पृष्ठभूमि / क्यों और किसलिए? / सहजानन्द सरस्वती
अब तक जो कुछ लिखा गया है वह सन 1940 ई. के अप्रैल में होनेवाली जेल-यात्रा तक की ही गाथा है। जेल के ये दो साल कैसे गुजरे और वहाँ कौन सी महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं,यह बात बिलकुल ही छोड़ दी गई, छूट गई है। यह सही है कि यह जीवन-संघर्ष की कहानी जेल में ही लिखी गई। मगर इसका श्रीगणेश वहाँ पहुँचते ही कर दिया गया। फलत: बादवाली बातें लिखी जा सकती थीं नहीं। वे शेष रह गईं। सन 1942 ई. के 8 मार्च को मेरी रिहाई हुई। तब से ले कर आज सन 1946 ई. केमध्यतक की अनेकमहत्त्वपूर्ण घटनाएँ लिपिबध्द न हो सकी हैं। इसके न रहने से यह दास्तान अधूरी ही रह जाएगी, यह राम कहानी अपूर्ण ही मानी जाएगी। इन घटनाओं में कुछ तो बहुत ही अहम हैं, महत्त्वपूर्ण हैं और सिध्दांत की दृष्टि से ही उनका स्पष्ट उल्लेख निहायत जरूरी है। उन पर प्रकाश न पड़ने से अनेक भ्रमों एवं मिथ्या धारणाओं के लिए गुंजाइश भी बनी ही रहेगी। इसीलिए संक्षेप में ही सभी बातें लिख कर इस राम कहानी को आप तक पहुँचा देना जरूरी है।