प्यास / एक्वेरियम / ममता व्यास
तुम आकंठ प्रेम में डूबे हो, लेकिन अपनी प्यास का अंदाजा तक नहीं। अंतर घट तक प्यासे हो। ये बेचैनी, ये तड़प, ये बेकरारी उस प्यास के लक्षण हैं। ये सोलह की उमर से नहीं, जन्म के दिन से ही है और तब तक रहेगी जब तक तुम अपनी प्यास को जान नहीं लेते। तुम्हारे ही भीतर, तुम्हारी मोहब्बत गुम है, गुम है, गुम है...तुम बचपन से लेकर, अभी तक उसे खोज रहे हो। जहाँ भी, जब भी तुम्हें कहीं से भी, कोई भी उसके जैसा दिखता रहा। मिलता-जुलता दिखता रहा। तुम उसे ही मोहब्बत मान बैठे। करीब जाने पर, हर बार तुम निराश हुए. खुद ही अलग हो गए...उससे। सामने वाला इस बात पर हैरान होता रहा कि तुम्हें क्या चाहिए?
समय के साथ वह सब लोग तुम्हें भूलते गए, लेकिन तुम आज भी अपने दिल पर उन्हें बोझ की तरह लिए फिरते हो, क्योंकि हर बार, तुमने, तुमने और सिर्फ़ तुमने पूरी शिद्दत से प्रेम किया। वह सिर्फ़ तुम्हारे प्रेम की चमक से ही चमक रहे थे।
अपनी रोशनी, अपनी खुशबू के पीछे भागते रहे तुम...हर बार इसीलिए निराशा हुई. बाहर कुछ था ही नहीं। तुम्हारी प्यास इतनी पवित्र थी कि उसे कोई पवित्र चीज ही तृप्त कर सकती थी। तुम्हारे लिए बहता दरिया नहीं एक शबनम की पवित्र बूंद ही काफी है। तुम्हें तृप्त करने को।