प्रकाशन की भूमिका / अगस्त 1947 / युगवाणी

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पत्र की आवश्यकता?
निवेदक : भगवती प्रसाद पान्थरी
श्री भगवती प्रसाद पान्थरी द्वारा प्रबुद्धजनों को प्रेषित प्रपत्र

(युगवाणी का प्रकाशन शुरू करने से पहले श्री भगवती प्रसाद पान्थरी ने युगवाणी प्रकाशन के उद्देश्यों को सामने रखकर देश और गढवाल के प्रबुद्धजनों को यह प्रपत्र भेजा था। यह प्रपत्र हमें डा. योगेश धस्माना के सहयोग से प्राप्त हुआ है जो कि उनके शोध प्रबंध में उद्धृत हुआ है।)

आवाज उठाये बिना हमारे दुखःदर्दों को कौन सुन सकता है? हमें आवाज उठानी है-दुख और वेदना और भ्रष्ठाचार के खिलाफ। किन्तु अकेली आवाज से कुछ नहीं हो सकता।हम चाहते हैं सब मिलकर एक साथ आवाज उठायें और यही युगवाणी पत्र का मुख्य ध्येय है। पिछली 3 तारीख जून 1947 के वायसराय और भारतीय नेताओं के ब्राडकास्ट में भारत के भविष्य के बारे में जो एलान हुआ है उसमें देश की स्थिति बहुत जल्दी ही पूरी तरह बदल जाने वाली है। अगस्त में औपनिवेशिक स्वराज होने की संभावना है और अगले जून तक पूर्ण स्वराज ही हो जाने वाला है। यह स्वराज ब्रिटिश भारत में ही नहीं बल्कि रियासतों में भी होगा - चाहे कुछ एक राजा ऐसा होना पसन्द करें या नहीं ।हम बदली हुयी स्थिति में जनता के उपर एक बहुत बडी जिम्मेदारी आ जाती हैऔर जैसा कि हाल में गांधी जी ने कहा था कि जैसी प्रजा होगी राज भी वैसा ही होगा इस लिये यह प्रजा पर ही निर्भर करता हैकि राजा कैसा और किस तरह रहे? अगर पूरी जनता सामाजिक और राजनैतिक कर्तव्यों को समझते हुये पूर्णतः जिम्मेदार होंगे तो कोई भी राजा हो गैर जिम्मेदारी से शासन नहीं कर सकता। अतः कहना न होगा कि आज की बदली हुयी परिस्थिति मेंअब कि स्वराज आ गया है। समस्या केवल यह रह जाती है कि जनता उसके उपयोग करने के उपयुक्त बने। उस प्रजातंत्र स्वराज व जिम्मेदार शासन का कोई अर्थ नहीं है जहां परजनता उसका खुद का अर्थ न समझती होऔर उसके तौर तरीकों एवं िवधि विधान से परिचित न हो, क्योंकि ऐसी हालत में जिम्मेदार शासन के नाम पर गैर जिम्मेदारी का दौर दौरा चालू ही रह सकता है और स्वराज्य तथा प्रजातंत्र होने पर भी प्रजा गुलामी और दासता में ही पडी रह सकती है। इस स्थिति को हल करने के लियेएक ही उपाय हैऔर वह यह कि जनता केा इस तरह शिक्षित कर दिया जाय कि जो भी जिम्मेदारी उसके उपर आने वाली है उसे निभाने के लिये वह पूरी तरह से सचेष्ट और सुयोग्य हो सके। शिक्षण के लिये हमारे सामने कुछ तरीके हैं-

  1. साक्षरता प्रचार
  2. सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक साहित्य पर प्रकाश डालने वाली छोटी छोटी पुस्तकें
  3. जन जाग्रति के हित प्रचारकों का गांव गांव जाकर मैजिक लैनटर्न आदि द्वारा शिक्षण व भाषण
  4. अखबार आदि

इनमें से सबसे ज्यादा जरूरी और ध्यान देने की प्रथम चीज अखबार है। अखबार ही एक ऐसी चीज है जिसके जरिये जनता को शिक्षित और दीक्षित किया जा सकता है और देश के कोने कोने तक आवाज पहुंचायी जा सकती है तथा सबकी समस्याओं से एक दूसरे को अवगत और परिचित कराया जा सकता है। संगठन के लिये भी अखबार की बहुत महत्ता है। इस लिये हर प्रकार से अखबार की समस्या हमें प्रथमतः हल करनी है यह अखबार हम चाहते तो हैं दैनिक व साप्ताहिक हो परन्तु जैसी स्थिति है उसमें हम एक पाक्षिक निकालने का ही पहले प्रयत्न करना चाहते हैं । हमें आशा है िकइस प्रयत्न में हमारे सभीऔर देशवासी पूरी सहायता और सहयोग प्रदान करेंगे और सुझायेंगे कि किस तरह से यह कार्य जल्दी से जल्दी एवं सरलता और सुगमता से हो सकेगा? आप लोगो के सहयोग की निश्चित आशा पर हम अगस्त 15 या 30 से पत्रिका के प्रथम प्रति निकालने का इरादा रखते हैं । इस पत्रिका का वर्षिक चन्दा 3 आना रखा है। आशा है हमारे सहयोगी ग्राहक बनकर पत्रिका की आयोजना सफल बनावेंगे।

निवेदक: भगवती प्रसाद पान्थरी

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