प्रस्तावना / आइंस्टाइन के कान / सुशोभित
सुशोभित
मैं विज्ञान का विद्वान नहीं हूँ। यों उद्भट तो किसी भी विषय का नहीं। किन्तु विज्ञान का तो मैं कभी औपचारिक छात्र भी नहीं रहा था, जैसे साहित्य और दर्शन का रहा हूँ। कदाचित् इसी अभाव के परिणामस्वरूप विज्ञान के प्रति मुझमें गहरा अचरज, कौतूहल और ललक उत्पन्न हुई और कालान्तर में मैंने स्वाध्याय से इस विषय का अध्ययन किया। जो बातें मैंने जानीं, उन्हें- परोपकार के लिए कह लें या वृत्तान्तकार की वृत्ति के वशीभूत होकर की गई चेष्टा कह लें- औरों को भी बतलाने के प्रयोजन से समय-समय पर ये लेख लिखे गए। अब जब इनका पुस्तकाकार संकलन प्रकाशित हो रहा है तो मुझे बड़ा संतोष मिलता है। क्योंकि जब मैं स्वयं के लिए विज्ञान पर सरल, सुबोध, सहज शैली में लिखे गद्य की तलाश कर रहा था, तब ऐसी कोई पुस्तक मुझे मिलती तो बड़ा सुख होता। कदाचित्, आज अनेक मित्रगण वैसी ही तलाश में हों, और यह पुस्तक उनके लिए गंतव्य सिद्ध हो।
चूँकि ये लेख एक विद्यार्थी की दृष्टि से लिखे गए हैं, इसलिए यह विद्वानों के बजाय विद्यार्थियों के ही अधिक उपयोगी ठहरती हैं। विद्वान भी अगर कथावस्तु की दृष्टि से जानी-पहचानी चीज़ों को पढ़ना चाहें तो स्वागत है, क्योंकि कहने की कला से वस्तु का रूप बदल जाता है। हिंदी में यों भी लोकप्रिय विज्ञान पर पर्याप्त नहीं लिखा गया है। यह क्षेत्र बहुधा अभावग्रस्त ही रहा। साहित्य की मुख्यधारा ने इसकी भरसक उपेक्षा ही की। आशा है यह पुस्तक उस रिक्ति की पूर्ति कर सकेगी और पाठकों के मन में विज्ञान के प्रति वही आश्चर्यदृष्टि जगाएगी, जो इस लेखक का पाथेय रही है।
इन पंक्तियों के लेखक की अन्य पुस्तकों की ही तरह यह भी ललित, रचनात्मक गद्य की ही पुस्तक है, अंतर इतना ही है कि इस बार विषय भौतिकी, खगोलिकी, जैविकी आदि हैं, काव्य, दर्शन, सौंदर्यशास्त्र आदि नहीं। कदाचित्, ललित-शैली में लोकप्रिय विज्ञान लेखन का यह अभिनव प्रयोग पाठकों को और रुचिकर ही लगे। ज्ञानवर्द्धन तो उससे होना ही है।
पुस्तक कार्ल सैगन को समर्पित है, जिनके कॉसमॉस की प्रेरणा के बिना इसका लेखन सम्भव नहीं हो सकता था। केपलर, न्यूटन, आइंस्टाइन, डार्विन, हॉकिंग, हरारी आदि भी इसमें जब-तब मंच पर अवतरित होते दिखलाई देते रहेंगे। इसमें विज्ञान से सम्बंधित कुछ विषयों, कथानकों, परिघटनाओं और व्यक्तियों पर सरस-चर्चा की गई है और अंतर्वस्तु भले अमूमन विद्वानों को सर्वज्ञात हो, अभिव्यक्ति की रोचकता, निमंत्रण, समावेश से उसे प्रीतिकर बनाने का यत्न किया गया है। बीच में कुछ लोकप्रिय साइंस फ़िक्शन फ़िल्मों पर भी यथेष्ट विवेचना है।
मुझे विश्वास है पाठकों को यह विनीत प्रयास रुचेगा और वे इससे प्रेरित होकर विज्ञान के और गम्भीर अध्ययन के लिए उद्यत हो सकेंगे। यही इस लेखक का मनोरथ भी है। अस्तु।