प्रचार तंत्र: अंदाज अपना-अपना / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 23 जून 2014
आवाम के अच्छे दिन आएं या ना आएं परंतु मनोरंजन जगत के बॉक्स ऑफिस दिन आने वाले हैं। ईद पर सलमान खान की 'किक', दीवाली पर शाहरुख खान की 'हैप्पी न्यू इयर' और आमिर खान की राजकुमार हीरानी निर्देशित 'पीके' क्रिसमस पर आने वाली है। इन लोकप्रिय फिल्मों के प्रदर्शन से सिनेमा मालिकों के दिन फिरने वाले हैं क्योंकि भारी भीड़ जुटाने वाली फिल्में ही इस उद्योग की आर्थिक रीढ़ की हड्डी हैं। विगत लंबे समय से चुनाव, आईपीएल इत्यादि के कारण धंधा मंदा रहा है। इस सूखे में भी कुछ फिल्में सफल रही हैं, जैसे ग्रीष्म में भी कई जगह बारिश हो जाती है परंतु दर्शकों में उन्माद जगाने पर ही इस व्यवसाय में दम आता है। उन्मादी प्रशंसकों के कारण सिनेमा घरों के परिसर में बने खाने पीने के ठिओं पर भी धन बरसता है। जैसे बड़े उद्योग के साथ ही कमाई की जुगत भिड़ाने वाले छोटे उद्योग पनपते हैं, वैसे ही सिनेमा उद्योग के साथ भी अनेक छोटे धंधे जुड़े हैं।
आजकल सितारे अपनी फिल्मों का प्रचार एक दो माह पहले ही प्रारंभ करते हैं और इसमें भी कुछ दुकानों को लाभ पहुंचता है। उनकी यात्राओं के खर्चे, पांच सितारा होटल में निवास और अखबारों तथा टेलीविजन पर प्रचार के कारण भी अनेक लोग लाभान्वित होते हैं और इस सारी कसरत में सरकार को भी लाभ मिलता है। फिल्म जगत दो सौ करोड़ रुपए का आयकर भी जमा करता है। इस तरह की खबर है कि शाहरुख खान फिल्म के कलाकारों के साथ अगस्त और सितंबर में यूरोप तथा कनाडा के कई शहरों का भ्रमण करने वाले हैं। शाहरुख जानते हैं कि उनकी अभिनीत फिल्मों के व्यवसाय का बहुत बड़ा भाग विदेशों से आता है, अत: वे विदेशों में रोड शो करने जा रहे हैं। सलमान खान का अपना शक्ति केंद्र भारत का अवाम है और वे अपने ढंग से अपने प्रशंसकों से रूबरू होंगे। सलमान ने 'किक' में दो गीत गाए हैं और कुछ ही समय में वह देश-विदेश में अपना 'कन्सर्ट' करने वाला है। आमिर खान प्रचार तंत्र के अनोखे तरीके इस्तेमाल करते हैं, मसलन 'थ्री इडियट्स' के लिए भेष बदलकर उन्होंने भारत भ्रमण किया। 'लगान' की मार्केटिंग से अलग थी 'तारे जमीं पर' की प्रचार नीति और मुरुगदास निर्देशित फिल्म 'गजनी' में उनकी तरह अनेक युवा लोगों ने अपना सिर मुंडवाया था।
जब सलमान खान की किसी भी आने वाली फिल्म का प्रचार होता है तब शाहरुख खान भी किसी योजना के तहत सुर्खियों में आ जाते हैं। इस तरह जो स्थान सलमान खान को मिलना था, वह दो हिस्सों में बंट जाता है। यह मुमकिन है कि सारे प्रतिद्वंदी लोगों के मन में कोई समान विचार तरंग उठती है गोयाकि 'शत्रु' आपके अवचेतन में बैठा है और मित्रता के स्तर पर अगर प्रतिद्वंदी नहीं मिलना चाहते तो 'शत्रुता' की जमीन पर ही सही, वे कहीं साथ खड़े नजर तो आते हैं। दरअसल मित्रता के आवेग से अधिक तीव्रता होती है शत्रुता में। इसी भाव को आप त्योहार के समय सड़क पर आमने-सामने या नजदीक वाली दुकानों की सजावट में देखिए। हर एक के पास अपना 'सीक्रेट एजेंडा' है और किसी राजनैतिक दल का इस पर कोई एकाधिकार नहीं है।
यही बात सितारों और दुकानदारों तथा उद्योगों से होते हुए देशों तक जाती है। भारत गंगा को प्रदूषण मुक्त करने पर विचार कर रहा है तो उधर चीन ने अपने अधिकार क्षेत्र में आए बर्फीले पहाड़ों से पिघलती बर्फ के पानी पर अपना कब्जा जमा लिया है। कही ऐसा तो नहीं कि हम गंगा को प्रदूषण मुक्त करें और वह लगभग सूख भी जाए। हमारी ग्रंथि पाकिस्तान है और चीन की ओर से हम बेखबर से हैं और अपने से बड़े शत्रु से घबराहट के कारण भी आंख बंद सी हो जाती हैं। प्रतिद्वंदता धीरे-धीरे शत्रुता में बदल जाती है और पूरे खेल का मुद्दा यह है कि कौन अपने अवचेतन को शत्रु के विचार से कितना मुक्त रख पाता है।