पूर्व-प्रेमिका का अभिमान / पवित्र पाप / सुशोभित

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पूर्व-प्रेमिका का अभिमान
सुशोभित


जब सुशान्त सिंह राजपूत की मौत की ख़बर आई तो उसमें मुझे निजी क्षति जैसा कुछ अनुभव नहीं हुआ, बस एक सेंसेशन ही सब तरफ़ था, जो मुझे उस तरह से छू रहा था, जैसे एक न्यूज़ की अर्जेंसी आपको गिरफ़्त में ले लेती है। यह यूनिवर्सल सेंसेशन एक जवान-मौत पर था कि जो लड़का इतना युवा, सुंदर, स्वस्थ, प्रसन्नचित्त, संघर्षशील और बुद्धिमान था, वह अचानक कैसे चल बसा? आरम्भ में उनकी कथित आत्महत्या पर अविश्वास का आघात सब तरफ़ दिखाई दिया। फिर दु:ख फूटा। उनके गुण उभरकर सामने आए। मुझे नहीं मालूम था कि सुशान्त ने चांद पर ज़मीन ख़रीदी थी, या वो दूरबीन से तारों को निहारते थे (यह डिटेल जानकर मुझे मिली फ़िल्म के अमिताभ बच्चन की याद आई)! तब यह पता चला कि वो क्वान्टम भौतिकी में गहरी दिलचस्पी रखते थे, इंजीनियरिंग के छात्र थे, वो एक साधारण बिहारी परिवार से आए थे- अलबत्ता उनका सुदर्शन मुखमण्डल और शरीर- सौष्ठव इस मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि के बारे में अधिक सूचनाएं नहीं देता था।

कुछ तो महामारी से उत्पन्न सामूहिक नैराश्य का परिणाम रहा होगा, कुछ इस साल हुई अप्रत्याशित मृत्युओं के सिलसिले का कि अचानक सुशान्त के अवसान ने जनचेतना को ग्रस लिया। कोई उन्हें भुला नहीं पा रहा था। उन्हें अपने जीवनकाल में इतना प्रेम और समर्थन कभी नहीं मिला था, जितना अब मिल रहा था। इसके लिए मैं किसी को दोष नहीं देता। मृत्यु में कुछ अनिवर्चनीय सम्मोहन है, जो मिथकों को जन्म देती है। अब यह फिर नहीं होगा- यह एक कीलित कर देने वाली अनुभूति है। जो जीवित है, वो भले सुंदर हो, किंतु जीवन का दोष उसके प्रति हमारे निर्णय को स्थगित रखता है। जो मर गया, उसके दोष सहसा उसके गुणों की तुलना में निष्प्रभ हो जाते हैं। उसके बारे में निर्णय करना अधिक सरल हो जाता है। यह निर्णय सदाशय हुआ करता है। इसमें करुणा भी होती है। दु:खियारे के प्रति सहानुभूति एक अलिखित प्रतिज्ञा है और मरने वाले ने ख़ुशी-ख़ुशी इस संसार को नहीं त्यागा होगा, यह अनुमान हम अपनी जिजीविषा से लगाते हैं।

जब सुशान्त के बारे में सूचनाएं सामने आ रही थीं, तब मुझे पता चला कि अंकिता लोखण्डे से उन्हें प्रेम था। दोनों सात वर्षों तक सम्बंध में रहे। फिर अलगाव हो गया। एक लोकप्रिय धारावाहिक में वो साथ थे, फिर एक रियल्टी शो में भी साथ रहे। वो एक लोकप्रिय युगल थे। किंतु बाद में दोनों ने अपने रास्ते अलग चुन लिए। उनके बीच क्या हुआ था, यह तो उन दोनों के सिवा कोई नहीं जान सकता, और बहुधा ऐसा होता है कि प्रेमियों को भी ठीक-ठीक मालूम नहीं होता कि आख़िर हुआ क्या था। प्रेम का सम्बंध इतने लगावों, चाहनाओं, भावना की तीव्रताओं, मनोवेगों और कुछ ऐसे डेस्पेरेशन से भरा होता है, कि वह किसी को भी सम्भ्रम से भरने के लिए पर्याप्त है। प्यार में ठोकर बहुत मिलती हैं, जबकि यह पूरी तरह सम्भव है कि किसी को इसकी भनक तक ना लगी हो कि वो क्या कर गुज़रा है, या अगर उस पर कुछ बीती हो तो वो इस अनुभूति को दूसरे तक कैसे सम्प्रेषित करे। किंतु इसके बाद अंकिता के व्यक्तित्व में मेरी रुचि जागी और कौतूहलवश मैं उनके सोशल मीडिया हैंडल्स पर जाकर देखने लगा कि इस घटना पर उनकी क्या प्रतिक्रिया रही है। क्योंकि इस हादसे के बाद उनके व्यक्तित्व के जो ब्योरे उभरकर सामने आए, वो अपने आपमें एक समान्तर कथानक के हिस्से हैं।

सुशान्त की मृत्यु के कोई एक महीने तक अंकिता ने भरसक मौन साधे रखा। फिर उनकी तरफ़ से पहला सार्वजनिक बयान आया। देवता के समक्ष जलते दीपक का चित्र रखकर उसने इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया- चाइल्ड ऑफ़ गॉड। ईश्वर की संतान का यह विशेषण सुशान्त के लिए है, यह स्पष्ट था। फिर उसी देवली के एक दूसरे कोने की तस्वीर सामने आई, जिसमें इस बार जीज़ज़ और मरियम की मूर्तियों के सामने मोमबत्ती जल रही थी और नीचे लिखा था- उम्मीदें, प्रार्थनाएं और हौसला। सुशान्त की आख़िरी फ़िल्म रिलीज़ हुई तो उन्होंने लिखा- पवित्र रिश्ता से दिल बेचारा तक : एक आख़िरी मर्तबा। फिर जांच के क्रम में दो बार अहम फ़ैसले लिए जाने पर उन्होंने कहा- सच की जीत होती है और जिस लमहे का हमें इंतज़ार था, वो आ गया। एक बार उनकी पोस्ट थी- मैंने अपनी आत्मा के इशारे पर अपनी राह चुनी है। उनकी आख़िरी पोस्ट में वो सुशान्त की मां का चित्र हाथों में थामे हैं और कह रही हैं- मुझे विश्वास है, आप दोनों आज साथ होंगे।

सुशान्त और अंकिता में ना केवल अलगाव हुआ था, बल्कि वो दोनों अपने नए जीवन में स्थिर भी हो चुके थे। ऐसे में अंकिता की लगाव भरी प्रतिक्रियाएं आश्चर्य से भरती हैं। मूव-ऑन- यह इस संसार के कठोरतम और क्रूरतम शब्दों में से है। जैसे सांप अपनी केंचुल से बाहर निकल जाता है, उसी तरह से लोग किन्हीं रिश्तों से बाहर आ जाते हैं। जो पहले त्वचा थी, अब खोल रह जाती है। त्वचा पर लगी चोट स्वयं को लगती है, केंचुल पर लगी चोट से किसी को दर्द नहीं होता। किंतु अंकिता ने टीवी पर आकर यह जताने से संकोच नहीं किया है कि सुशान्त के प्रति उनके मन में मीठी स्मृतियां और कोमल भावनाएं अभी जीवित हैं। कि शायद सम्बंध-विच्छेद इतना पूर्ण नहीं रहा होगा, जितना ऊपर से जतलाया जाता था। यह भी सम्भव है कि सम्बंध-विच्छेद सुशान्त की तरफ़ से रहा हो, जिसे अंकिता कभी स्वीकार नहीं कर पाई हों। अंकिता ने टीवी इंटरव्यूज़ में बड़ी गरिमा का परिचय दिया है। उन्होंने सनसनीख़ेज़ बातों से सतर्क दूरी बनाए रखी। उन्होंने रिया चक्रबर्ती के बारे में भी निर्णय सुनाने वाला कोई बयान नहीं दिया।

उन्होंने किसी तरह की कटुता नहीं प्रदर्शित की, जो कि ब्रेकअप्स का अनिवार्य परिणाम होती है। चर्चाओं से यह भी पता चला कि अंकिता हमेशा से ही सुशान्त के परिवार के सम्पर्क में रही थीं और आज भी सुशान्त की बहनों की भावविभोर कर देने वाली पोस्ट्स (हाल ही में रक्षाबंधन का पर्व मनाया गया था और सुशान्त चार बहनों के बीच इकलौते भाई थे) पर अंकिता के कमेंट्स दिखाई दिए हैं। सुशान्त के पिता ने कहा था कि वो सुशान्त के जीवन में आई लड़कियों में से केवल अंकिता को पहचानते थे। यानी कदाचित् उनका परिवार उन दोनों के सम्बंध-विच्छेद से राज़ी नहीं था। वो अंकिता को मन ही मन सुशान्त की संगिनी की तरह देखते थे और अंकिता ने इस बात का अभी तक मान रखा है।

अंकिता को देखकर लगा नहीं कि पवित्र रिश्ता सच में ही टूट गया था। अंकिता को देखकर यह भी नहीं लगा कि वो किसी दूसरे रिश्ते में जा चुकी हैं। अहसास हुआ कि वो अभी तक मूव-ऑन नहीं कर सकी हैं। अलबत्ता कहीं ना कहीं उनके मन में यह ज़रूर रहा होगा कि मुझे अपने वर्तमान प्रेमी के प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित करने के लिए भी अब अतिरिक्त प्रयास करना होंगे और आगे चलकर उन्होंने वैसा किया भी। लेकिन एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने यह कहने से परहेज़ नहीं किया कि मुझमें ही शायद कोई कमियां रही होंगी, जो हम अलग हो गए। फिर आगे जोड़ दिया, या शायद हमारा रिश्ता ही इतना मज़बूत नहीं रहा होगा। किंतु वो इस तथ्य के प्रति इतनी निरपेक्ष नहीं हो सकती हैं, जितनी कि दिखलाई देती हैं। उनके भीतर निश्चय ही शिक़ायतें रही होंगी, कटुताएं आई होंगी, अपमान का अहसास होगा, हताशा और अवसाद का एक दौर भी शायद उन्होंने सहा हो। आज अंकिता जिस तरह से सुशान्त को न्याय दिलाने के लिए लड़ रही हैं और उनके परिवार के साथ इस विपत्ति की घड़ी में खड़ी हैं, यह एक तरह से उनकी स्वयं की अस्मिता की लड़ाई भी है। मानो वो सुशान्त से कह रही हों कि तुमने अपने जीवन में सही निर्णय नहीं लिए, या अगर मैं तुम्हारे साथ होती तो आज यह दिन नहीं आता, या मुझसे बेहतर संगिनी तुम्हें कोई और मिल नहीं सकती थी।

और तब, अचानक अंकिता का एक पुराना चित्र नज़र के सामने पड़ता है, जिसमें वो सुशान्त के साथ हैं और नीचे वो लिखती हैं- कौन तुम्हें यूं प्यार करेगा, जैसे मैं करती हूं? यह सुशान्त की फ़िल्म का गीत था, फ़िल्म में इसे उस नायिका ने गाया था जिसे इस गीत के तुरंत बाद एक दुर्घटना में मर जाना था। वास्तविक जीवन में इसका ठीक उलटा हुआ। नायक मर गया है और नायिका जीवित रह गई है। किंतु मृत्यु के इस पटाक्षेप से पहले अलगाव का भी एक नाट्य दोनों के बीच खेला गया था। कौन किससे ज़्यादा प्यार करता था, यह भला कब कोई जान सका है? लेकिन इसे साबित करने का मौक़ा भी हर किसी को नहीं मिलता। और शायद अंकिता ख़ुद को साबित करने से पीछे नहीं हटना चाहती हैं।

सुशान्त की मृत्यु के बाद अंकिता का व्यवहार एक पूर्व प्रेमिका के हृदय, मन और चेतना में उभरने वाली धूपछांही छवियों का रंगमंच है। मनुष्य का अंत:करण अनेक अकथनीय रहस्यों की आश्रयस्थली होता है। ऊपर से दिखाई देने वाली छवियों का छायालोक क्या कभी भी पूरी-पूरी कहानियां बयां कर सकता है?