मुख्य स्रोत सूर्य की वैज्ञानिक जानकारी दी है। सूर्य में पाई जाने वाली प्रमुख गैसों की जानकारी दी है। साथ ही मरुस्थल, विषुवतीय क्षेत्र, उपोष्ण कटिबन्ध तथा मध्य यूरोप में ऊर्जा की उपलब्धता की रोचक जानकारी भी शामिल है। सौर मण्डल, सूर्य की गतियाँ, सूर्य के वायुमण्डल की आन्तरिक रचना, सूर्य के धब्बे, सौर परिवार के सदस्य, पृथ्वी पर सूर्य का प्रभाव, सूर्य: विभिन्न ऊर्जाओं का जन्मदाता, सूर्यग्रहण इन सभी विषयों को चित्रों के माध्यम से सरल और सुबोध शैली में समझाया गया है।

8-चन्द्रमा (डॉ.कविता भट्ट) : लेखिका की यह पुस्तक भी बहुत रोचक है। पृथ्वी के इस प्राकृतिक उपग्रह चन्द्रमा का अपना प्रकाश नहीं होता। हमारे जीवन में इसका विशेष महत्त्व है। चन्द्रमा की कलाएँ की कलाएँ, छाया, छाया के प्रकार, चन्द्र-ग्रहण, खगोल विज्ञान, पंचांग, जयसिंह की वेधशाला, भास्कराचार्य द्वितीय, विक्रम अम्बालाल सारा भाई के कार्यों की जानकारी भी दी है। ये अतिरिक्त जानकारियाँ किशोर पाठकों की ज्ञान पिपासा को शान्त करेंगी और उनके मन में और अधिक जानने की जिज्ञासा जाग्रत करेंगी।

प्रकाशन-विवरण:-

1-पृष्ठ: 20; मूल्य: 50 रुपये, साहित्यायन ट्रस्ट, 101, वर्ष: 2017, अर्श कॉम्पलेक्स, सेक्टर-अल्फ़ा-1, ग्रेटर नोएडा-201308

2-पृष्ठ: 20; मूल्य: 30 रुपये, वर्ष: 2015 (राष्ट्रीय पुस्तक न्यास)

3-पृष्ठ: 20; मूल्य: 25 रुपये, वर्ष: 2014 (राष्ट्रीय पुस्तक न्यास)

4-पृष्ठ: 16; मूल्य: 35 रुपये, वर्ष: 2017 (प्रथम बुक्स)

5-पृष्ठ: 10; मूल्य: 30 रुपये, वर्ष: 2017 (प्रथम बुक्स)

6-पृष्ठ: 16; मूल्य: 35 रुपये, वर्ष: 2017 (प्रथम बुक्स)

7 और 8-प्रत्येक पृष्ठ: 32; मूल्य: 50 रुपये, वर्ष: 2015 (राघव पब्लिकेशंस डब्ल्यू ज़ेड-73, ज्वाला हेड़ी, पश्चिम विहार नई दिल्ली-110063)

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