प्याज-नमक वार्ता / प्रमोद यादव
पिछले चार-पांच सालों से रसोई के सारे आईटम परेशान है प्याज-नमक के तू-तू ,मैं-मैं से...चांवल-दाल, गेहूं-आटा, घी-तेल, मसूर-तुंवर, जीरा-सरसों, लहसुन-अदरक सब फिर आशंकित हैं- तीन महीने बाद दो अदद प्याज के पुनः रसोई में लौट आने से. इन महीनों में जो एक शांतिपूर्ण माहौल बन पाया था, अब फिर उसके गरमाने के ( बिगड़ने के ) आसार नजर आ रहे.. वैसे गलती प्याज की ही है...उसे यूँ राजकुमार की तरह ‘जानी...’ कहते अकड़कर नहीं आना था..नमक को भी आते ही नमक नहीं छिड़कना था थोड़ी देर बाद ही कह देता - ‘ लौट के बुद्धू घर को आये ’ तो क्या बिगड़ जाता?
प्याज का पहले की तरह वही घिसा-पीटा गुस्सा भरा “ मैं पीता नहीं हूँ-पिलाई गयी है “के तर्ज पर जवाब- ‘ मैं आया नहीं, लाया गया हूँ..ससम्मान..वह भी सोने-चांदी के भाव से..तुम दो कौड़ी के आईटम मेरी कीमत क्या जानो?...बाहर निकलकर देखो सत्ता के गलियारों में मेरी कितनी चर्चा है...सरकार तक मुझसे डरने लगी है..ईश्वर ने तो दो ही आंसू दिए है आदमी को- ख़ुशी के और गम के ...आज लोगों की आँख से जो आंसू बह रहे हैं मैंने दिए- प्याज के आंसू...वैसे तो रुलाना मेरा धर्म है पर यह किचन तक ही सीमित हुआ करता...आज पूरे देश को रुलाकर ‘एक सपना साकार हुआ’ की मानिंद मैं धन्य हुआ .. आज हर टी.वी. चैनल में, अखबार में, मीडिया में सिर्फ मैं हूँ मैं....केवल मैं...’
‘मुझे सब पता है.. ये तो तुम्हारा हर दो-चार साल का नाटक रहता है... मीडिया वाले जिस तरह अपने चैनलों में तुम्हारा परत दर परत उतार तुम्हें नंगाकर बेईज्जत कर रहें है..उसे तुम मान कहते हो? दरअसल तुम्हें प्रचार-प्रसार की भूख ने जकड लिया है..हमारी ऐसी ओछी मानसिकता नहीं...रसोई हमारा धर्म है ..रसोई हमारा ईमान...हमने ना कभी इसे छोड़ा है ना कभी छोड़ेंगे..तुम तो सदा से भगोड़े हो...थोड़े से उंच-नीच में हवा हो जाते हो..और फिर बेशरम की तरह लौट भी आते हो...हर बार का वही बहाना – ‘ आया नहीं हूँ...लाया गया हूँ..’
‘ जो बातें सच्ची है,वही तो कहता हूँ..मैं आसमान पर हूँ इसलिए तुम्हें जलन है..रसोई में तो कौड़ी के हो ही , बाहर सरकार तुम्हे चवन्नी में बेच रही है.. इसलिए तुम्हारी मानसिकता भी चवन्नीछाप है..’
‘ सरकारी भाव पर मत जाओ ..फिलहाल तुम्हारे भाव जो भी हो.पर कई पार्टियाँ उनसे. आधे दामों में तुम्हें बेच रहें हैं..क्या ये तुम्हारा अवमूल्यन नहीं है? ज्यादा घमंड ठीक नहीं..बस चार दिन की चाँदनी है...सरकार बड़ी कमीनी चीज है. कब तुम्हारी परत. उतार तुम्हें नंगा कर दे..पता नहीं चलेगा ’
‘ अरे सरकार क्या है ,तुम क्या जानो..सरकारें तो मुझसे डरती हैं..याद नहीं पिछली बार दिल्ली में भाजपा सरकार को ऐसे गिराया की बेचारे आज तक कुर्सी को तरस रहे..तुममे इतना दमखम है? तुमने क्या किया आज तक? ‘ प्याज जोरों से गरजा.
‘ मेरी ताकत मत पूछो..मेरे कारण ही तो यह देश आजाद हुआ..नमक-सत्याग्रह से ही महात्मा गांधी दुनिया की नजर में आये.. तब नमक-यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक कवरेज दिया...और नमक-यात्रा के कारण ही अंग्रेजों को एहसास हुआ कि उनका राज अब बहुत दिनों तक चलने वाला नहीं..और ये सच भी साबित हुआ....तुम्हारा ऐसा कोई इतिहास है? तुमने तो हमेशा ‘गिराने’ का ही काम किया..’रचने ’ का नहीं.. मैंने तो इतिहास रचा...’
प्याज थोड़ी देर के लिए चुप्पी साध गया मानो इतिहास याद कर रहा हो..फिर बोला- ‘ चलो मान लिया..आजादी तुमने दिलाई..या तुम्हारी बदौलत मिली..पर मैंने भी तो गिरी हुई निकृष्ट सरकार को गिराकर नई सरकार दी...हिसाब बराबर....अब जरा जमीनी बातें करें..अपनी वैल्यू की बाते करें...सदियों से मैं ग्रामीणों के मेनू में रहा हूँ...रोटी के साथ मैं ना होऊं तो बेचारे भूखे ही रह जाएँ.. कमोबेश आज भी यही स्थिति है. खाने के साथ प्याज का सलाद न हो या सब्जी में प्याज न हो तो भला खाना किसे सुहाता है...दारू पीने के बाद प्याज की सलाद न मिले तो नशा ही ना चढ़े.. तुम्हारी क्या वैल्यू है? ‘
नमक ने समझाया- ‘ मेरी वैल्यू ये है कि मानव शरीर के लिए मैं अति अनिवार्य चीज हूँ..ऐसी अनिवार्यता तुम्हारे साथ नहीं...तुम्हारे बिना जिन्दा रहा जा सकता है..कई लोग तुम से परहेज रख पूरी जिंदगी जीते हैं ..कई धर्मशालाओं व होटलों में स्पष्ट लिखा बोर्ड टेंगा होता है- प्याज का उपयोग वर्जित है..तुम ना रहो तब भी लोग आबाद रहेंगे..पर मैं कहीं दाल में ना रहूँ या सब्जी में ना पडूं तो खाने का स्वाद ही बिगड़ जाए..एक बात और...मैं जिसे ‘लग’ जाऊं ( नमक लगना ) तो वह कभी भूले से भी पाला नहीं बदलता..कर्ण ने अपने मित्र दुर्योधन का नमक खाया था इसलिए अंतिम समय तक वह अपने ही भाईयों (पांडवों) से लड़ते नमक का हक़ अदा किया..नमकहरामी नहीं की.’ तुम्हारे साथ ऐसा कुछ है?’
‘ वैसा कुछ हो ना हो पर मुझमें ढेर सारे गुण तो ऐसे है जो तुममे नहीं..मसलन लू के दिनों में लोग मुझे जेब में रख चलते हैं लू से बचने - तुम्हें नहीं..मैं ही हूँ जो आदमी को बदहजमी से बचाता हूँ ,उनकी रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति बढाता हूँ..मुझे सूंघने मात्र से लोगो का सिरदर्द दूर हो जाता है..सरसों के तेल के साथ मिलकर मैं गठिया दर्द को कम करता हूँ..तुम्हारे पास क्या है? ‘
“ मेरे पास माँ है “ के तर्ज पर नमक ने जवाब दिया- ‘ मैं अनिवार्य तत्व हूँ मानव-शरीर का ..मेरा एक गुण ही काफी है..’
फिर प्याज को पटखनी देते कहा- ‘ हम जितने भी आईटम हैं रसोई के.. लगभग सबका ही मुहावरों व कहावतों में स्थान है जैसे- ‘ना नौ मन तेल होगा,ना राधा नाचेगी’..’पांचो उंगली घी में’...’ये मुंह और मसूर की दाल’...’गरीबी में आटा गीला’..’बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद’...’गेहूं के साथ घुन’...’दाल में काला’..’लोहे के चने चबाना’...’तिल का ताड़,राई का पहाड़’..’ऊंट के मुंह में जीरा’...’गुड गोबर करना’..’गुड खाकर गुलगुले से परहेज’..’जले पर नमक छिडकना’..’नमक का हक़ अदा करना’...’नमक लगना ’...’नाकों चने चबाना’.. ‘मुंह में घी-शक्कर’... आदि...आदि... आदि ....तुम अपनी एकाध ही तो बताओ? ‘
प्याज बगले झांकने लगा..सोच की मुद्रा में अपनी परतें खुजलाने लगा ....तभी रसोई की देवी धडधडाते रसोई में घुसी और दोनों प्याज को उठा एक प्लेट में डाल चाक़ू से कच..कच..कच काटने लगी..सारे के सारे आईटम हैरान...देवी के तनिक भी आंसू नहीं निकले..उन्होंने एक मत से ये मान लिया कि बाहर जाकर प्याज बिगड़ गया..उसने अपना निजी गुणधर्म भी खो दिया..वे ऐसे दुखी हुए जैसे किसी ने उसका ‘अस्मत’ लूट लिया हो....बेचारों को क्या मामूम कि आंसू क्यूं नहीं बहे? देवी के सारे आंसू तो उसे खरीदते वक्त ही बह गए थे....रसोई के लिए भला बचा ही क्या था?