पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई / जयप्रकाश चौकसे

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पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई
प्रकाशन तिथि : 13 अप्रैल 2020


सई परांजपे ने अत्यंत मनोरंजक फिल्म ‘चश्मेबद्दूर’ बनाई थी। दीप्ति नवल ‘चमको’ नामक कपड़े धोने का साबुन घर-घर जाकर बेचती हैं। तीन युवा एक किराए के मकान में रहते हैं और उनमें दीप्ति नवल को प्रभावित करने की होड़ लगी है। सई परांजपे ने खरगोश और कछुए की दौड़ से प्रेरित ‘कथा’ नामक फिल्म बनाई थी। ज्ञातव्य है कि खरगोश और कछुए में तेजी से मंजिल पर पहुंचने की प्रतिस्पर्धा होती है। आधी दूरी तय करके अहंकार से भरा खरगोश झपकी ले लेता है और धीरे चलने वाला कछुआ मंजिल पर पहुंच जाता है। ‘कथा’ में नसीरुद्दीन शाह कछुआ और फारूख शेख खरगोश बने थे। उस दौर में फारूख शेख को गरीब निर्माता का राजेश खन्ना माना जाता था।

परांजपे की ‘स्पर्श’ नामक फिल्म में नसीरुद्दीन शाह जन्मांध हैं और ईश्वरीय कमतरी के शिकार लोगों की एक संस्था को संचालित करते हैं। शबाना आजमी अभिनीत पात्र एक युवा विधवा का है, जिसे नसीर संचालित संस्था में नौकरी मिल जाती है। दोनों एक-दूसरे को करीब से जानते हुए प्रेम करने लगते हैं। नसीर, शबाना के विगत की बात अन्य स्रोत से जानकर उससे नाराज हो जाता है। राज कपूर की प्रेम त्रिकोण फिल्म ‘संगम’ में भी ऐेसी ही परिस्थिति बनती है। शैलेंद्र रचित गीत है- ‘ओ मेरे समन ओ मेरे सनम, जो सच है सामने आया है, जो बीत गया वह सपना था, यह धरती है इंसानों की, कुछ और नहीं इंसान हैैं हम…। बहरहाल, समय का मरहम गलतफहमी से जन्मे जख्मों को भर देता है। इसी तरह ‘स्पर्श’ भी एक सुखांत फिल्म है।

खाकसार की लिखी आर.के. नैयर की फिल्म ‘कत्ल’ में ध्वनि पर निराशा साधने वाले पात्र की कथा प्रस्तुत की गई थी। ऋतिक रोशन और यामी गौतम अभिनीत ‘काबिल’ का अंधा नायक भी अपनी पत्नी के साथ दुष्कर्म करने वाले चार लोगों का कत्ल कर देता है। ‘काबिल’ दक्षिण कोरिया में बनी फिल्म की प्रेरणा से बनी थी। अंग्रेजी साहित्य के महान लेखक जॉन मिल्टन ने ‘पैराडाइज लॉस्ट’ नामक महाकाव्य लिखा। उन्होंने ‘सैमसन एगोनिस्टिक’ भी लिखा था। अपने दल के लिए हजारों प्रतिवेदन लिखते-लिखते उनकी आंखों की रोशनी चली गई। अंधा होने के बाद उन्होंने महाकाव्य ‘पैराडाइज रिगेंड’ लिखा। गौरतलब है कि देख सकने के समय ‘पैराडाइज लॉस्ट’ और दृष्टि जाने पर ‘पैराडाइज रिगेंड’ लिखा है। हमारे ग्वालियर के मित्र पवन करण के दामाद का नाम भी जॉन मिल्टन है। कवियों के नाम अपने बच्चों को दिए जाएं, यह तो समझ में आता है, परंतु दक्षिण भारत में एक नेता पुत्र का नाम हिटलर है। मुंबई में ‘हिटलर’ नामक रेस्त्रां के मालिक को रेस्त्रां का नाम बदलने के लिए आंदोलन किया गया था। टाइटल में ‘गेजा’ का इस्तेमाल इसे बाइबिल प्रेरित ‘सैमसन एगोनिस्टिक’ से जोड़ देता है। उपन्यास में एक सीनेटर अपनी पत्नी और बेटी के साथ यात्रा कर रहा है। कार दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है। सीनेटर मर जाता है, पुत्री की एक आंख चोटिल हो जाती है, पत्नी उसे एक अस्पताल में ले जाती है। बहरहाल, अस्पताल का एक डॉक्टर उसका पूर्व परिचित है।

सच्चाई यह है कि इसी डॉक्टर ने महिला के साथ विवाह करने से इनकार किया था। महिला डॉक्टर को पुरानी बातें सुनाकर उसे शल्यक्रिया करने में देरी कराती है। मेडिकल तथ्य है कि जख्मी आंख समय रहते निकाली जाए तो दूसरी आंख भी काम करना बंद कर देती है। जरा इस रोग के नाम पर गौर करें ‘सिम्पैथेटिक ऑप्थैल्मिया’। बहरहाल शल्य क्रिया में देरी के कारण कन्या की दूसरी आंख भी काम नहीं करती। वह महिला डॉक्टर पर लापरवाही का मुकदमा कायम करके एक बिलियन डॉलर का दावा ठोंकती है। अदालत में डॉक्टर अपना बचाव स्वयं करता है। लब्बोलुआब यह है कि डॉक्टर मुकदमा जीत जाता है। बाद में यह साफ होता है कि सीनेटर की पत्नी ही षड्यंत्र रचती है। एक कहावत है कि- प्रेम निवेदन में अस्वीकार होने वाली स्त्री घायल शेरनी के समान होती है। याद आता है कि फिल्म ‘मेरी आंखें, तेरी सूरत’ का गीत- ‘पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई, एक-एक पल जैसे एक जुग बीता, जुग बीते मोहें नींद न आई।’