प्रदूषण / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Gadya Kosh से
मन्दिर के प्रांगण में जागरण का कार्यक्रम था। औरत–मर्द बच्चों को मिलाकर दो सौ की भीड़। कस्बे के दूसरे छोर तक लाउडस्पीकर बिजूखे की तरह टँगे थे। गायक की तीखी आवाज़ से सिर भन्ना गया था।
वह एकदम बाहरी सड़क पर निकल आया। सूखे ठूँठ के पास कोई गुमसुम–सा बैठा था।
"कौन?" उसने पूछा।
"मैं भगवान हूँ।" मरियल–सी आवाज़ आई.
"भगवान का इस ठूँठ के पास क्या काम? उसे तो किसी मन्दिर में होना चाहिए."
"मैं अब तक वहीं था।" आकृति ने दुखी स्वर में बताया–"शोर के कारण कुछ तबीयत गड़बड़ हो गई थी, इसीलिए यहाँ भाग आया हूँ।"