प्रतिभा / हेमन्त शेष

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वह प्रतिभाशाली कहानीकार था. जो रचना भेजी, ससम्मान छपी. लोग भी उसे एक अलग किस्म के प्रतिभाशाली कहानीकार के रूप में ही जानते थे. फिर हिन्दी में बहुत सी पत्रिकाएँ निकलने लगीं. और कम प्रतिभाशाली लेखक भी छापने लगे. कइयों को तो साहित्य अकादमी पुरस्कार तक मिल गए. उसे इस सब से इतनी वितृष्णा हुई कि उसने लिखना एकदम कम कर दिया और छपना तो बिलकुल ही. बस अब कुछ लोग ही उसे एक ‘प्रतिभाशाली कथाकार’ के रूप में जानते हैं, और, संख्या में और भी कम, ‘कम प्रतिभाशाली’ तो बस- “भूतपूर्व कहानीकार” के रूप में ही.