प्रस्तावना / जीवन संध्या / सत्य शील अग्रवाल
पृथ्वी पर उपलब्ध सभी जीव जंतुओं में मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। मानसिक विकास की अदभुत क्षमता के कारण मानव जीव निरंतर उन्नत जीवन शैली की ओर अग्रसर है। एवं उसकी विकास यात्रा लगातार जारी है। जबकि दुनिया के अन्य जीव जंतु अपने उद्भव काल के अनुरूप ही आज भी विचरण कर रहे हैं।
यह मानवीय विकास का ही परिणाम है, जो उसने पूरी मानव जाति के लिए भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित कर ली। दिन हो या रात,गर्मी हो या बरसात, हिम काल हो या सूखे या बाढ़ की विपदा। भोजन (संगृहीत ) हमेंशा मानव के लिए उपलब्ध रह पाता है। इसी प्रकार से अनेक प्राकृतिक आपदाओं, अर्थात सुनामी, चक्रवात, भूकंप, अतिवृष्टि, एवं अन्य मौसमी कहर से स्वयं को सुरक्षित कर पाने में सक्षम हो गया है। पूरी मानव जाति आपदा ग्रस्त इंसानों के कष्ट निवारण में जुट जाती है। किसी अन्य जीव के साथ ऐसी सुविधा नहीं है। किसी अन्य जीव के बूढा हो जाने, अशक्त हो जाने, बीमार हो जाने पर भोजन पाने का कोई विकल्प नहीं होता। यह सिर्फ मानव के लिए ही संभव है की वह अपनी प्रौढ़ावस्था अथवा निष्क्रिय काल में भी भोजन की उपलब्धता के साथ साथ सम्मान पूर्वक, शांति पूर्वक जी पाता है। आज भी पूरी मानव जाति इन्सान के जीवन की अंतिम अवस्था अर्थात जीवन संध्या को सुखद एवं कल्याणकारी बनाने के लिए प्रयासरत है, ताकि जीवन के अंतिम प्रहार को शांती पूर्वक निर्वहन करते हुए दुनिया से विदा ले सके।
विकसित देशों की सरकारें आर्थिक रूप से इतनी सक्षम हैं की वे अपने राजकोष से अपने देश के सभी बुजुर्गों के भरण पोषण एवं देख रेख की जिम्मेदारी उठा सकती हैं.जबकि हमारे देश की सरकार अभी इस अवस्था में नहीं है और हमारे देश की आबादी भी बहुत अधिक होने के कारण साधनों का अभाव बना रहता है। अतः अपने देश के बुजुर्गों की देख भाल की जिम्मेदारी उसके परिवार की है, जिसका समस्त बोझ परिवार के युवा सदस्यों को उठाना होता है। यही कारण है हमारे देश के बुजुर्गों को अपने परिजनों से सामंजस्य बनाये रखने की मजबूरी होती है। यदि किसी कारण वश वह अपने परिजनों से सामंजस्य बना पाने में अक्षम रहता है, तो वृद्ध आश्रम ही एक मात्र विकल्प रह जाता है, जो सभी बुजुर्गों के लिए आसान नहीं होता, उनके लिए वहां का वातावरण उन्हें स्वीकार्य नहीं होता। पिछले छः दशक में विकास इतनी तीव्र गति से हुआ है जिसने जीवन शैली और सामाजिक व्यवस्था में अप्रत्याशित परिवर्तन किया है। वर्त्तमान बदलाव से आज के बुजुर्ग हतप्रभ हैं। और अपने को परिवार एवं समाज के नए वातावरण में समायोजित कर पाने में असमर्थ पाते हैं। "वर्तमान युग में बुजुर्गों की स्थिति ऐसी हो गयी है, जैसे “ खेत में पक चुकी फसल, जिसे काट कर खेत साफ कर दिया जाता है ताकि अगली फसल की बुआई की जा सके ” उपरोक्त अप्रत्याशित सामाजिक परिवर्तनों के सन्दर्भ में बुजुर्गों की समस्याओं को समझना, उनका अध्ययन करना और संभावित समाधानों को खोजने का प्रयास करना ही प्रस्तुत पुस्तक का मुख्य उदेदेश्य है। ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीवन संध्या को सहज, सम्माननीय एवं शांति पूर्ण जी सके।
समस्याओं के इसी क्रम को ध्यान में रखते हुए अनेक प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से जूझने के लिए उपयुक्त जीवन शैली तथा खान -पान पर प्रकाश डाला गया है। उन्हें अपने परिवार के सदस्यों से सामंजस्य बनाने के लिए उनके व्यव्हार को परिभाषित किया गया है, वर्तमान वातावरण में बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए आवश्यक सतर्कता पूर्ण कदमों को रेखांकित किया गया है, साथ ही आज के दौर में हमारे बुजुर्गों को क्या क्या सरकारी सुविधाएँ मिली हुई हैं, और उनके अतिरिक्त क्या अन्य सुविधाएँ दी जानी आवश्यक हैं, के बारे में भी चर्चा की गयी है। जिससे अपने देश के बुजुर्गों को सम्माननीय जीवन बिताने का अवसर प्राप्त हो सके। मानवीय विकास की सफलता भी इसी बात पर निर्भर है की सम्पूर्ण मानव समाज अपने सम्पूर्ण जीवन को निर्भयता, ससम्मान एवं शांति पूर्वक जी सके।