पूँजी / रामस्वरूप किसान

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुदरत हरेक आदमी नै एकाध चीज इसी देवै जकी रै बूतै बो होसलै अर उमाव सूं जी सकै। आ चीज उण रै भीतर एक पावर रै रूप में रैवै। ओ पावर उण रै जीवन में भांत-भांत रा रंग भरै। हीण भावनावां पर काबू पावै। अठै सूं ई जीवण-रस सांचरै। ओ रस जीवण रै हरयौ-भरयौ राखै। जड़ता नै तोड़‘र गतिशील बणावै। मिनख नै करम सूं जोड़ै। बुरै बखत सूं लड़ण री ताकत देवै।

कैवण रो मतलब ओ पावर आदमी नै जींवतौ राखै।

तो इण पावर रै रूप में दलीप कन्नै एक चीज ही। जकी नै आपणै लोक में मिनख रो आधो भाग मान्यो है। ओ आधो भाग उण कन्नै मौकळो हो। कैय सकां कै इण रै अलावा उण कन्नै कीं कोनी हो। न धन न दौलत। न मां ना बाप। न भाई न भैण। अर न ई कोई रिस्तैदार। बो सफा एकलो। डंडम-डंडा। पण उण कन्नै बा चीज बाफर ही, जकी रो ऊपर बखाण हुयो है। मिनख रो आधो भाग। मतलब रूप। फुटरापो।

उण रो उणियारो फिल्म अभिनेता दलीप कुमार सूं मिलै हो। बिसो ई नाक-नक्स। बिसा ई बाळ। बिसी ई कद काठी।

इणी सारू स्यात गांव आळां उण रो नांव दलीप टिका लियो हो। गांव आळां ?

हां, गांव आळां ई टिकायो हो उण रो ओ नांव। बो आप रो असली नांव तो मां-बाप रै काळजै छोड‘र च्यार-पांच साल री उमर में ई रूळतो-रूळतो अठै आयग्यो हो। कोई बिखै में बिछड़ग्यो हो लाई अर मुड़ मां-बाप सूं भेंटो नीं हो सक्यो। सेवट अठै रो होय‘र रैयग्यो। लोगां रै कार-मजूरी कर‘र पळग्यो। अर पळयो ई इसो कै आखै गांव थुथकारो नाख्यो। कारण, सरोढ हो बापड़ो। आगै आयो बिसो ई खा लियो। कार करी पण पेट भूखो नीं रैयो।

इण सारू ई गांव रै तगड़ै जुवानां में गिणती हुवै उण री। अब तो बो खुराक ई आछी खावै। क्यूंकै एकली ज्यान। कमावै उतो ई खाल्यै। के पोतां नै धन करणो है - बो जाणै। ईं सारू आखै मजूरां में न्यारो ई डील है उण रो। अर ऊपर स्यूं अणूंतो रूप, बेमाता रो दियोड़ो।

दलीप नै आप रै रूप पर भोत गुमेज हो। आ बात उण रै हाव-भाव सूं साफ झलकै। उण रै हांसणै-बोलणै अर चालणै रो ठरको ई न्यारो हो। बो पढ़यो-लिख्यो कोनी हो पण आधुनिकता में पढ़यै-लिख्यां सूं दो पांवड़ा आगै हो। कार-मजूरी करतै थकां ई छैलो नंबर वन हो। दिनूग्यै न्हा-धो‘र काम पर जावणो उण रो नेम हो। गाबा भावूं रात नै धोणा पड़ै, बो मैलो नीं रैंवतो। खेतां में काम करतौ हुवै भावूं गांव में। उण रा गाबा तो पळका ई मारता। गांव में अक्सर बो पलदारी रो काम करतो। आखै पलदारां में न्यारो ई दीखतो बो।

घर रै नांव पर उण कन्नै गांव रै ताल में फगत एक कच्चो कमरो हो। बींयां देखां तो कमरो नीं ड्राइंग रूम हो। म्हैं एक दिन चल्यो गयो। कमरै में बड़‘र देख्यो तो म्हैं देखतो ई रैयग्यो। छकड़ीगम हुयोड़ो-सो ऊपर नीचै, असवाड़ै-पसवाड़ै देखण लाग्यो तो दलीप बोल्यो -

‘ईंया के देखो काका ?’

‘तेरो घर देखूं यार’

‘घर कठै है काका...।’

नाड़ रो झटको देय‘र बाळां में हाथ फेरतै थकां बोल्यो।

‘घर रै के सींग हुवै यार ! इसो फूटरो कमरो तो चैधरियां रै ई कोनी।’

‘आपां के चैधरियां सूं कम हां ?’


बो खिलखिलाय‘र हांस्यो तो म्हनै लाग्यो, पड़दै पर सागी दलीपकुमार ई हांस्यो है।

म्हैं उण रै मूं कानी देखण लागग्यो अर मन ई मन सोच्यो, ओ तो बंबई में होणो चइयै हो। विधाता रा लेख ई अजब है। दलीप कुमार री अभागी काया अठै आय‘र पड़ी है। इसो डील जे किणी पूगतै कन्नै हुवै तो के लेखा है ! पण जाड़ है बठै चीणो कोनी अर चीणो है बठै जाड़। आ ता बो हुगी कै रूप रोवै, करम खा, रूप री धिराणी छा मांगण जा। के सा‘रो पड़ै। जिग्यां सिर नीं पूगण रै कारण फिल्मी हीरो गांव रो मजूरियो बणग्यो।

‘के सोचण लागग्या काका ?’

‘नां कीं कोनी सोचूं, तेरो घर देखूं।’

‘फेर बा ई बात। कठै है घर ?’

म्हनै लाग्यो उण व्यंजना में कैयो है।

म्हैं बोल्यो -

‘घर बंधादयूं ...?’

‘क्यांमी। मरास्यो के ? एकलै रो पेट ई मस्सां भरीज्यै। खरचो भोत है मेरो।’

‘बो तो म्हनै दिखै।’

म्हैं मेज तळै पड़यै अंग्रेजी रै खाली पउवां कानी इसारो करयो।

‘कदे-कदे ई काका, बस बार-त्यूंहार।’

बो आंख्यां नै घुमांवतै थकां बोल्यो।

जद म्हैं जाण लाग्यो तो उण म्हारो हाथ पकड़ लियो।

‘बिना चां पींयां ई ..?

म्हैं फूटरी-सी चादर बिछायोड़ै मांचै पर बैठग्यो। बो स्टोप पर चा बणावण लागग्यो अर म्हैं उण रै घर रो जायजो लेवण लागग्यो। 12 बाई 12 रो कच्चो-सो कमरो। पण पूरै कमरै में भीतरलै पासै बिरंजी ठोक-ठोक अखबार चढायोड़ा। छात रो कच्चापण ढकण सारू पूरी छात रै निचलै पासै नुंवै कपड़ै री खोळी चढायोड़ी। कमरै रै एक कूणै में पै‘रण आळा गाबा सूं टूटती तणी। बारणैं साम्हीं फट्टै पर चमचमांवतै बरतणां री लैण। फट्टै रै तळै भींत पर टंग्योड़ो आदमकद दर्पण। दर्पण रा नुंवो-नकोर कंघो। कमरै रै एक खण में आटै रो पीपो, लूण-मिरच, चाय-चीनी रा डबड़ा। बठै ई एक पासै स्टोप। बारणै रै सा‘रै एक कानी एक लांबी चैड़ी मेज। जकी पर दलीप सिणगार रो समान राखै। भांत-भांत रो तेल, क्रीम, पाउडर। इण रै अलावा पूरो कमरो भांत-भांत री फोटूवां सूं अटयोड़ो। समान री इण भीड़ में कमरै रै उतरादै चांदै सा‘रै एक छोटी सी मेज पर ब्लैक एंड व्हाइट टी.वी। ओ भरयो-भतूलो कमरो दलीप रै जीवटपणै री साख भरै हो। म्हनैं लाग्यो, दलीप एकलो कोनी। उण रै भीतर एक भोती बड़ी दुनिया है। एकलो आदमी अ ऐड़ै ठाठ-बाट सूं नीं रैय सकै।

अचाणचक दलीप आय‘र म्हारै बिच्यारां री रील तोड़ दी -

‘ल्यो काका, चा।’

म्हैं तो पींवतै-पींवतै उण सूं एक सवाल करयौ -

‘थूं इत्तो जीवट किंयां है दलीप ?’

‘जीवट ?’

‘हां, इत्ती खुसी, इत्ती मौज-मस्ती, इत्तो रंग-चाव। इसो के है तेरै कन्नैं ?’

‘बस, आपणो डील। आ ई म्हारी तो पूंजी। दिन में दो च्यार बर सीसै में देख ल्यां इण नै।’

आ कैय‘र बो ताळी पीटतो जोर स्यूं हांस्यो।

म्हैं उण रै मूं कानी देखबो करयो

आछी फबै ही उण रै होठां हांसी। अर बै दूध-सा धोळा दांत।

दलीप सूं मिल्यै नै कई दिन हुग्या। एक दिन म्हैं सुण्यो कै बो बीमार-सो चालै। म्हनैं भोत अचरज हुयो। बो अर बीमार ? आ किंयां हो सकै ! म्हैं उण सूं मिलण सारू चाल पड़यो। बो मूं पर मफलर पळेटयां कमरै रै बारणै में खड़यो हो। म्हनै देखतां ई साम्हीं भाज्यो अर म्हारै बांथ भर‘र रोवण लागग्यो।

म्हैं पीठ पळूंसतो बोल्यो -

‘के बात है बेटा ! कांईं हुयो ? ईंया क्यूं करै ?’

‘मरग्यो काका ! म्हारो सो‘ कीं लुटग्यो। अब म्हैं जी कोनी सकूं।’

‘ईंया के हुयो ?’

आ कैवतै थकां म्हैं उण नै बावां सूं अळगो करयो तो देख‘र म्हारा तो तिराण फाटग्या। उणरा ऊपर-निचै रा दोनूं होठ धोळा हुग्या हा।

म्हैं बीं रो ओ चै‘रो देख नीं सक्यो अर आंख्यां आगै हाथ देय‘र फूट पड़यो।