प्रधानमंत्रियों की परीक्षा / राजकिशोर
लछमी अब पंद्रह साल की है। उसे मैं तब से जानता हूँ, जब वह तीन-चार वर्ष की थी और कमर में एक छोटी-सी कपड़ी पहन कर सड़क पर घूमा करती थी। रंग काला, शरीर दुबला-पतला और बाल उलझे हुए। उसे देख तक भारत माता की उन करोड़ों संतानों की याद आ जाती थी, जिनके जन्म की वैधता को अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है। जब तक देश यह तय नहीं करता कि ये राष्ट्रीय समृद्धि की राह में बड़ी बाधा बन गए हैं, इसलिए राष्ट्रीय हित में इनका उन्मूलन कर दिया जाना चाहिए, तब तक ये जीते रहने के लिए अभिशप्त हैं।
लछमी के घर मैं कभी-कभी जाया करता हूँ। घर क्या है, एक छोटा-सा कमरा है, जिसमें उसके पिता (रिक्शा चालक), माँ (कामवाली) और दो भाई-बहन रहते हैं। भाई पास ही के एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में जाता है, जहाँ यह धोखा दिया जाता है कि यहाँ पढ़ाई होती है। छोटी बहन को सरकारी स्कूल में दाखिल करा दिया गया है, जहाँ रोज जाने की पाबंदी नहीं है। लछमी भी कुछ दिन तक इस स्कूल में पढ़ चुकी है। जब वह बड़ी हुई, तो माँ ने उसे कई घरों में लगा दिया। इसके कुछ दिनों बाद घर में एक सेकंड-हैंड टीवी आ गया, जो पूरे परिवार के लिए मनोरंजन का एकमात्र साधन है। इसी से लछमी को पता चला कि देश भर में चुनाव चल रहा है और कई-कई लोग प्रधानमंत्री की कुरसी पर नजर गड़ाए हुए हैं।
उस दिन लछमी के घर पहुँचा, तो एक अजीब दृश्य दिखाई पड़ा। घर में वह अकेली थी। उसके सामने मिट्टी की पाँच मूर्तियाँ रखी हुई थीं। हर मूर्ति के नीचे नाम लिखा हुआ था - मनमोहन सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, शरद पवार, मायावती और लालू प्रसाद। मैं लछमी के पीछे कोई आवाज किए बिना खड़ा हो गया।
लछमी ने मनमोहन सिंह की मूर्ति को कान से लगाया, जैसे वह उनकी बात सुन रही हो। फिर वह भुनभुनाई - 'कहता है, मेरे हाथ में जादू की छड़ी नहीं है कि रात भर में सब कुछ ठीक कर दूँ। इंतजार करो, तुम्हारा भी नंबर आएगा।' 'बहुत इंतजार कर लिया,' कहकर उसने मूर्ति को जमीन पर दे मारा।
अब लछमी ने आडवाणी की मूर्ति उठाई। उससे कहने लगी, 'सर जी, आप ठीक कहते हैं, यह सरकार कमजोर है। आपकी सरकार बहुत मजबूत होगी। एक बात बताइए। अगर आप प्रधानमंत्री बन गए, तो उस गुंडे को जेल में भिजवा देंगे जो हमारी गली में रहता है? वह बहुत बदमाश है। मुझे भी कई बार छेड़ चुका है। किसी के रिक्शे पर चढ़ता है तो किराया नहीं देता।' इसके बाद वह आडवाणी की मूर्ति को कान के पास ले गई और कुछ देर तक उसकी बात सुनती रही। फिर उसे धड़ाम से जमीन पर दे मारा और बोली, 'कहता है, पहले हम आतंकवाद से लड़ेंगे। अरे, हमारे लिए तो यह गुंडा ही सबसे बड़ा आतंकवादी है।'
अगली बारी शरद पवार की थी। पवार से उसने यह निवेदन किया, 'सर, आप तो खेती-बाड़ी के मंत्री हैं। टीवी पर मैंने बहुत बार सुना है कि किसान जहर खाकर मर रहे हैं। इधर आटा-चावल रोज महँगा होता जा रहा है। आप प्रधानमंत्री बनेंगे, तो क्या सस्ती का जमाना लौट आएगा? राशन की दुकान पर सातों दिन सामान मिला करेगा?' शरद पवार की बात सुन कर लछमी हो-हो कर हँसने लगी। बोली, 'अजीब आदमी है। बोल रहा है, ये सारे मुद्दे बेकार हैं। असली मुद्दा यह है कि इस बार प्रधानमंत्री पद किसी मराठी को मिलना चाहिए।' फिर बोली, 'मुझे तो यह भी पता नहीं कि महाराष्ट्र है किधर। यह प्रधानमंत्री हो गया तो मेरी फिक्र क्यों करेगा?' पवार भी वीर गति को प्राप्त हुए।
मायावती की मूर्ति जरा लोचदार थी। लछमी ने मायावती से क्या कहा, यह मैं सुन नहीं सका, क्योंकि वह बहुत धीरे-धीरे बोल रही थी। पर मायावती की मूर्ति को उसने कुछ ज्यादा ही ताकत से जमीन पर पटका। बोली, 'रानी जी के पास हर बात का एक ही जवाब है - पहले मुझे प्रधानमंत्री बनने दो। सब ठीक हो जाएगा। खाक ठीक हो जाएगा। नोएडा यूपी में ही है। वहाँ क्या ठीक हो गया? रोज मर्डर होता है। मेरी मौसी वहीं काम करती है। कहती है, घर से निकलते वक्त बहुत डर लगता है। रास्ते में पता नहीं क्या हो जाए?'
तब तक उसे शक हो गया कि पीछे कोई है। उसने पलट कर देखा। वह लजा गई। फटाफट सारी मिट्टी साफ की और मुझे चौकी पर बैठाया। मैं तीन चॉकलेट लाया था। उसके हाथ में थमाते हुए बोला, 'कर लो, कर लो, लालू प्रसाद जी से भी बात कर लो।'
लछमी ने कहा, 'यह क्या चारों से अलग है? कहीं किसी घोटाले में इसे जेल हो गई, तो राबड़ी देवी को प्रधानमंत्री बना देगा।' और वह मेरे लिए चाय बनाने लगी।