प्रधानमंत्री और किसान / राजकिशोर
कई दिनों के बाद आज फिर प्रधानमंत्री के सचिव के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। वह बार-बार प्रधानमंत्री के कमरे के दरवाजे तक जाता और फिर लौट आता था। अंत में उसने हिम्मत जुटाई और कमरे के भीतर चला गया।
'क्या है?' - प्रधानमंत्री ने फाइल से सिर उठा कर पूछा। उनके कमरे में फाइलें ही फाइलें थीं। वे सुबह से करीब बीस फाइलें निपटा चुके थे, पर कई दर्जन फाइलें अभी भी उनकी उँगलियों से खुलने का इंतजार कर रही थीं।
'सर, एक खबर है।' - सचिव ने गंभीर स्वर में कहा। यह तय करना मुश्किल था कि उसका चेहरा ज्यादा गंभीर था या प्रधानमंत्री का। 'खबरों से मैं परेशान हो गया हूँ। रोज कोई न कोई खबर पैदा हो जाती है। अगर मैंने खबरों पर ध्यान देना शुरू कर दिया, तो देश चलाने के लिए समय कब निकाल पाऊँगा?' - प्रधानमंत्री के गंभीर चेहरे पर दुअन्नी के आकार की मुस्कान आई।
सचिव के लिए राजनीतिक दृष्टि से सही यह था कि वह भी अपने आका की तर्ज पर अपने चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान पैदा करता। पर इससे उस खबर की गंभीरता कम हो जाती जो उसके छोटे-से सीने में उछल-कूद कर रही थी। उसने भूमिका बाँधते हुए कहा - 'सर, खबर गंभीर है।'
प्रधानमंत्री ने दुअन्नी के आकार की अपनी मुस्कान वापस ले ली। वे फिर पूर्ववत गंभीर हो गए। धीमे से पूछा - 'क्या नटवर सिंह ने फिर कोई...'
सचिव ने तत्परता के साथ कहा - 'नो सर, मामला राजनीतिक नहीं है।'
प्रधानमंत्री - 'राजनीतिक नहीं है, तो क्या सोशियो-इकॉनॉमिक (सामाजिकार्थिक) है? यह तो मेरी रुचि का मामला है।'
सचिव - 'सर, मामला शुद्ध रूप से इकॉनॉमिक है। वैसे, बहुत-से विद्वान इसे सोशियो-इकॉनॉमिक भी कहते हैं।'
प्रधानमंत्री - 'विद्वानों को भूल जाओ। मुझे भी विद्वान माना जाता है। सो मैं विद्वानों की हकीकत जानता हूँ। अब बताओ, खबर क्या है?'
सचिव ने हिचकिचाते हुए कहा - 'सर, विदर्भ में एक किसान ने आत्महत्या कर ली!'
प्रधानमंत्री ने अविश्वास से सिर हिलाया - 'विदर्भ में? लेकिन मैं तो वहाँ हो आया हूँ। वहाँ के किसानों के लिए एक उदार पैकेज भी दे आया हूँ।'
सचिव - 'लेकिन सर, खबर सही है। मैंने तसदीक करा ली है। किसान ने आत्महत्या ही की है। वह किसी और कारण से नहीं मरा है।'
प्रधानमंत्री का आश्चर्य समाप्त नहीं हुआ था। उन्होंने दाढ़ी खुजलाते हुए सवाल किया - 'आंध्रा या कर्नाटक के किसान ने आत्महत्या की होती, तो बात समझ में भी आती। वहाँ मैं नहीं जा पाया हूँ। लेकिन विदर्भ में तो मैंने घोषणा कर दी थी कि किसानों का सारा कर्ज माफ। बल्कि जिन्होंने बाजार से कर्ज ले रखा है, उन्हें यह कर्ज वापस करने के लिए सरकारी ऋण मिलेगा।'
सचिव - 'आपके इस पैकेज की चारों ओर वाह-वाह हो रही है। लेकिन
सर...दरअसल...वह किसान नया कर्ज लेने के लिए अपने जिले के बैंक में गया था। वहाँ उसे बताया गया कि इस पैकेज के बारे में हमने भी अखबारों में पढ़ा है, पर दिल्ली से अभी ऑर्डर नहीं आया है। अगले महीने आओ।'
प्रधानमंत्री थोड़ी मुश्किल में पड़े। होंठ काँपे। भौंहें तनीं। बोले - 'ये किसान इतनी उतावली में क्यों रहते हैं? इतनी जल्दी क्या है? आत्महत्या तो एक महीने बाद भी की जा सकती थी। क्या उस किसान ने आत्महत्या करने का कोई मुहूर्त निकाल रखा था? अजीब दकियानूस देश है यह!'
सचिव ने खँखारते हुए और उसके लिए माफी माँगते हुए बताया - 'सर, आपके द्वारा पैकेज की घोषणा करने के बाद गाँव का महाजन जल्दी मचाने लगा था। उधर बैंक ने कर्ज देने से मना कर दिया। बेचारा किसान न इधर का रहा, न उधर का।'
प्रधानमंत्री - 'क्यों, वह लोकल पुलिस को रिपोर्ट कर सकता था?'
सचिव - 'सर, वह पुलिस के पास गया था। डीएम का कहना है कि पुलिस ने उसे भगा दिया। कहा कि आत्महत्या के इतने मामले हमारे पास हैं कि हम कोई नया केस नहीं ले सकते। फिर तुमने तो अभी तक आत्महत्या भी नहीं की है।'
प्रधानमंत्री - 'पुलिस वाले भी क्या करें! उन पर पहले से ही काफी प्रेशर है। फिर ये आत्महत्याएँ...अच्छा, तुमने यह पता लगाया कि वह किसान किसी विपक्षी दल का तो नहीं था? आजकल विपक्ष मेरे पीछे पड़ा हुआ है। इसलिए शक होता है।'
सचिव का सिर 'नहीं' में हिला - 'नो सर, वह एक सीधा-सरल किसान था। आप तो जानते ही हैं, देश में किसानों की कोई पार्टी नहीं है!'
प्रधानमंत्री थोड़ा और गंभीर हो गए। बोले - 'विपक्षी दल का भी नहीं था। सीधा-सरल किसान था। विदर्भ पैकेज के बारे में भी उसने सुन रखा था। फिर उसने आत्महत्या क्यों की? कोई मानसिक बीमारी वगैरह? आजकल डिप्रेशन से काफी लोग आत्महत्या कर रहे हैं। हाँ, अपनी डायरी में नोट कर लो - मेंटल हेल्थ (मानसिक स्वास्थ्य) पर एक राष्ट्रीय सेमिनार कराना है।'
सचिव - 'यस सर, डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) वाले आए थे, वे भी चाहते हैं कि मेंटल हेल्थ पर अखिल भारतीय स्तर का सेमिनार हो। मैंने उन्हें आपका अप्वाइंटमेंट नहीं दिया था। कहा था, पीएम अभी किसानों की समस्याओं से जूझ रहे हैं।'
प्रधानमंत्री - 'सो तो ठीक है। लेकिन मैं किसानों की समस्याओं से कब तक जूझता रहूँगा? इधर प्राइसेज बढ़ रही हैं। सेंसेक्स गिरने लगा है। ये किसान बहुत ही इनसेंटिव (संवेदनहीन) हो गए हैं। न इन्हें देश की फिक्र है, न देश की इमेज की। साल में छह महीने खाली बैठे रहते हैं। वो कहावत है न, खाली दिमाग शैतान का घर। बस झोंक चढ़ी और आत्महत्या कर ली!'
सचिव-'यू आर राइट, सर।'
प्रधानमंत्री - 'देखो, ऐसा करो। भविष्य में इस तरह के छिटपुट केस मेरे सामने मत लाया करो। मेरा ध्यान बँटता है। किसानों की आत्महत्या की एक फाइल बना लो। उसमें एक-एक मामला दर्ज करते चलो। महीने में जिस दिन मेरे पास कोई फाइल न हो, उस दिन यह फाइल मुझे दिखा दिया करना।'
'राइट, सर।' सचिव अपना-सा मुँह लेकर अपनी मेज पर वापस आ गया। वह न रो पा रहा था, न हँस पा रहा था।