पूर्णमद: पूर्णमिदम् / विनोबा भावे
Gadya Kosh से
एक दफा एक पिता और पुत्र खाने बैठे। पिता की थाली में मां ने एक पूरा लड्डू रखा और बच्चे की थाली में आधा। बच्चा रोने लगा, हठ करने लगा कि हमे पूरा ही लड्डू चाहिए।
मां कुशल थी। उसने एक छोटा-सा गोल लड्डू बनाया। और बच्चे को परोस दिया। लड़का खुश हुआ, क्योंकि उसे पूरा लड्डू मिल गया था।
इसका अर्थ यह हुआ कि बच्चा कहता है, "मेरा बाप जितना पूर्ण आत्मा है, उतना ही पूर्ण आत्मा मैं भी हूं। मैं छोटा हूं, पर टुकड़ा नहीं हूं।"
जो विश्व का राज होगा, वह बड़ा होगा और गांव का राज छोटा लड्डू होगा। पर वह भी पूर्ण होना चाहिए। इसीलिए हम हमेशा कहते हैं—"पूर्णमद: पूर्णमिदम्।"