प्यार कर ले नहीं तो फांसी चढ़ जाएगा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 16 जनवरी 2022
एरिक सीगल के लघु उपन्यास ‘मैन वुमन एंड चाइल्ड’ से प्रेरित, शेखर कपूर ने नसीरुद्दीन शाह, सईद जाफरी, शबाना आज़मी और जुगल हंसराज के साथ एक फिल्म बनाई, जिसे सराहा गया। नसीर और सईद मिर्जा ने फिल्म में एक गीत ‘हुजूर इस कदर भी ना इतराके चलिए’ जैसे अत्यंत मनोरंजक गीत पर अभिनय किया था। एक दौर में युद्ध की पृष्ठभूमि पर अनेक फिल्में बनीं। जेपी दत्ता के भाई हवाई सेना में अफसर थे। एक अभ्यास के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। जेपी दत्ता को उनकी डायरी मिली, जिससे प्रेरित होकर उन्होंने ‘बॉर्डर’, ‘एलओसी’ इत्यादि सफल फिल्में बनाई। उनकी फिल्मों के संवाद उनके पिता ओपी दत्ता ने लिखे। पिता और पुत्र की इस टीम ने कई सफल फिल्में बनाई। अनु मलिक और जावेद अख्तर ने फिल्म ‘बॉर्डर’ में यादगार गीत संगीत रचा था और अलका याग्निक के गाए दो गानों ने तो महान गायिका लता मंगेशकर द्वारा रचित शिखर के बहुत पास तक पहुंचने का सफल प्रयास किया था। युद्ध से प्रेरित फिल्मों में फरहान अख्तर ने ‘लक्ष्य’ नामक फिल्म बनाई। चेतन आनंद की ‘हकीकत’ रिट्रीट फिल्म है। जवानों की एक टुकड़ी वापसी कर रही है। ‘हकीकत’ की कथा का सारांश तत्कालीन पंजाब मुख्यमंत्री को पसंद आया था और उनकी आर्थिक मदद से ही फिल्म बनी थी। ‘हकीकत’ में कैफी आजमी साहब के लिखे हुए गीत थे। एक सार्थक गीत था ‘मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था के वो रोक लेगी मना लेगी मुझको, मगर उसने रोका न उसने मनाया, न दामन ही पकड़ा, न मुझको बिठाया, न आवाज़ ही दी, न वापस बुलाया, मैं आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया, यहां तक के उससे जुदा हो गया मैं...।’ हमारी युद्ध फिल्मों में भी गीत होते हैं क्योंकि हमारे समाज में जन्म से मृत्यु तक के अवसरों के लिए गीत लिखे गए हैं। फिल्म ‘रुदाली’ में उस समाज का विवरण है जहां महिलाएं किसी की मृत्यु होने पर रोने आती हैं। रोने के बदले उन्हें अनाज और कुछ रुपए दिए जाते थे। फिल्म का मार्मिक प्रसंग है कि उस समाज की ही एक महिला की मृत्यु होने पर रोने वाले नहीं मिलते। एक दौर में आक्रोश की फिल्में बनीं। सामाजिक अन्याय के खिलाफ ओमपुरी अभिनीत गोविंद निहलानी की ‘अर्द्ध सत्य’ एक महान फिल्म है। विजय तेंदुलकर ने इसकी पटकथा और संवाद लिखे थे। गोविंद ने शशि कपूर के लिए ‘विजेता’ नामक फिल्म बनाई थी, जिसमें भय के कारण दिखाने का प्रयास किया जाता है। अंधेरे में लोगों का पैर रस्सी पर पड़ता है और उन्हें लगता है कि उन्हें सर्प ने डंस लिया है। उनकी मृत्यु भय से ही हो जाती है। युद्ध पर एक हास्य फिल्म भी बनी है ‘वार छोड़ यार’।
बर्नार्ड शा का एक पात्र कहता है कि युद्ध के समय वह शत्रु को मारने से अधिक ध्यान इस बात पर देता है कि स्वयं को कैसे बचाए रखें। रूस और अमेरिका में युद्ध से प्रेरित कई फिल्में बनी हैं। रूस की फिल्में ‘द क्रेंस आर फ्लाइंग’ और ‘बेलाड ऑफ ए सोल्जर’ इस श्रेणी की शिखर फिल्में हैं। दरअसल दूसरे विश्व युद्ध में सबसे अधिक संख्या में रूस ने अपने लोग खोए। अमेरिका ने सबसे अधिक धन लगाया और विंस्टन चर्चिल की रणनीति ने युद्ध में विजय दिलाई। दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात हुए चुनाव में ब्रिटेन के नागरिकों ने विंस्टन चर्चिल को चुनाव में हार दिलाई, क्योंकि उनका विश्वास था कि युद्ध के समय विंस्टन हमारी जरूरत थी और शांति काल में हमें अन्य नेता चाहिए। नागरिकों ने क्लीमेंट एटली को चुना इस घटना के कारण भारत को राजनीतिक स्वतंत्रता थोड़े समय पहले प्राप्त हो गई। कोई भी अधिक समय तक किसी देश तो गुलाम नहीं बनाए रख सकता। देश प्रेम की फिल्में भी सफल रहीं। पंजाब के शिक्षक सीताराम शर्मा की पटकथा से प्रेरित फिल्म ‘शहीद’ बनाई गई। आज विशुद्ध प्रेम की कहानियों को महत्व नहीं दिया जा रहा है। दरअसल समाज से प्रेम भावना का लोप होता रहा है। प्रेम से अधिक महत्व इस बात का है कि मनुष्य कर्तव्य करता रहे जो काम नहीं आता है उसे करने का प्रयास करें।