प्रशंसकों का दबाव निर्णायक है / जयप्रकाश चौकसे

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प्रशंसकों का दबाव निर्णायक है
प्रकाशन तिथि : 14 मार्च 2013


आदित्य चोपड़ा की 'गुंडे' में युवा अर्जुन कपूर और रनवीर सिंह काम कर रहे हैं और दोनों ही की सफल सितारा बनने की आशा की जा रही है। उद्योग नए सितारों को गढऩे को प्राथमिकता दे रहा है, क्योंकि मौजूदा सुपर सितारे पचास के निकट पहुंच रहे हैं। उनकी लोकप्रियता में बढ़ती उम्र के कारण कोई कमी नहीं आई है। दरअसल उनकी लोकप्रियता के कारण उनका मेहनताना इतना अधिक है कि निर्माता का मुनाफा कम हो गया है और फिल्म निर्माण में उनका भरपूर दखल भी रहता है। निर्माता कमोबेश बड़े सितारे का सवैतनिक दास हो जाता है। अत: स्थापित और आजमाए हुए सितारों के दम पर सालाना सौ फिल्में नहीं बनाई जा सकतीं। करण जौहर ने भी आलिया भट्ट, सिद्धार्थ मल्होत्रा और वरुण धवन को प्रस्तुत किया और अब इनमें से दो सितारों के साथ वह एकता कपूर की भागीदारी में फिल्म बना रहे हैं। 'विकी डोनर' के आयुष्मान खुराना को आदित्य चोपड़ा ने तीन फिल्मों के लिए अनुबंधित किया है। इलियाना डीक्रूज को 'बर्फी' में प्रस्तुत किया गया है।

आज रनवीर सिंह के पास संजय लीला भंसाली की रोमियो-जूलियट प्रेरित फिल्म है। आज अर्जुन कपूर और आयुष्मान के साथ भी फिल्म बनाई जा सकती है। वरुण धवन के साथ भी दूसरे युवा सितारे को लेकर फिल्म बनाई जा सकती है, परंतु दो-तीन वर्षों में ही लोकप्रियता प्राप्त करने के बाद दो सितारा फिल्म बनाना उसी तरह कठिन हो जाएगा, जिस तरह आज आप सलमान खान और शाहरुख या ऋतिक रोशन और आमिर खान के साथ फिल्म नहीं बना सकते। भव्य सितारों का अहंकार भव्यतर होता है और वे अपने बाजार मूल्य से इस तरह वाकिफ हैं कि इस तरह की बहुसितारा फिल्म के लाभ के बंटवारे के कारण साथ काम नहीं करते। आज रनबीर कपूर ने राजकुमार हिरानी की 'पी.के.' की पटकथा को पसंद करने के बावजूद आमिर खान के साथ समानांतर भूमिका करने से इनकार कर दिया।

हम कल्पना कर सकते हैं कि तीनों खान एक फिल्म में साथ काम करें तो उसका क्या मुनाफा होगा। विदेशों में सफल सितारे सहर्ष एक-दूसरे के साथ काम करते हैं। इन्हीं कारणों से बहुसितारा पटकथा में कमतर लोगों को लेना होता है। यह भारतीय फिल्म उद्योग में नई परंपरा नहीं है। मेहबूब खान ने दिलीप कुमार और राज कपूर के साथ १९४९ में 'अंदाज' बनाई थी और उस वक्त दोनों ही उभरते हुए सितारे थे, परंतु १९६४ में राज कपूर ने पूरी कोशिश की कि उनकी 'संगम' में दिलीप स्वयं अपनी पसंद की भूमिका चुनें और बाजार भाव से ज्यादा रकम भी लें, परंतु दिलीप कुमार ने मना कर दिया। इसलिए राज कपूर को राजेंद्र कुमार के साथ संतोष करना पड़ा। स्वयं दिलीप ने अपनी 'गंगा-जमना' में दूसरे नायक की भूमिका अपने भाई को दी, जो अत्यंत साधारण अभिनेता थे।

अमिताभ बच्चन के शिखर दिनों में शशि कपूर को उनके साथ काम मिलता रहा, क्योंकि अन्य कोई अभिनेता अमिताभ बच्चन के साथ छोटी भूमिका करने को तैयार नहीं था। सारांश यह कि सफल सितारे एक-दूसरे के साथ काम नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्हें भय है कि पटकथा की मांग पर उन्हें पिटने का दृश्य करना पड़े तो उनके प्रशंसक रुष्ट हो जाएंगे। इस प्रकरण में अदृश्य अनाम प्रशंसक का दबाव बहुत गहरा अर्थ रखता है। सलमान खान और आमिर खान ने राजकुमार संतोषी की 'अंदाज अपना अपना' में काम किया, क्योंकि उस समय तक दोनों आज की तरह भव्य सितारे नहीं थे। 'हिम्मतवाला' जैसी साधारण-सी मसाला फिल्म का नया संस्करण बन रहा है, लेकिन 'अंदाज अपना अपना' का सलमान और आमिर के साथ नया संस्करण नहीं बनाया जा सकता।

हमारे यहां तो राजकुमार जैसे सितारे हुए हैं, जो सहयोगी सितारे को जूनियर कलाकार कहने में अपनी शान समझते थे। जिस तरह से अनाम अदृश्य प्रशंसक निर्णायक होता है, उसी तरह राजनीति में भी छवियां महत्वपूर्ण होती हैं अन्यथा अगले चुनाव में तीसरे विकल्प के अभाव में कांग्रेस और भाजपा मिल-जुलकर लड़ सकते हैं और देश को ठोस सरकार दे सकते हैं। इन दोनों दलों के बी केवल धर्मनिरपेक्षता पर ही परस्पर विरोध है, क्योंकि अन्य मामलों में दोनों में ही भ्रष्टाचार के दोषी मौजूद हैं।

सत्ता के बाहर रहकर भाजपा के समर्थक पाकिस्तान विरोध की नारेबाजी करते रहते हैं, परंतु सत्ता में आने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने समझौता एक्सप्रेस चलाई। क्रिकेट दौरों का आरंभ किया। आज दो आणविक शस्त्रों से सुसज्जित देश युद्ध नहीं कर सकते।

इन दोनों का मिलना दो ध्रुवों के मिलने की तरह असंभव है, परंतु सिद्धांतहीनता के इस भयावह दौर में कुछ भी मुमकिन है। दोनों ही दलों के छुटभैया नहीं चाहेंगे कि इस तरह की अनहोनी घटित हो। सभी जगह 'वाह! वाह' करने वाले छुटभैया लोगों की रोजी-रोटी इन्हें परस्पर विरोधी बनाए रखने में ही है। यह प्रवृत्ति संगठित अपराध दलों मेें भी है। 'छुटभैये' दो दलों को एक नहीं होने देते।