प्रयोजन / प्रदीप बिहारी

Gadya Kosh से
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हम दुनू एक-दोसराकें देखिते टा रही। जे ओकरा पसिन पड़ैक, से हमरो पसिन पड़ि जाय। जे हमरा, से ओकरो।

हमरा दुनू गोटेकें ओतबे कालक भेंट होअय, जतेक काल रिहर्सल होइक। ताहूमे बेसी समय नाटक, पात्र आ चरित्रेक मंथनमे बीतय। ओकर अभिनय पक्ष मजगूत रहैक। नेत्राभिनयमे महारथ रहैक ओकरा।

ओ कखनो क'हमरा कहय, "इम्प्रोवाजेसन में अहाँक जवाब नहि। कोना एते सोचि लैत छियैक? हमरो सिखा ने दिअ'।"

हम मात्र सुनि ली। उतारा नहि दियैक।

ओ बाजय, "निर्देशनक बुधि सभ हमरो सिखा ने दिअ'।"

हम तैयो किछु नहि बाजी, तँ ओ कहय, "कने मुस्किया तँ दियौक।"

हम मुस्कियाइत बाजी, "बूड़ि बनाब' लेल केओ नहि भेटलौ-ए?"

क्षणहि सोची। ई की बाजि देलियै? भाव किछु आ संवाद किछु। मुदा ओकरा लेल धनि सन। बाजय, "दोसर के भेटत?" आ ठिठिया लागय। ठिठिआइते बाजय, "अहाँ मुस्कियाइत छी तँ ।"

हठात् ओकर भाव बदलि जाइक। ओ लजबिज्जी बनि जाय। तखन हमरो मोन होअय जे ओकर आँखि दिस ताकी। मुदा, वैह हमरा दिस कनडेरिये ताकि हमर मोनक बात पुराबय।

एतबे आ एहने गप भ' पाबय हमरा सभक।

ओकरा किछु प्रमाण पत्र आ फोटो प्रमाणित करयबाक रहैक। हम अपन डाक्टर मित्र लग पठौने रहियैक।

दू दिनक बाद बजारमे भेंट भेल। कहलकि, "अहाँक डाक्टर-मित्र लबड़ा अछि।"

हमरा हँसी लागि गेल, "से की?"

"अहाँ सँ हमर सरोकारी पूछय लागल-के हेता? हम चुप। फेर पुछलक-भाइ? हम बजलियै-नहि। ओ बाजल-एके गामक छी? नहि। एके कालोनीक? नहि। तखन... हम चुपचाप सुनैत रही। हमरा जवाब नहि दैत बूझि ओ चुप भ' गेल, तँ हम पुछलियैक-हमर एहि काजमे अपनेक एहि प्रश्न सभक की प्रयोजन? ओ बाजल-किछु नहि। मित्र अहाँक बारमे किछु विशेष नहि कहलनि, तें पुछलहुँ जे के हेताह? हम अकच्छ होकर कहलियै-अहाँ जे बूझी।"

कनेकाल दुनू गोटें चुप रहलहुँ। मने कोनो चीज दुनू गोटेकें नीक लागल होअय। वा एक्कहिटा बात दुनू गोटेक मोनमे घुरियाइत होअय। ओ चुप्पी तोड़लकि, "एकटा प्रश्नक जवाब दिअ' ने।"

"पूछ।"

" डाक्टरकें अपना दुनू गोटेक कौन सम्बन्ध कहितियैक? हमरा ने तखन फुरायल आ ने एखन फुराइए. अहाँकें किछु फुराइए?

हम चुप रही। वैह बाजलि, "बेस! सोचि क' कहब हमरा।"

हम ओकर प्रश्नक उतारा नहि द' सकलियैक।

ओकर एहि प्रश्नक बाद दुनू गोटे मात्र एकटा नाटकमे काज कयलहुँ। रिहर्सल में दुनू गोटेक गप-सप, पसिन-नापसिन ओहिना होअय, जेना पहिने रहय। मुदा, ओकर प्रश्नक उतारा ताबत धरि हमरा नहि फुरायल।

अनचोके ओकर पिताक बदली भ' गेलनि। ओकरा ई शहर छुटि गेलैक। हमरा ओ छुटि गेलि। ओकर प्रश्नक उतारा हमरा मोनहिमे रहि गेल।

मुदा, ओकर प्रश्न हमर संग नहि छोड़लक।

आइ करीब पनरह बर्खक बाद ओ भेंट भेल छलि। वैह चिन्हलकि। हाल-सूरति भेल। ओकर संगक कन्या जखन गोड़ लगलकि, तखन ओकरा पर ध्यान गेल। किशोरवयक ओहि कन्याक परिचय करौलक, "हमर बेटी."

"से चिन्हि गेलियै। ऎनमेन माय सन।"

बेटी हमरा दुनूकें छोड़ि पोथीक दोकान दिस सहटि गेलि।

ओ कहलकि जे ओकर पतिक पदस्थापन एही शहरमे भेलैक अछि। हम मोने-मोन सोचय लगलहुँ-पिताक संग एहि शहरसँ गेलि आ पतिक संग आयलि। वाह रे संयोग।

"की सोचैत छी? हम जे प्रश्न पूछने रही, तकर जवाब आबहु फुरायल कि नहि?"

"मुदा, तकर की प्रयोजन?"

ओ अपन क्वार्टर नम्मर कहैत आमंत्रित कहलकि, "पत्नी आ बच्चा सभकें ल 'क' आउ ने।"

"से संभव नहि।"

ओ प्रश्न-दृष्टिएँ तकलकि।

"हम जतेक गोटे छी, से तोरा सोझाँमे छी। एहिसँ बेसी कहियो भेलहुँ कहाँ?" हम मुस्किया देलहुँ।

मुदा, आइ हमर मुस्की ओकरा नीक नहि लगलैक, मने।