पेड़ों के रखवाले / सुधा भार्गव

Gadya Kosh से
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एक घने जंगल में पेड़-और झड़ियों की भरमार थी। उसके बीच एक बड़ा-सा टीला भी था जिसके सहारे एक पेड़ खड़ा था जिसे सुबुद्धि कहते थे। वह बहुत सोच-समझ कर कोई काम करता। उससे थोड़ी दूर पर ही दूसरा पेड़ था वह कुबुद्धि के नाम से जाना जाता था। बात-बात में गुस्से से मुंह फुला लेना उसके लिए साधारण बात थी। बिना नतीजे की चिंता किए मूर्खता भरे काम करता रहता।

दोनों हरे-भरे और घने थे। गर्मियों में इनकी शीतल छाया उस टीले पर पड़ती थी। शेर-बाघ-चीते छोटे-छोटे जानवरों का शिकार करते और टीले पर बैठकर मजे से खाते। उनके डर से मजाल थी कि किसी आदमी की जंगल की ओर नजर उठाने की हिम्मत हो जाए. अपनी गुफा में जाते समय जानवरों की हड्डियां और माँस के टुकड़े वे वहीं छोड़ जाते। इससे वहाँ बदबू ही बदबू फैल जाती।

एक दिन कुबुद्धि ने कहा-जंगली जानवरों के कारण जंगल की हवा खराब हो गई है। मेरा तो सांस लेना भी कठिन हो रहा है। अब तो मैं इन्हें भगा कर ही दम लूँगा। -मित्र ऐसी बात न कहो। इन के कारण हमारा पूरा घर यानी जंगल सुरक्षित है। शेर-बाघ के भाग जाने से मनुष्य निडर हो जाएगा। वह किसी भी दिन फावड़ा-कुदाली और आरी लेकर आन धमकेगा। सारे पेड़ों को काटकर मैदान बना देगा मैदान और फिर तो मजे से वह उस पर खेती करेगा। ये पशु एक तरह से हमारा भला चाहने वाले मित्र हैं। अगर मित्रत़ा बनाए रखने के लिए कुछ सहा जाये तो इसमें बुरा क्या है! सुबुद्धि बोला।


-ये उपदेश अपने पास ही रखो। एक दिन उनको ऐसा मजा चखाऊँगा कि जन्मभर याद रखेंगे।

मूर्ख ने मित्र की बात समझने की ज़रा भी कोशिश न की। एक दिन क्रोध में कांपते हुए अपनी मोती-पतली टहनियाँ जोर-जोर से जमीन पर पटकने लगा। चारों तरफ भयानक फटफट आवाज होने लगी और पत्तों की बौछारें अलग। इससे शेर-बाघ भाग खड़े हुए. सोचा-कहीं यह पेड़ ही न उनके ऊपर गिर पड़े। आगे-आगे राजा शेर और पीछे बाक़ी जानवर। सबने वह जंगल छोड़ दिया।

बहुत दिनों तक जब मनुष्य ने जंगल के आस-पास बाघ-शेर के पैरों के निशान न देखे तो उन्हें विश्वास हो गया कि ज़रूर वे किसी दूसरे जंगल में चले गए हैं। उन्होंने शीघ्र ही जंगल का एक भाग काट डाला। यह देख मूर्ख पेड़ अपनी करनी पर बहुत पछताया।

रूआँसा-सा अपने मित्र से बोला-मुझे क्षमा करो! मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी। जानवरों के चले जाने से मनुष्य जंगल काटने लगे हैं। अब मैं क्या करूँ? -जानवर अमरू जंगल में चले गए हैं। उनको जाकर ले आओ.

दूसरा पेड़ उस जंगल में गया और बोला-आओ बाघों—आओ शेरों—अपने वन में लौट चलो। तुम्हारे न होने से मनुष्य का साहस बढ़ गया है। वह जंगल काटने आ पहुँचा है। तुम हमारे रखवाले हो। आकर हमें बचा लो। -लौट जाओ–लौट जाओ—हम नहीं जायेंगे। तुम्हारा क्या भरोसा—फिर भगा दो। जानवर एक साथ चिल्लाए.

कुबुद्धि मुँह लटकाए जंगल लौट आया। कुछ ही दिनों में सारा जंगल काट दिया गया और मनुष्य उस पर खेती करने लगा। मूर्ख के साथ बुद्धिमान भी मारा गया।