प्रायोजित सर्कस प्रायोजित हुल्लड़बाजी / जयप्रकाश चौकसे

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प्रायोजित सर्कस प्रायोजित हुल्लड़बाजी

प्रकाशन तिथि : 15 जनवरी 2011

कुछ हुड़दंगी कोलकाता में शाहरुख खान के पुतले जला रहे हैं। अंग्रेजी भाषा में जीवन के किसी भी क्षेत्र में अन्याय होने पर कहा जाता है कि 'इट्स नॉट क्रिकेट', अत: वहां क्रिकेट को भलेमानुष का खेल कहा जाता है। दु:ख की बात यह है कि अब क्रि केट मात्र व्यवसाय है। जब खिलाड़ी स्वयं की नीलामी को सहर्ष स्वीकार करें, तब किसी का नहीं खरीदा जाना अन्यायपूर्ण कैसे हो सकता है। क्या दुकान पर रखी कोई वस्तु ग्राहक से इसलिए खफा हो सकती है कि उसे खरीदा नहीं गया? एक नहीं वरन अनेक ग्राहकों ने सौरव गांगुली की सेवाओं को नहीं खरीदा। गोयाकि 'बाजार से गुजरा हूं पर खरीदार नहीं...', इसके लिए शाहरुख को कैसे दोष दिया जा सकता है। सौरव की कप्तानी में कोलकाता नाइट राइडर्स अब तक खेली हुई आईपीएल प्रतिस्पर्धा में सबसे पिछड़ी हुई टीम सिद्ध हुई। क्या कप्तान इसकी कोई जवाबदारी नहीं लेंगे?

आईपीएल एक तमाशा, एक निर्मम व्यवसाय है। शाहरुख ने बहुत पंूजी लगाई है और अपने मुनाफे के प्रति वह सजग हैं। बाबू मोशाय सौरव गांगुली ने भारतीय क्रिकेट की बहुत सेवा की है, जिसके लिए वे यथेष्ट रूप से पुरस्कृत भी हुए हैं। परंतु आईपीएल अखाड़े में ग्लेडिएटर्स को इस भाव से उतारा जाता है कि मारो या मर जाओ। यह प्रिंस की कर्मभूमि नहीं है। उनके व्यक्तिगत प्रदर्शन से ज्यादा आलोचना उनकी कप्तानी की हुई है। वे अपनी 'भेड़ों' को ठीक से 'हकाल' नहीं पाए। जब भेड़ें भूखी वापस लौटती हैं, तब 'बाड़े' का मालिक दु:खी तो होगा ही।

एक जमाने में टेस्ट मैच के लिए खिलाड़ी को दो सौ रुपया प्रतिदिन मिलता था। एक बार महान खिलाड़ी पॉली उमरीगर ने कहा था कि चार दिन में टेस्ट जीत जाने पर भी पांचवें दिन का पैसा बोर्ड ने नहीं दिया था। आज भी बोर्ड का रवैया वही 'चवन्नी चोर' का है, परंतु अब खिलाडिय़ों को खराब खेलने पर भी करोड़ों रुपए मिलते हैं। उनकी सितारा हैसियत से ही धन बरसता है, परंतु फिर भी आए दिन मैच फिक्सिंग के किस्से बाहर आते हैं। आईपीएल के दरमियान बहुत सी अफवाहें थीं और अनेक दलों के चुनिंदा खिलाडिय़ों के बारे में फुसफुसाहटें थीं और यह भी अफवाह थी कि कुछ टीम मालिक भी इसमें शामिल थे। इस सर्कस की सड़ांध का अनुमान लगाना कठिन है।

जिस देश में हजारों गांव ऐसे हैं जहां बिजली नहीं पहुंची है और अनेक क्षेत्र ऐसे हैं जहां प्रतिदिन घंटों बिजली कटौती चलती है, अत: केवल बिजली के अपव्यय के आधार पर यह सर्कस बंद कर दिया जाना चाहिए या सारे मैच सुबह-दोपहर खेले जाएं। परंतु इस सर्कस का असली धन टेलीविजन प्रसारण से आता है। सुबह या दोपहर के खेलों के प्रसारण को विज्ञापन नहीं मिलेंगे।

टीमों के नाम कुछ शहरों पर रखे गए हैं परंतु इनमें बाहर के खिलाड़ी भी शामिल हैं। अत: इस सर्कस को शहर की प्रतिष्ठा से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। इस प्रकरण में केवल कोलकाता में ही शाहरुख के पुतले जलाए गए हैं। इस तरह की हुल्लड़बाजी किसी भी शहर में हो, वह अशोभनीय मानी जानी चाहिए। दरअसल मुद्दा शाहरुख या सौरव का नहीं, वरन कट्टर क्षेत्रीयता का है। यह भी संभव है कि यह प्रायोजित हुल्लड़बाजी हो।