पेड़ - 1 / हेमन्त शेष
हमारे घर के छोटे से बगीचे में एक दिन अमरूद का पेड़ कुछ इस क़दर सुन्दर लग रहा था जैसे वह संसार का सबसे सुन्दर अमरूद का पेड़ हो. शाम जब पार्क में गया तो अमलतास के एक पेड़ को देख कर लगा कि क्या अपने अमरूद वाले पेड़ के बारे में मैंने थोड़ी जल्दी राय बना ली थी? अगले दिन जब दोस्त के घर, नए सिरे से गुलमोहर का एक पेड़ देखा तो लगा – “अरे! भाईसाब...संसार का सबसे खूबसूरत पेड़ तो ये रहा!” फिर सड़क के नीम, मेहता साहब के यूकिलिप्टस और ‘जय गोविन्द-नर्सरी’ के फालसे के पेड़ों के साथ भी यही हुआ, अनार, मौलश्री, कचनार, सिरस, चिल्लर, जामुन, धोक और शीशम वगैरह के साथ तो खैर यही वाक्य होना ही था....
इधर मैं अब पेड़ों को मास्टरों की तरह कम ज्यादा नंबर नहीं देता, उन्हें सिर्फ तारीफमिश्रित-ताज्जुब से देखता हूँ...इसलिए भी कि हर पेड़ इतना ‘अलग’ है कि बस... कोई भी पेड़ किसी दूसरे पेड़ से नहीं मिलता!
पर आपसे प्रार्थना है, इसे ‘कम्युनिज्म’ के खिलाफ़ लिखी कहानी मानने से बचें.