प्रियंका और जेनिफर के वस्त्र / जयप्रकाश चौकसे

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प्रियंका और जेनिफर के वस्त्र
प्रकाशन तिथि : 04 फरवरी 2020


अमेरिका में एक पुरस्कार समारोह में 'प्रियंका चोपड़ा जोनास' आधा तन ढंकने वाली पूरी पोशाक पहनकर पधारीं। भारतीय मीडिया में इसे खूब प्रचारित किया गया। नैतिकता के स्वयंभू ठेकेदार सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए। ऐसे अवसर हुड़दंगियों में गजब की ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। उन्हें भरपूर भोजन प्राप्त हो जाता है। अमेरिकन मीडिया ने इसे सुर्खियां प्रदान नहीं की। यहां तक कि यह भी नहीं लिखा कि 7 वर्ष पूर्व जेनिफर लोपेज इसी तरह के वस्त्र धारण करके मनोरंजन छितिज पर प्रकट हुई थीं। अंतर केवल इतना है कि जेनिफर लोपेज की देह पर एक छटाक भी अतिरिक्त मांस नहीं था, जबकि प्रियंका दांपत्य रस से सराबोर होकर कुछ अधिक ही सेहतमंद लग रही हैं। डॉलर और पाउंड पर उनका स्वाभाविक अधिकार है।

यह वस्त्र बाजार की कबीरनुमा उलटबासी है कि न्यूनतम वस्त्र अधिकतम दामों में बेचे जाते हैं। नेक टाई, बो, अंडरवियर, रूमाल और ब्रा बहुत महंगे दाम में बिकते हैं। एक गीत भी रचा गया था कि-'कमीज फाड़कर रूमाल बना लो और डॉलर नहीं तो कमीज का कॉलर चलेगा।' फिल्मकार, कलाकार और ड्रेस डिजाइनर सलाह-मशविरे से फिल्म के पात्रों की पोशाक बनाते हैं। इस व्यवसाय में मनीष मल्होत्रा का यह रजत जयंती वर्ष है। फिल्म 'जॉली एलएलबी' में सौरभ शुक्ला ने जज का पात्र अभिनीत किया। मुकदमे के दरमियान वे अपनी इकलौती बेटी के विवाह की तैयारी भी कर रहे हैं। उनकी पुत्री की जिद है कि वह मनीष मल्होत्रा द्वारा डिजाइन किया लहंगा ही पहनेगी। वकील साहब बताते हैं कि मनीष मल्होत्रा द्वारा बनाया गया लहंगा 7-8 लाख तक में बनता है पर उनका वेतन इतना नहीं कि वे यह लहंगा खरीद सकें। सुभाष कपूर की फिल्मों में सामाजिक असमानता पर व्यंग होते हैं। उनकी 'बुरे फंसे ओबामा' रोचक फिल्म है।

मीडिया में बहु प्रचरित फिल्मकार की जिद रही है कि कलाकार के अंतरंग वस्त्र भी महंगे डिजाइनर ब्रांड के हों। कैमरे के सामने यह अंतरंग वस्त्र दिखाई नहीं देते, परंतु इस पर खूब खर्च करते हैं। क्या डिजाइनर अंडरवियर पहना कलाकार बेहतर भावाभिव्यक्ति करता है? वे ब्रा की एक्सटेंशन को ब्लाउज मानते हैं। वस्त्र पर लगा लेबल बड़ा महत्वपूर्ण है। इंदौर के डॉक्टर मधुसूदन द्विवेदी अपनी विदेश यात्रा में लेबल खरीदकर लाते थे और मुंबई के बाजार से वस्त्र खरीदकर उन पर मेड इन इंग्लैंड का लेबल चस्पा करके अपने रिश्तेदारों की फरमाइश पूरी कर देते थे। एक योग गुरु का विराट व्यवसाय है। संभवत: वे केवल लेबल ही बनाते हैं। भारत की कुल गाय जितना दूध नहीं देती, उससे अधिक गाय का घी बेचते हैं। देश के सभी व्यवसाय ठप पड़े हैं और इस मंदी का असर उनके व्यवसाय पर भी पड़ रहा है। क्या ऐसा योगासन खोज रहे हैं, जिसकी मदद से महंगाई को भगा सकें? व्यवस्था को भी ऐसे ही किसी टोटके की तलाश है। अफसानानुमा बजट ने हकीकत को नजरअंदाज कर दिया है। पारंपरिक तौर पर वित्तमंत्री एक ब्रीफकेस में गोपनीय बजट लेकर संसद पहुंचते थे। एकमात्र परिवर्तन यह किया है कि ब्रीफकेस के बदले बहीखाता लाया जाता है। उनके बहीखातेनुमा बजट में दोनों ओर लाभ लिखा है। राजनीतिक लाभ, चुनावी जीत का नुस्खा और बांटकर राज करने के तरीके। राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर अभिनीत एक फिल्म 'सफर' में आई एस जौहर ने नायिका के भाई की भूमिका निभाई थी। उन्हें कविता रचने का जुनून है। वह एक महाजन पर महाकाव्य रचने के लिए एक बहीखाता खरीदकर लाते हैं। उनकी सृजन प्रणाली इसी तरह की है कि अगर मृत्यु पर महाकाव्य रचना हो तो संभवत: वे श्मशान में बैठकर लिखें। इसी तर्ज पर बजट की रचना भी बाजार में बैठकर की जानी चाहिए। बाजार में सन्नाटा है और लेखन के लिए यह सुविधाजनक भी हो सकता है। बहरहाल प्रियंका चोपड़ा और जेनिफर लोपेज का गाउन विषम आर्थिक हालात और कोरोना बीमारी से भी अधिक चर्चित है। यह दौर भी गैर महत्वपूर्ण बातों में अवाम को भरमाए रखने का है।