पूरी तरह तैयार / सुषमा गुप्ता
लड़का पूरी तरह तैयार हो कर आया था... सूट, टाई और पॉलिश से चमकते जूते...
"कहाँ जाना है?" रोबीली आवाज़ ने पूछा।
"ऊपर जाना है।"
"क्यों जाना है ऊपर... अभी तुम उसके लिए तैयार नहीं दिखते।"
"मैं पूरी तरह तैयार होकर आया हूँ... मेरे पास सारी डिग्रियाँ हैं।"
"वो काफ़ी नहीं।" आवाज़ में थोड़ी हिकारत महसूस हो रही थी।
"डिग्रियाँ काफ़ी नहीं तो फिर और क्या चाहिए?" लड़का कन्फ़्यूज़ दिखने लगा।
"ऊपर जाने के लिए तुझे अपने कुछ हिस्से देने होंगे।" सपाट और ठण्डा जवाब आया।
"हिस्से...! मतलब?" लड़के की आँखें कुछ ज़्यादा ही फैल गईं
"अच्छा, ज़रा उचक कर दफ्तर के अंदर दाईं तरफ देखो और बताओ क्या हो रहा है?" उसने आदेश दिया।
लड़के ने पंजों पर सारा भार डाला और ध्यान से सुनने लगा। "अरे हाँ, वह दफ्तर का बाबू उस दूसरे आदमी से फ़ाइल आगे सरकाने के पैसे माँग रहा है।"
वो आग बबूला हो चिल्लाई "कान निकाल दोनों और रख यहाँ दहलीज़ पर। ये अंदर के माहौल के लायक नहीं हैं।"
लड़के ने सहम कर कान निकाल कर रख दिए.
आवाज़ एक बार फिर गूँजी..."अब बाईं तरफ़ देखकर बता कि वहाँ क्या हो रहा है?"
उसने भरसक प्रयत्न किया... जो कुछ देखा उसे अवाक् करने के लिए काफ़ी था।
"बोल न क्या देखा?"
"वो बड़े साहब किसी आधी उम्र की युवती के साथ अश्लील ..."
"चुप, चुप, चुप जाहिल। तू तो बिल्कुल लायक नहीं अंदर जाने के. निकाल, अभी की अभी निकाल, ये आँखें और रख यहाँ पायदान के नीचे। अंदर बस बटन एलाउड हैं।"
"जी"
उसने मिमयाते हुए कहा और आँखें निकाल कर दे दीं। अँधेरे को टटोलते हुए पूछा "अब जाऊँ?"
"अभी कैसे। ये पैर भी काटकर रख।"
"फिर मैं चलूँगा कैसे?" अब वह लगभग बदहवास हो चला था।
"अंदर बैसाखियाँ दे दी जाएँगी। रैड-टेपीज़म ब्रांड की। चल-चल जल्दी कर और भी हैं लाइन में वरना।"
लड़के ने पैर भी काटकर दे दिए.
गरीबी मुस्कुराते हुए दफ्तर के द्वार से हट गई और बोली "जा अब तू पूरी तरह तैयार है।"
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