प्रयोगशाला / जयप्रकाश मानस
पहले दिन उन्होंने प्रयोगशाला में एक पिंजड़ा रखा। उसमें एक चूहा था। बोर्ड पर लिखा गया—'स्वच्छता अभियान'।
दूसरे दिन चूहे के गले में एक छोटी-सी घंटी बाँध दी गई। बोर्ड बदला गया—'आत्मनिर्भर चूहा'।
तीसरे दिन पिंजड़े के बाहर एक बिल्ली की मूर्ति रख दी। चूहा सहमकर कोने में दुबक गया। बोर्ड पर लिखा—'सुरक्षित चूहा'।
चौथे दिन मूर्ति हटाकर असली बिल्ली ले आए। चूहे ने घंटी बजा-बजाकर आत्महत्या कर ली। बोर्ड पर लिखा गया—"दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना"।
पाँचवें दिन नया चूहा लाया गया। इस बार पिंजड़े में एक छोटा—सा झंडा रख दिया। बोर्ड पर लिखा—'राष्ट्रभक्त चूहा'।
छठे दिन जब बिल्ली ने चूहे को खा लिया, तो प्रयोगकर्ताओं ने एक दूसरे की ओर देखा। फिर बोर्ड पर लिखा गया—'चूहे की मृत्यु नहीं, बल्कि बिल्ली के पेट में देश-सेवा'।
सातवें दिन प्रयोगशाला के बाहर एक नया बोर्ड लगा—'चूहा मुक्त प्रयोगशाला'।
अंदर, एक नए पिंजड़े में बंद बंदर ने अपनी आँखें मूँद लीं।
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