प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और विज्ञान / निमिषा सिंघल

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सबसे प्राचीन सभ्यता का नामकरण हिंदुओं के प्रारंभिक साहित्य, वेदों के नाम पर किया गया जिसे वैदिक सभ्यता कहा जाता है। इस महान अवधि में दो ग्रंथ महाभारत और रामायण का सृजन हुआ।

मनुष्य के हृदय में हमेशा ही कौतूहल बना रहा कि आख़िर संसार क्या है? सृष्टि की रचना किस प्रकार हुई? संस्कृति सभ्यता का विकास किस प्रकार हुआ? संस्कृति को समझने के लिए पहले हमें यह समझना होगा की संस्कृति समाज की जड़ों तक फैली हुई है। यह प्रकृति प्रदत्त नहीं है यह एक शाश्वत प्रक्रिया है। यह समाजीकरण के द्वारा अर्जित की जाती है और सामाजिक जीवन प्रवाह की उद्गम स्थली है।पहले हमें समझना होगा की संस्कृति और सभ्यता में क्या अंतर है?क्योंकि बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि संस्कृति और सभ्यता एक ही बात है।संस्कृति का सम्बंध हमारे चिंतन और हमारी विचारधारा से हैं जबकि सभ्यता का सम्बंध खान-पान, रहन-सहन, बोलचाल से है। कह सकते हैं सभ्यता शरीर तो संस्कृति आत्मा है जैसे जीवित शरीर से आत्मा पृथक नहीं हो सकती सभ्यता संस्कृति भी एक दूसरे के पूरक हैं।

सभ्यता और संस्कृति में मौलिक अंतर यह है कि सभ्यता की माप की जा सकती है लेकिन संस्कृति की माप नहीं की जा सकती। सभ्यता साधन है तो संस्कृति साध्य।

साध्य का तात्पर्य अंतिम लक्ष्य से है जिसमें असीम संतुष्टि का अनुभव होता है।संस्कृति शरीर है तो सभ्यता आत्मा, संस्कृति फूल है तो सभ्यता सुगंध।

हमारी संस्कृति सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान वैदिक युग में विकसित हुई। भारतीय संस्कृति अरण्य संस्कृति है दार्शनिक व रहस्यमय ज्ञान के लिए उपयुक्त स्थल माना जाता है।हमारी भारतीय संस्कृति ने दुनिया को सभ्य बनाया। मनुष्य की उत्तम व सुधरी हुई स्थिति को संस्कृति कह सकते हैं

सभ्यता और संस्कृति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

भारत का इतिहास व संस्कृति परिवर्तनशील रहा है।

सैकड़ों हजारों वर्षों पूर्व लोग कबीलों में समुदायों में रहते थे और वनवासी की तरह जीवन यापन करते थे।

जीवन के प्रति उनका कोई स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं था परिवार और धर्म, संस्कार के सम्बंध में कोई स्पष्ट विचारधारा नहीं थी।

कुछ समझदार लोग थे जिन्होंने वेद को सुना और लोगों को सुनाया।

सिंधु घाटी की सभ्यता रहस्यमयी मानी जाती है सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रसिद्ध शहर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में खुदाई के पश्चात उन्नत वैज्ञानिक दृष्टिकोण व उत्कृष्ट वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग का पता चलता है।

इन शहरों के भग्नावशेष बताते हैं कि इस क्षेत्र में लगभग पांच हज़ार वर्ष पूर्व एक अत्यंत उच्च विकसित सभ्यता फली फूली थी।हड़प्पा संस्कृति में भवन सड़कों नालियों स्नानागार आदि के निर्माण में अंकों और संख्याओं का निश्चित रूप से उपयोग हुआ है ऐसे साक्ष्य मिलते हैं।

हमारी महान संस्कृति की मूल जड़े मानवता और अध्यात्म का मार्ग दिखाती हैं।हमारी संस्कृति हमें हाथ जोड़ मुस्कुराकर नमस्कार करना सिखाती हैं इसके कई वैज्ञानिक कारण है उंगलियों के आपसी दबाव के कारण मस्तिष्क में संवेदनशीलता बढ़ने से शक्ति का संचार होता है। इस गौरवशाली सांस्कृतिक परंपरा से हम सामने वाले व्यक्ति के मन में अपना अमित प्रभाव छोड़ते हैं।

हमारी संस्कृति में तुलसी पूजा का विशेष महत्त्व है। तुलसी का आयुर्वेद में विशेष स्थान है यह हमें कैंसर और अन्य बीमारियों से लड़ने में मदद करती है।

आयुर्वेद ,संस्कृति और विज्ञान का आपस में गहरा तालमेल है

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी सभ्यता , संस्कृति का विकास विज्ञान की मदद के बिना नहीं हो सकता।जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान का कितना महत्त्व है यह प्राचीन काल से ही देखा जा सकता है।

विज्ञान हमेशा से ही प्रयोगों, सामान्य नियम और सत्य पर आधारित रहा है। विज्ञान का जन्म अंधविश्वास के विरुद्ध युद्ध से शुरू हुआ।

घटित होने वाली कुछ घटनाओं का जब कारण समझ में नहीं आया तो लोगों ने खोजना शुरू किया और विज्ञान ने उनका पथ प्रशस्त किया।

भारत का इतिहास व संस्कृति परिवर्तनशील रहा है।

सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रसिद्ध शहर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में खुदाई के पश्चात उन्नत वैज्ञानिक दृष्टिकोण व उत्कृष्ट वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग का पता चलता है।

इन शहरों के भग्नावशेष बताते हैं कि इस क्षेत्र में लगभग पांच हज़ार वर्ष पूर्व एक अत्यंत उच्च विकसित सभ्यता फली फूली थी।हड़प्पा संस्कृति में भवन सड़कों नालियों स्नानागार आदि के निर्माण में अंकों और संख्याओं का निश्चित रूप से उपयोग हुआ है ऐसे साक्ष्य मिलते हैं।

हमारी महान संस्कृति की मूल जड़े मानवता और अध्यात्म का मार्ग दिखाती हैं।

लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी सभ्यता का विकास विज्ञान की मदद के बिना नहीं हो सकता।जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान का कितना महत्त्व है यह प्राचीन काल से ही देखा जा सकता है। यद्यपि यह एक सुविदित तथ्य है कि प्राचीन भारतीयों ने धर्म और दर्शन में विशेष रूचि ली लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि व्यावहारिक विज्ञान में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी।सभ्यता के आदिकाल पाषाण काल से ही हमें यहाँ के निवासियों में वैज्ञानिक बुद्धि होने का स्पष्ट प्रमाण मिलता है।

विज्ञान हमेशा से ही प्रयोगों, सामान्य नियम और सत्य पर आधारित रहा है। विज्ञान का जन्म अंधविश्वास के विरुद्ध युद्ध से शुरू हुआ।

घटित होने वाली कुछ घटनाओं का जब कारण समझ में नहीं आया तो लोगों ने खोजना शुरू किया और विज्ञान में उनका मार्ग प्रशस्त किया और उन्नति और ज्ञान की नई परिभाषा रच दी। विज्ञान का स्थान धर्म और नैतिकता से कोई लेना-देना नहीं यहाँ भावनाएँ भी काम नहीं करती विज्ञान सिद्धांत और परीक्षण पर आधारित होता है तथा तथ्यों की परख के लिए कड़े दृष्टिकोण की भी आवश्यकता होती है।

विज्ञान का विलय जब संस्कृति और सभ्यता के साथ हो जाता है तो सौंदर्य और नैतिकता में सामंजस्य होने पर ही सुदृढ़ समाज का निर्माण होता है।

जाती।

आज भी संसार में बहुत कम लोग जानते हैं कि हमारे देश की कि विद्यार्थियों को अपने प्राचीन वैज्ञानिकों के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं है अपने देश के प्राचीन वैज्ञानिक चरक सुश्रुत आर्यभट्ट भास्कर अचार्य जैसे नामचीन वैज्ञानिक आज के विद्यार्थियों के लिए पहेली मात्र हैं।

आचार्य कणाद का जन्म 600 ईसा पूर्व हुआ था उनका नाम आज भी डाल्टन के नाम के साथ जोड़ा जाता है।

तूने बताया था कि कोई भी पदार्थ अत्यंत सूक्ष्म कणों से बना होता है उन्होंने ही इसका नाम परमाणु दिया था बाद में डाल्टन ने परमाणु का सिद्धांत प्रस्तुत किया।

दिग्विजय से स्पष्ट हो जाता है।

ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में निर्मित सांची स्तूप के पूर्व तथा पश्चिमी द्वारों पर अनेक मूर्तियों के मध्य जहाजों की प्रतिक्रिया भी हैं।

भारत गणित शास्त्र का जन्मदाता हैयूरोप में एक प्राचीन गणित की पुस्तक ‘कोडेक्स विजिलेंस’ है जो स्पेन की राजधानी मेड्रिड के संग्रहालय में रखी है किसने लिखा है कि गणना के अंको से सिद्ध होता है कि भारतीयों की बुद्धि तेज़ थी।

सोने व दशमलव की खोज आर्यभट्ट ने की। वैदिक साहित्य बीजगणित तथा वर्गमूल घनमूल निकालने की तकनीकों से भरा पड़ा है।

आर्यभट्ट ने सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के सही कारणों का भी पता लगाया था।

उन्होंने अपनी पुस्तक ‘आर्यभट्टिय’ (499ईस्वी) मैं इस बात का वर्णन किया है कि पृथ्वी गोल है।

पाई का मान 3.1416 होता है यह भी इसी पुस्तक में लिखा है।

आर्यभट्ट ने इस बात का खंडन किया है कि राहु केतु द्वारा सूर्य ,चंद्र को ग्रस लेने से ग्रहण नहीं पड़ते। उन्होंने ग्रहण पड़ने के सही कारण का भी पता बताया।

यह हमारी संस्कृति ही है जो हमें उपवास रखना सूर्य नमस्कार करना जल चढ़ाना बड़ों के चरण स्पर्श योग भूख और विकलांगों को भोजन पानी देना सिखाती है।संस्कृति सभ्यता के साथ विज्ञान क़दम से क़दम मिलाकर चलता आया है।

हम सभी भाग्यवान हैं कि हमें ऐसे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले राष्ट्र में जन्म मिला।

लेकिन हमें अपने प्राचीन ग्रंथों को पढ़ने, समझने और जानकारी प्राप्त करने की अत्यधिक आवश्यकता है।

इतनी सारी प्राचीन खोजें जो हमारे देश में हुई ज्यादातर पर विदेशी ठप्पा लगा हुआ है।

विदेशियों ने हमारे प्राचीन ग्रंथों को पढ़कर उनसे जानकारी प्राप्त कर पहले से की गई खोजों पर अपना नाम लिख दिया और हम जान भी ना पाए पर अब भी संभल सकते हैं देर आए दुरुस्त आए।