प्यार कर ले वरना फांसी चढ़ जाएगा / जयप्रकाश चौकसे

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प्यार कर ले वरना फांसी चढ़ जाएगा
प्रकाशन तिथि : 13 सितम्बर 2019


ऋतिक रोशन और टाइगर श्राॅफ अभिनीत फिल्म 'वॉर' (युद्ध) शीघ्र प्रदर्शित होने जा रही है। दोनों ही कलाकार फिल्म उद्योग से जुड़े परिवारों से आए हैं। उन्हें एक्शन और नृत्य अभिनीत करने में महारत हासिल है। टाइगर श्राफ अपनी पहली फिल्म के सफल प्रदर्शन के बाद सुभाष घई से मिलने गए। टाइगर के पिता जैकी श्राफ को सुभाष घई ने अवसर दिया था। उस फिल्म का नाम 'हीरो' था। टाइगर श्राफ ने सुभाष घई से कहा कि वे उनकी फिल्म में नि:शुल्क काम करना चाहते हैं। इस कार्य को वे अपने पिता पर किए गए उपकार के लिए शुकराना अदा करने की तरह मानते हैं। उस समय सुभाष घई के मन में फिल्म निर्देशन की कोई उमंग नहीं बची थी।

ऋतिक रोशन अपने पिता की फिल्म 'करण अर्जुन' में उनके सहायक निर्देशक थे। उन्होंने देखा कि फिल्म के दोनों नायकों को पटकथा और फिल्मकार पर विश्वास नहीं था। वे परोक्ष ढंग से उनके पिता को अपमानित करते थे। ऋतिक ने अभिनेता बनने का निर्णय लिया और स्वयं को तैयार करने लगे। राकेश और ऋतिक की टीम ने साथ-साथ काम करते हुए सफल फिल्में बनाई हैं। इस पिता-पुत्र की जोड़ी का ट्रैक रिकॉर्ड कमाल का है। ज्ञातव्य है कि राकेश रोशन को गले का कैंसर होने के कारण फिल्म निर्माण से दूर रहना पड़ा। अब राकेश पूरी तरह ठीक हो चुके हैं और अगली फिल्म की पटकथा लिख रहे हैं। ऋतिक रोशन टाइगर श्राॅफ से कहीं अधिक प्रतिभाशाली से हैं परंतु टाइगर श्राॅफ परिश्रमी और अनुशासित कलाकार हैं।

राकेश रोशन ने दिलीप कुमार अभिनीत 'राम और श्याम' अनेक बार देखी है। उसे वे अपनी आदर्श फिल्म मानते हैं। वे अपनी हर पटकथा की बुनावट उसी तरह करते हैं। उनका नायक कभी राम रहता है, कभी श्याम बन जाता है। इसी ढर्रे पर उन्होंने 'किशन कन्हैया' भी बनाई थी। राकेश रोशन 'वॉर' नहीं बना रहे हैं परंतु अगर वे बना रहे होते तो ऋतिक व टाइगर दोनों को ही फिल्म के मध्यांतर तक राम और मध्यांतर के बाद श्याम की तरह प्रस्तुत करते और इस तरह दो नायकों वाली फिल्म में चार नायक हो जाते। 'वॉर' दो देशों के बीच युद्ध की फिल्म नहीं है वरन व्यक्तिगत बदले की फिल्म है। एक दौर में नायक के आक्रोश की छवि को मीडिया ने खूब उछाला था परंतु वे सारी फिल्में व्यक्तिगत बदले की फिल्में थीं। गोविंद निहलानी की ओम पुरी अभिनीत 'अर्ध सत्य' सामाजिक सोद्देश्यता की सच्ची फिल्म थी। उस दौर की आक्रोश की छवि इतनी लोकप्रिय हुई कि उसके बहुत बाद में आए टेलीविजन पर साक्षात्कार लेने वाले अर्णब गोस्वामी भी आक्रोश की मुद्रा में स्वयं को प्रस्तुत करने लगे।

आजकल व्यवस्थाएं भी आक्रोश की मुद्रा धारण किए रहती हैं। व्यवस्था को ठप करते हुए स्वयं को ठप्पा बनाने का काम किया जा रहा है। अवाम को इससे कोई शिकायत नहीं है। अवाम व्यवस्था की कार्बन कॉपी है। एक ही शहर के दो मोहल्लों के युवा दुश्मनी पालते हैं। इस दुश्मनी से प्रेरित संगीतमय फिल्म 'वेस्ट साइड स्टोरी' बनी थी, जिसका चरबा मंसूर हुसैन की शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय अभिनीत 'जोश' नामक फिल्म बनाई थी। तपन सिन्हा ने बंगाली भाषा में मोहल्लाई दादाओं पर फिल्म बनाई थी। इसी 'अपनजन' का चरबा इस विधा के उस्ताद गुलजार ने 'मेरे अपने' के नाम से बनाया था। विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा अभिनीत इस फिल्म में मीना कुमारी ही दोनों के बीच कड़वाहट को मिटाने का प्रयास करती है। महिलाएं ही शांति बनाए रखने का प्रयास करती हैं। यह बात अलग है कि वे आपस में खूब टकराती रहती हैं और एक ही चौके में बर्तनों के भिड़ जाने की तरह आचरण करती हैं। यह संभव है कि फिल्म 'वॉर' भी मोहल्लाई दुश्मनी की फिल्म हो सकती है। बरसों पहले एक मनोरंजक फिल्म बनी थी 'वॉर छोड़ यार'। इस फिल्म में दो देशों के बीच के नो मैन्स लैंड में एक मुर्गा खड़ा है और दोनों ही पक्ष उसे अपनी सरहद के भीतर लाकर तंदूरी मुर्ग बनाना चाहते हैं।