पेट के दांत / कुबेर

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दांत विषयक इस लेख का उद्देश्य आयुर्विज्ञान के दंत चिकित्सा विज्ञान कोचुनौती देना नहीं है अपितु दांतों की चमत्कारिक शक्तियों को प्रकाशितकरना है।

दांत की शक्तियाँ दो प्रकार की होती हैं - लौकिक और अलौकिक। ईश्वर केसाकार और निराकार स्वरूप की अवधारणा शायद यहीं से प्राप्त हुई होगी। दांतकी इन शक्तियों से संबंधित यह मत दंतयोगवादियों के द्वारा प्रतिपादित है।इस पर शंका न करें।संसारी व्यक्तियों के दांत लौकिक होते हैं जबकि सरकारी लोगों के दांतअलौकिक। लौकिक दांत साकार होते हैं और ये मुंह में पाए जाते हैं। अलौकिकदांत निराकार होते हैं। लोग कहते हैं, ये पेट में पाए जाते हैं।

दुनिया के सारे कर्म-कुकर्म के कर्ता-धर्ता सिर्फ निराकार दांत ही होतेहैं। बाबा तुलसी इन दांतो के विषय में जानते होते तो इनकी महिमा में कुछइस प्रकार की चैपाइयाँ लिखते- बिनु पद चलहिं,सुनहिं बिनु काना। दिखत नहीं, पर खावहिं नाना।।

भोगवादियों ने अलौकिक दांतों के तीन प्रकार बताए हैं। दिखाने के दांत,खाने के दांत और पेट के दांत। धन्य हैं वे, जिन्हें ईश्वर ने ये तीनोंदांत बख्शे हैं। दुनिया में इन्हीं लोगों का बोलबाला है। चारों ओर इन्हींलोगों की जय-जयकार हो रही है। दुनिया में पहले ऐसे लोग बिरले होते थे, अबदिन दूनी रात चैगुनी इनकी आबादी बढ़ रही है।

मुँह में जो दंतावलियाँ होती हैं और जिसे हम बत्तीसी कहते हैं, लौकिकगुणों से युक्त साकार दांत होते हैं। आम लोग भ्रम वश इसे ही दिखाने, खानेऔर पेट के दांत समझ बैठते हैं। लिहाजा न तो वे कुछ खा पाते हैं और न हीतृप्त हो पाते हैं। फिर तो इनकी अतृप्त आत्माएँ जन्म जन्मांतर तक स्वादके भवसागर में भटकती रहती है। जनता नामक योनी में बार-बार जन्म लेती रहतीहै। रो-धो कर जिन्दगी बिताती है। बीमारी और लाचारी में जीती है। शाक-भाजीखा-खा कर आंतों का रोगी हो जाती है।

बत्तीसी के भरोसे न तो कुछ खाया जा सकता है और न खाए हुए को पचाया ही जा सकता है।

खाना और पचाना भी एक कला है। मैं तो कहता हूँ, यह कला ही नहीं,कला-श्रेष्ठतम है। जिसके पास यह कला होती है वह अन्य सभी पर भारी पड़ताहैं। ऐसे लोगों पर ऊपर वालों की सदैव कृपा बनी रहती है। ऊपर वालों की एकस्थापित, अटूट और मजबूत श्रृँखला होती है। हर ऊपर वाला अपने नीचे वाले का पालन-कर्ता होता है।

खाने के दांत न सिर्फ खाने के अपितु कुतरने के भी काम आते हैं। एक बारयदि ये खाने और कुतरने पर आमादा हो जाए तो चूहे भी इनके सामने पानी भरतेनजर आते हैं। दुनिया में ऐसी कांेई चीज नहीं है, जिसे ये खा और पचा नसके। जीने और खाने का भरपूर और वास्तविक आनंद तो ऐसे दांत वाले ही लियाकरते हैं। संभवतः हमारे नेताओं, अधिकारियों और कर्मचारियों को ईश्वर नेऐसे ही दांत नवाजें हों? इनके पूर्वज बंदर तो कतई नहीं हो सकते, हां!चूहे जरूर हो सकते हैं।

दिखाने के दांतों को साधारण दांत समझने की भूल कदापि न करें। इन्हीं केपीछे काटने के दांत छिपे होते हैं। जिनके पास ऐसे दांत होते हैं, दुनियाके सबसे जहरीले प्राणी होते हैं। साँप का काटा तो फिर भी जी जाए, इसकाकाटा मजाल है कि पानी भी मांग ले। व्यापारियों, महाजनों-साहूकारों केदांत जरूर इसी प्रकार के होते होंगे।

पेट के दांतधारी तो साक्षात अवतारी ही होते हैं। जहाँ-जहाँ ईश्वर पायाजाता है वहाँ-वहाँ ये भी पाये जाते हैं। धर्म-कर्म का ठेका इन्हीं लोगोंके पास होता है। ये स्वयं को ईश्वर की ही औलाद मानते हैं। मजाल है कि ऐसेदांत वालों से ईश्वर भी बच जाए?अलौकिक दांतधारियों से ईश्वर इस देश की रक्षा करे।