प्रकीर्ण लोकसाहित्य / रंजन

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प्रकीर्ण लोक साहित्य

प्रकीर्ण लोक-साहित्य के अंतरगत लोकोक्ति, कहावत, मुहावरा आरो पहेली आरिन आवै छै।

लोकोक्ति आरो कहावत-मुहाबरा के प्रयोग यहाँ के लोक-जीवन के दैनिक व्यवहार में प्रयुक्त होय छै।

मनोरंजन आरो बुद्धि-परीक्षा में बुझौव्वल के प्रयोग होय छै, जेकरा पहेली कहलोॅ जाय छै।

भाषा में सौंदर्य आरो सौष्ठव लानै खातिर लोकोक्ति, कहावत आरो मुहावरा के प्रयोग करलोॅ जाय छै।

हय सिनी अंगिका लोक-साहित्य के जगमगैलोॅ रत्न छेकै। अंगिका के कहावत जीवन के हरेक उपयोगी विषय सें सम्बधित छै। वास्तव में जनमानस में संग्रहित अनुभव के भण्डार सें कहावत के जन्म होय छै। यही कारण छै कि खेती-गृहस्थी, जानवरोॅ के पहचान, दवा-दारू, रोजी-रोजगार, आनंद, शोक, उत्सव, लड़ाय-झगड़ा, प्रेम, नीति, जाति भेद आरो बात-विचार स्वभाव आरिन प्रत्येक विषय के सम्बंध मुहाबरा सें छै।

मतर मुहाबरा आरो कहावत में फरक होय छै। मुहाबरा अपना में अपूर्व होय छै। एकरोॅ प्रयोग बात में चमत्कार उत्पन्न करी केॅ ओकरा आरो प्रभावपूर्ण करी दै छै। जबकि कहावत के प्रयोग बातोॅ के समर्थन, ओकरोॅ पुष्टि अथवा विरोध आरो खंडन करै के खातिर

होय छै।

कहावत के हम्में निम्न श्रेणी में विभक्त करै पारेॅ छियै।

1. नैतिक, धार्मिक आरो उपदेशात्मक

2. लोक व्यवहार सें सम्बंधित

3. चरित्रा के सम्बंध मंे व्यंगात्मक आरो आलोचनात्मक

4. खेती आरो ऋतु सम्बंधी

5. जीव-जंतु सम्बंधी

6. लोकाचार, शादी-बीहा, जग-प्रयोजन, यात्रा आरो अंधविश्वास

सम्बंधी

7. जाति आरो वर्ग सम्बंधी

पहेली

अंगिकांचल में एकरोॅ प्रथा बड़ी प्राचीन छै। शादी-बीहा में भी दुल्हा के बुद्धि परीक्षा लेली एकरोॅ प्रयोग होय छै, मतर एकरोॅ मुख्य उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ बुद्धि परीक्षा ही छै।

बुझौव्वल के विषय अति-व्यापक होय छै। हमरोॅ जीवन आरो लोक-साहित्य के इ अमूल्य निधि छै। एकरा निम्न श्रेणी में विभाजित करलोॅ जाबेॅ सकै छै।

1. प्रकृति विषयक आरो जीव-जन्तु सम्बंधी

2. व्यवहार सम्बंधी

3. व्यवहारिक वस्तु सम्बंधी

4. भोजन सामग्री सम्बंधी

5. फुटकर