प्रचलन से हटकर / जयप्रकाश मानस

Gadya Kosh से
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वह हमेशा से अलग था।

गाँव के दो हिस्से थे: एक तरफ़ वे, जो ख़ाली पेट मालिक के आँगन में झुक जाते थे; दूसरी तरफ़ वे, जिनका भरा पेट उन्हें मालिक बना देता था।

लेकिन वह...

उसने न तो झुकना सीखा, न ही मालिक बनने की लालसा पाली। उसने तीसरा रास्ता चुना—अपनी ज़मीन पर खड़े होकर अपनी रोटी उगाने का।

एक दिन, जब गाँव वालों ने देखा कि वह अपने खेतों से उगाई गेहूँ की रोटी खा रहा है, तो वे हैरान रह गए।

"यह तो प्रचलन से हटकर है!"-किसी ने कहा।

"यह असंभव है!"-दूसरे ने हँसते हुए कहा।

लेकिन वह मुस्कुराया। उसकी कहानी न तो भूख की थी, न ताक़त की।

वह सिर्फ़ इन्सान होने की कहानी थी।