प्रतिभा से रोशन परिवार / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 29 मई 2013
कपूर परिवार की चौथी पीढ़ी फिल्म उद्योग में सक्रिय है, तो रोशन परिवार की तीसरी पीढ़ी कार्यरत है। सीनियर रोशन साहब महान संगीतकार थे, परंतु उन्हें कभी उनके हिस्से की ख्याति या धन नहीं मिला, क्योंकि वे सृजनकर्ता थे, सेल्समैन नहीं थे। अपने काम के अतिरिक्त उनका सामाजिक मेलजोल भी निकटतम लोगों तक सीमित था। अनेक फिल्मों की सफलता में उनके मधुर संगीत का सबसे अधिक योगदान रहा, जैसे केदार शर्मा की 'बावरे नयन', नाडियाडवाला की 'ताजमहल', मधुबाला की 'बरसात की रात', जिसकी कव्वाली 'इश्क इश्क है' आज सृजन के पचास वर्ष पश्चात भी श्रेष्ठतम कव्वाली है। उनके पुत्र राजेश रोशन ने भी अनेक सफल फिल्में दी हैं, परंतु श्रेष्ठ लोगों की सूची में उनका नाम भी उनके पिता के नाम की तरह प्राय: अनदेखा रह जाता है, परंतु कोई शिकवा-शिकायत उन्होंने कभी नहीं की।
राकेश रोशन ने अभिनय की पारी के साथ ही फिल्म निर्माण में भी कदम रखा और अनेक सुपरहिट फिल्में बनाईं। उन्होंने 'करण-अर्जुन' उस समय दी थी, जब सौ करोड़ के कलेक्शन के चर्चे आज की तरह नहीं किए जाते थे। उन्होंने अपने पुत्र ऋतिक के साथ अभी तक तीन सुपरहिट फिल्में बनाईं और 'कृश-३' की शूटिंग नवंबर २०१२ में पूरी कर ली और प्रदर्शन नवंबर २०१३ के पहले ही घोषित किया गया था, क्योंकि इस विज्ञान फंतासी में विशेष प्रभाव वाले लगभग १५०० शॉट्स हैं, जिन पर शाहरुख खान की विशेष प्रभाव वाली कंपनी के ढाई सौ तकनीशियन दिन-रात काम कर रहे हैं और केवल इस विभाग में अनुमानत: ३० करोड़ का खर्च हो सकता है, जितने धन में एक भव्य फिल्म पूरी बन सकती है।
राकेश रोशन को इस फिल्म के आकल्पन और क्रियान्वयन में लगभग चार वर्ष लगे हैं। राकेश भी अपने परिवार की परंपरा के अनुरूप केवल अपने काम में डूबे रहते हैं और केवल प्रदर्शन के समय ही प्रचार करते हैं। ऋतिक रोशन की अकल्पनीय अभिनय प्रतिभा और आकर्षक व्यक्तित्व का भी समुचित मूल्यांकन अभी तक नहीं हुआ है। उसने 'जोधा-अकबर' में बढिय़ा अभिनय किया और फारसी मिश्रित उर्दू में संवाद ऐसे अदा किए मानो पर्शिया में पैदा हुआ हो। इतना सब सकारात्मक होते हुए भी आज के दौर में जब सितारे पचास से अस्सी प्रतिशत लाभ की शर्त पर काम करते हैं, ऋतिक को उसका जायज लाभ नहीं मिला। 'काइट्स' और संजय लीला भंसाली की 'गुजारिश' ने उसे बहुत नुकसान पहुंचाया।
बहरहाल, अब ऋतिक रोशन का श्रेष्ठ समय शुरू हो रहा है। उसकी 'कृश' के कुछ हिस्से देखकर ऐसा लगता है कि आय के नए रिकॉर्ड बनेंगे। राकेश रोशन ने अपने भाई राजेश रोशन के तीन गीतों का छायांकन कमाल का किया है। ऋतिक से अच्छा नृत्य करने वाला कोई कलाकार नहीं है, परंतु सुखद आश्चर्य तो ऋतिक तथा कंगना पर फिल्मांकन किया गया गीत है। कंगना को इस कदर आकर्षक और सपने जगाने वाले रूप में पहले कभी नहीं देखा। जॉर्डन के एक लोकेशन का ऐसा इस्तेमाल किया है कि वह भी गीत में एक पात्र की तरह उभरकर सामने आता है और काया(कंगना) नामक पात्र के गुफा जैसे रहस्य का प्रतीक भी बन जाता है। काया की माया का जैसा असर मुझ पर हुआ, उससे कहीं अधिक 'फास्ट और फ्यूरिश' जैसी अनेक सफल अमेरिकन फिल्म बनाने वाले निर्देशक पर भी हुआ, जो किसी व्यक्तिगत कारण से राकेश से मिलने आया था। इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद कंगना और विवेक ओबेरॉय को अनेक अवसर मिलेंगे। उन्हें आश्चर्य हुआ कि ऐसे शॉट्स कैसे साधनहीन भारत में लिए जा सकते हैं। उन्हें बताना चाहिए था कि भारत फास्ट और फ्यूरिश नहीं है। फिल्म की नायिका प्रियंका हैं। वे भी सुंदर दिखती हैं।
राकेश रोशन ने कभी भव्यता के मोह में भावना को गौण नहीं समझा और उसकी विज्ञान फंतासी में मानवीय भावनाओं की कभी कमी नहीं रही। इसके साथ ही वह अपनी विज्ञान फंतासी को विश्वसनीयता प्रदान करने के लिए भारतीय सामूहिक अवचेतन में गहरे पैठे हुए धार्मिक विश्वासों के साथ भी जोड़ता रहा है, जैसे 'कोई मिल गया' में अंतरिक्ष में ओम की ध्वनि पहचानी जाती है, वैसे ही इस फिल्म में भी काया और काल की अवधारणा में भारतीयता का स्पर्श है।
राकेश रोशन फिल्म आकल्पन के पहले दिन से संपादन के आखिरी दिन तक अपने लेखकों और कैमरामैन के साथ प्रतिदिन सुबह कम से कम दो घंटे अवश्य बिताता है। काम के प्रति उसका समर्पण आज आपको अन्य जगह नहीं दिखता।
इस लेख के प्रारंभ में ही कपूर परिवार का जिक्र इसलिए किया गया है कि दोनों परिवारों की मित्रता भी पीढिय़ों से चली आ रही है और ज सबसे अधिक प्रतिभाशाली एवं सुदर्शन युवा ऋतिक एवं रणबीर कपूर ही हैं और अगर किसी फिल्म में दोनों साथ आ जाएं तो सफलतम फिल्म बन सकती है। राकेश रोशन ने अपनी फिल्म 'आपके दीवाने' में ऋषि कपूर के साथ दो नायक की फिल्म की थी, जिसकी नायिका टीना मुनीम थीं। बहरहाल, उस दौर में बहुसितारा फिल्में बनती थीं, आज लाभ और लोभ इतना अधिक है कि शायद यह संभव न हो।