प्राक्कथन / कविता भट्ट
योगदर्शन के गौरवमय इतिहास में नया सोपान जोड़ते हुए; कुछ समय पूर्व ही 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया गया। यह ऐतिहासिक फैसला भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति हेतु असीम गौरव का विषय है। योगाभ्यास की अनेक तकनीकियाँ अपनाकर समस्त मानव समाज स्वस्थता के नित्य नये सोपानों पर आरूढ़ हो रहा है। स्वास्थ्य को बनाये रखने एवं अस्वस्थ होने पर मनोशारीरिक स्वस्थता हेतु वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में आज योग का उपयोग किया जा रहा है। व्यक्ति का समग्र रूप से स्वस्थ रहना प्राथमिक एवं अनिवार्य आवश्यकता है और योगाभ्यास द्वारा स्वस्थता प्राप्ति को वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा सिद्ध किया जा चुका है। परिणामतः धर्म, जाति, सम्प्रदाय, क्षेत्र तथा संस्कृति की संकीर्ण परिधियों से ऊपर उठकर योग को अपनाया एवं प्रचारित किया जा रहा है। विश्व के अधिकांश राष्ट्र इसे स्वस्थता की वैज्ञानिक प्रविधि के रूप में स्वीकार कर चुके हैं और निरन्तर इसका अनुकरण एवं अनुगमन कर रहे हैं। योगदर्शन के क्षेत्र में अध्ययन, अध्यापन एवं लेखन में संलग्न रहते हुए मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि; अथाह लोकप्रियता के होते हुए भी इस क्षेत्र में नये-नये मापदण्डों को ध्यान में रखते हुए पुस्तकों की आवश्यकता है। यद्यपि इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार का लेखन, शिक्षण एवं अनुसंधान जारी है; किन्तु फिर भी सरल, सुसमायोजित, सुव्यस्थित एवं सारगर्भित प्रस्तुतीकरण का अभाव अभी भी है। यह पुस्तक व्यक्तित्व के योगशास्त्रीय, औपनिषदिक एवं शरीर-क्रिया वैज्ञानिक विवेचन के साथ ही शाकाहारी एवं सात्त्विक भोजन, यथोचित दिनचर्या, योगाभ्यास की आवश्यकता एवं पूर्वापेक्षा, यम, नियम, षट्कर्म, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा एवं ध्यान से शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों को एक साथ साररूप में स्पष्ट करने का विनम्र प्रयास है। इस पुस्तक में छात्रों तथा जनसामान्य के स्वास्थ्य, व्यक्तित्व परिष्करण एवं ज्ञानवर्धन हेतु राजयोग एवं हठयोग के सैद्धान्तिक, क्रियात्मक एवं व्यावहारिक पक्षों के सारगर्भित समायोजन का प्रयास किया गया है। पाठकों की शुभाशंसा प्राप्त करते हुए; सरल भाषा में रचित यह पुस्तक छात्रों, अध्यापकों, शिक्षाविदों के साथ ही योग में प्रवृत्त जनसामान्य हेतु भी उपयोगी सिद्ध होगी; ऐसी अपेक्षा एवं विश्वास है ।
कविता भट्ट