प्राकृतिक आपदा से प्रेरित फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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प्राकृतिक आपदा से प्रेरित फिल्में
प्रकाशन तिथि : 04 मई 2019


जॉन स्टीनबैक के महान उपन्यास 'द ग्रेप्स ऑफ रैथ' पर फिल्म बन चुकी है। भीषण बाढ़ तबाही मचाती है। कुछ लोग एक ऊंचे टीले पर चढ़ जाते हैं और वहां एक पुराने टूटे-फूटे मकान में शरण लेते हैं। उन्हें छोटी सी आशा है कि आंधी-तूफान थम जाएगा। बाढ़ का पानी उस ऊंचाई तक नहीं पहुंचेगा। यह मनुष्य का माद्दा है कि सबसे कमजोर डोर थामकर बचने की आशा करता है। एक युवा महिला जिसका शिशु कुछ समय पूर्व ही मरा है, अपनी उम्रदराज सास को सहारा देकर टीले पर पहुंच गई है। उस टूटे-फूटे जर्जर से मकान में कुछ और भी लोग पहुंचे हैं। वहां एक आदमी भूख से मरने के करीब जा पहुंचा है। युवती की सास अपनी बहू से कहती है कि इस भूखे आदमी को वह स्तनपान कराए ताकि वह जीवित रह सके। बाहरी मदद कभी भी आ सकती है। युवती भूखे को स्तनपान कराती है। फिल्म के इस दृश्य को किसी ने भी अश्लील नहीं माना। राज कपूर की 'राम तेरी गंगा मैली' में भी नायिका अपने शिशु को स्तनपान कराती है। रेल यात्रा के दृश्य में एक बुढ़िया कहती है कि गाय भी चारा नहीं मिलने पर दूध नहीं देती। भूख से बेहाल मां कैसे शिशु को दूध पिलाए। बहरहाल, इसी फिल्म के एक अन्य दृश्य में दुग्ध पान करा रही महिला को कहा जाता है कि अब तन ढंकने का समय गया। दूध पिला रही महिला कहती है कि अपनी मां का दूध पीते समय भी क्या इसी तरह के विचार उसके मन में आते थे। इस तरह के सवाल का जवाब देने पर पुरुष नारी को थप्पड़ मारता है।

करण जौहर की उबाऊ फिल्म 'माई नेम इज खान' में बाढ़ में फंसे लोगों का एक दृश्य था, जिसमें दिमागी केमिकल लोचे से ग्रस्त नायक कई लोगों के प्राण बचाता है। अमेरिका की सरकार एक संकट विभाग संचालित करती है जो हर आपदा के समय बिजली की गति से पहुंच जाता है। राजकुमार हिरानी 'मुन्नाभाई' शृंखला का तीसरा भाग बनाना चाहते थे, जिसमें मुन्ना भाई अमेरिका के प्रेसिडेंट से मुलाकात करने वाला होता है। इस तरह की खबर प्रकाशित हुई और आनन-फानन में 'माय नेम इज खान' बना ली गई, जिसमें नायक बराक ओबामा से मिलता है। वह दिन दूर नहीं जब किसी का विचार कागज पर लिखे जाने से पहले ही चोरी हो जाएगा। राज कपूर की 'सत्यम शिवम सुंदरम' की पटकथा में भी क्लाइमैक्स में बाढ़ का दृश्य था। जब पुणे के निकट लोनी ग्राम के राज बाग में फिल्म की शूटिंग चल रही थी तब वहां वास्तव में बाढ़ आ गई और कैमरामैन राधू कर्माकर ने कमर तक आए पानी में खड़े रहकर कुछ शॉट्स लिए। ज्ञातव्य है कि राधू कर्माकर की आत्मकथा का नाम था 'ए पेंटर विद लाइट' इसी के साथ 'विद शैडो' भी जुड़ा होना चाहिए था। श्वेत-श्याम फिल्म में सेट की गहराई की बारीकियों के फिल्मांकन के लिए बहुत कल्पनाशीलता से लाइटिंग करनी होती थी। बहरहाल, इस लेख को लिखने का विचार ही इसलिए आया कि उड़ीसा में 210 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तूफान आया है। उड़ीसा और कोलकाता के एयरपोर्ट बंद कर दिए गए हैं। ट्रेनें निरस्त हैं। लाखों लोगों को सुरक्षित जगह पर पहुंचाया गया है।

प्राकृतिक आपदा को अभिशाप से जोड़ना जहालत है और जीडीपी को आशीर्वाद मानना भी उतना ही गलत है। हमने पृथ्वी को बहुत लूटा है। अनगिनत वृक्ष काट दिए गए हैं। नदियों को प्रदूषित कर दिया गया। नदियां, समुद्र और वृक्ष एक अदृश्य डोर से बंधे हैं। मनुष्य का लोभ और लालच पृथ्वी के अस्तित्व को संकट में डाल रहा है। 'अवेंजर्स एंडगेम' में भी दिखाया गया है कि पृथ्वी संकट में है और इस फिल्म शृंखला की सभी कड़ियों के नायक इस फिल्म में पृथ्वी की रक्षा के लिए एक साथ मिलकर प्रयास करते हैं। विज्ञान फंतासी फिल्मों के माध्यम से नैतिक मूल्यों की स्थापना का संदेश दिया जाता है। दुष्यंत कुमार याद आते हैं....'बाढ़ की संभावनाएं हैं सामने और नदी के किनारे हैं घर बने/ चीड़ वनों में आंधियों की बात मत कर/ बेहद नाजुक हैं इन दरख्तों के तने'। 23 मई को चुनावी परिणाम की बाढ़ में ज्ञात होगा कि कितने नाजुक हैं दरख्तों के तने।