प्रायोजित पुस्तक विमोचन और एक शिकायत / जयप्रकाश चौकसे

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प्रायोजित पुस्तक विमोचन और एक शिकायत
प्रकाशन तिथि : 17 जुलाई 2014


खबर है कि दिलीप कुमार और उनकी पत्नी सायरा बानू ने मुंबई के खार पुलिस स्टेशन पर समारा प्रोडक्शन कंपनी के खिलाफ धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज की है। दिलीप कुमार द्वारा बताई गई जीवनी को कलमबद्ध किया पत्रकार उदयातारा नायर ने जिनके मार्फत इस कंपनी ने फरवरी में सायरा बानू से कहा कि दिलीप साहब की "सब्सटेन्स एंड शैडो' का विमोचन कार्यक्रम वे संचालित करेंगे और उस कार्यक्रम में पूरा फिल्म उद्योग मौजूद होगा तथा प्रायोजकों से पांच करोड़ की रकम प्राप्त होगी। आजकल इवेन्ट मैनेजमेंट कंपनियां अनेक प्रकार के काम आयोजित करती हैं, यहां तक कि राष्ट्रीय चुनाव भी एक "इवेन्ट' की तरह आयोजित किए जाते हैं और नेता भी "प्रोडक्ट' की तरह प्रस्तुत किए जाते हैं। यह बाजार की टोपी में सुर्खाब के पर की तरह चस्पा हो रहा है। महान कलाकार दिलीप की किताब के विमोचन पर अमिताभ बच्चन और आमिर खान ने अहम भूमिकाएं निबाहीं और सारे प्रमुख सितारे मौजूद थे। दरअसल पूरा फिल्म उद्योग दिलीप साहब का इतना आदर करता है कि महज सूचना पर ही जलसे में शरीक हो जाते।

आजकल सितारों की मौजूदगी वाले आयोजन टेलीविजन के लिए रिकाॅर्ड किए जाते हैं और फिल्म पुरस्कारों की इस तरह की रिकॉर्डिंग बड़े महंगे दामों में बिकती हैं। यह संभव है कि इस प्रोडक्शन कंपनी के मंसूबे भी इस तरह के रहे होंगे। बहरहाल पुलिस में दर्ज रिपाेर्ट से जाहिर होता है कि सायरा बानू को धन नहीं मिला। खार पुलिस स्टेशन के शिखर अधिकारी विकास सोनवाने साहब ने यह नहीं बताया कि रिपोर्ट के समय स्वयं दिलीप साहब ने क्या कहा या वे खामोश रहे और सारी बात उनकी बेगम सायरा बानो ने की क्योंकि विगत कुछ समय से इस तरह की बात प्रचारित है कि दिलीप साहब की याददाश्त उनके साथ छुप्पाछाई खेल रही है। उनको जानने वाले कुछ लाेगों का कहना है कि विमोचन पर भी वे खामोश ही रहे। उनके चेहरे से आज भी नूर बरसता है और उन्हें देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि वे 92 वर्ष के हैं और अस्वस्थ भी हैं परंतु अफवाह है कि उन्हें सजा संवारकर प्रस्तुत किया जाता है।

दिलीप कुमार ताउम्र एक निहायत ही संजीदा और सुसंस्कृत व्यक्ति रहे हैं और उन्होंने अपने शिखर दिनों में भी कभी कोई दिखावा नहीं किया, कभी शानदार दावतें नहीं दीं, कभी किसी तरह का तमाशा नहीं किया। उनकी पूरी जिंदगी को अगर हम एक फिल्म मान लें तो किताब के पांच सितारा विमोचन का दृश्य पटकथा का हिस्सा नहीं लगता वरन् ऐसा आभास होता है कि एक महान फिल्म में किसी अन्य घटिया फिल्म का अंश जोड़ दिया गया है जिसे इन्टरपोलेशन ऑफ प्रिंट्स कहते हैं। ज्ञातव्य है कि सेन्सर द्वारा काटे अभद्र दृश्यों को छोटे कस्बों में प्रिंट में अवैध रूप से जोड़ जाने को इन्टरपोलेशन कहते हैं। साहित्य में इसे क्षेपक कहते हैं।

कुछ वर्ष पूर्व एक फिल्म का वर्णन कहीं प्रकाशित हुआ था। कथा इस तरह है कि एक प्रसिद्ध अमेरिकन फिल्मकार जिसने विगत कुछ समय में फिल्म नहीं बनाई है, एक और महान फिल्म की शूटिंग के लिए चीन जाता है जहां एक चीनी पूंजी निवेशक भागीदारी का अनुबंध करता है कि चीन में शूटिंग का सारा खर्च वह देगा और एवज में चीन तथा एशिया में प्रदर्शन के अधिकार लेगा। फिल्मकार के पास शेष विश्व में प्रदर्शन के अधिकार होंगे। सैट्स लगाए जा रहे हैं, लोकेशन पर आवश्यक प्रोप्स रचे जा रहे हैं और चीनी पूंजी निवेशक दिल खोलकर खर्च कर रहा है। कुछ दिन की शूटिंग के बाद महान फिल्मकार जिसने अनेक पुरस्कार जीते हैं, हृदयघात से मर जाता है। अब चीनी पूंजी निवेशक अपनी डूबी रकम के लिए परेशान है परंतु वह एक चतुर और हिम्मत नहीं हारने वाला व्यापारी है और बेहद निर्मम संवेदनहीन आदमी है।

वह इस सर्वकालिक महान फिल्मकार की भव्य शवयात्रा का आयोजन करता है और प्रचारित करता है कि शवयात्रा को अंतरराष्ट्रीय चैनल टेलीविजन पर दिखाएंगे, अत: वह प्रायोजकों से सौदेबाजी करता है कि फलां कंपनी के जूते शव को पहनाए गए हैं, फलां कंपनी का सूट है। शवयात्रा जिन गलियों से गुजरेगी, वहां किस दुकान या शोरूम के सामने कितना समय रुकेगी और टीवी कैमरे खुले ताबूत में रखे शव के साथ शोरूम के बोर्ड को भी फ्रेम में लाएगा।

इस तरह एक महान फिल्मकार की शवयात्रा प्रायोजित की जाती है और चीनी पूंजी निवेशक अधूरी छूटी फिल्म में लगाई पूंजी पर सौ प्रतिशत मुनाफा भी कमाता है। यह उस फिल्म का कथासार है। यह चीन के व्यापार तंत्र का सार भी है। बहरहाल, इस प्रायोजित शवयात्रा की फिल्म का स्मरण जाने कैसे किताबके विमोचन के प्रसंग से याद आया। यह कुछ अजीब इत्तेफाक है कि जब सायरा बानू इस तरह की शिकायत दर्ज रही थीं, उस समय टेलीविजन पर खबर थी कि पाकिस्तान की सरकार दिलीप के पुश्तैनी मकान को संग्रहालय बनाने जा रही है। सच तो यह है कि इस तरह की खबरें कई वर्षों से रही हैं परंतु कुछ हो नहीं रहा है। तमाशबीन सरहद के इस पार भी हैं और उस पार भी हैं।