प्रियंका चोपड़ा 'पानी' नामक फिल्म बना रही हैं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 16 मई 2018
प्रियंका चोपड़ा ने अमेरिका में कमाए डॉलर से वहां एक बहुमंजिला इमारत के सबसे ऊपरी माले पर बना विशाल फ्लैट खरीदा और भारत में अपनी फिल्म निर्माण संस्था के तहत सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाना तय किया गोयाकि अपनी जमीन से वे जुड़ी रहीं परन्तु आसमान छूने का प्रयास भी जारी है। उनकी मराठी भाषा में बनने वाली फिल्म का नाम है 'पानी'। महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्र में पानी की कमी बनी रहती है। महानगर मुंबई को पानी और बिजली निरंतर मिलती रहती है और इसकी कीमत ग्रामीण क्षेत्र चुकाता है। इतना ही नहीं, पड़ोसी प्रांतों से भी बिजली महाराष्ट्र को दी जाती है। सारे कॉर्पोरेट्स व औद्योगिक प्रांतों के हेड ऑफिस मुंबई में हैं और इस तरह देश में कहीं भी लाभ कमाया जाता है तो उसका अधिकांश मुंबई आता है।
महानगर मुंबई को उजास से भरे रहने के लिए कई बस्तियों को अंधकार में झोंक दिया जाता है। हमारे महान देश में अवाम पसीना बहाता है, कसरत करता है और मांसपेशियां अमीरों की मजबूत हो जाती हैं। जिम में रियाज करने से मसल टूटती है और प्रोटीन मिलने पर टूटी हुई मसल दुगने आकार में उभरती है। इस तरह मसल्स बनाने की प्रक्रिया मसल्स तोड़ने से जुड़ी है। एक राजनैतिक दल भी संस्थाओं को तोड़कर नई संस्थाएं बनाती जा रही है गोयाकि तोड़ने वाले जोड़ने का दावा कर रहे हैं और तमाशबीन अवाम यकीं कर रहा है। प्रियंका चोपड़ा के पहले से अनुष्का शर्मा फिल्म निर्माण करती रही हैं तथा फिल्म निर्माण की प्रक्रिया जारी है।
देव आनंद की बहन के सुपुत्र शेखर कपूर लंदन में चार्टर्ड अकाउन्टेंट थे। उन्होंने सुरक्षित नौकरी छोड़कर मुंबई आकर फिल्म बनाने का साहसी निर्णय लिया। उन्होंने अल्प बजट की 'मासूम' और भव्य बजट की 'मि. इंडिया' तथा तहलका मचाने वाली 'फूलन देवी' बायोपिक का निर्देशन किया। इसके बाद उन्होंने जितनी फिल्में बनाई थीं, उससे अधिक फिल्मों को आधा अधूरा छोड़ दिया। कुछ समय बाद उन्होंने महत्वाकांक्षी फिल्म 'पानी' बनाने की घोषणा की। कुछ निर्माण संस्थाओं ने इस अंतरराष्ट्रीय फिल्म में पूंजी निवेश के लिए आतुरता प्रदर्शित की परन्तु शेखर कपूर अपनी 'पानी' की पटकथा पूरी नहीं सुनाते। यह भी संभव है कि उनके पास महान विचार है परन्तु पूरी पटकथा नहीं है। जाने क्यों वे पटकथा को सबमरीन सा समझते हैं कि जरा सा उजागर होते ही वह पानी में डूब जाएगी। बहरहाल शेखर कपूर की 'पानी' फिल्म योजना पानी की तरह मुट्ठी में बंध ही नहीं पाती।
शेखर कपूर के जन्म के पहले उनके मामा चेतन आनंद ने 'नीचा नगर' नामक फिल्म बनाई थी जो रूसी लेखक फ्योदौरा दोस्ताव्हस्की के नाटक 'लोअर डेप्थ' से प्रेरित थी। यह उनकी ईमानदारी है कि फिल्म का नाम भी मूल रचना का अनुवाद है। इस फिल्म में पहाड़ी पर एक धनाढ्य व्यक्ति की भव्य कोठी बनी है। पहाड़ी पर ही पानी का टैंक भी है। नीचे की बस्ती में पानी 'ऊपर वाले' की दया से ही आता है और वह अपनी इस हैसियत के दम पर नीचा नगर में रहने वालों का शोषण करता है। 'नीचा नगर' काफी हद तक ऐसे शहर की तरह है जहां ऊंचे स्थान पर समृद्ध लोगों की कोठियां हैं और नीचा नगर में साधनहीन अवाम रहता है। गौरतलब यह है कि वर्तमान के पुरुष सितारों की तरह महिला सितारे भी अधिक फिल्म निर्माण कर रहे हैं। अपने उद्योग में ही पूंजी निवेश करने का स्वागत है परन्तु इन महान लोगों को यह क्यों नहीं सूझता कि वे सिनेमाघरों का निर्माण भी करें। क्या वे जानते हैं कि उनकी सफलतम फिल्मों को भी बमुश्किल पांच प्रतिशत लोग ही सिनेमाघरों में देखते हैं और अधिकतम लोग टेलीविजन प्रसारण के समय देखते हैं। इतने बड़े देश में बमुश्किल आठ हजार एकल सिनेमाघर हैं। प्रांतीय सरकारों ने भी सिनेमाघर बनाने के नियम अत्यंत सख्त बनाए हैं। चीन में पैंतालीस हजार एकल सिनेमाघर हैं। महान मध्यप्रदेश में साढ़े चार सौ से घटकर मात्र डेढ़ सौ सिनेमाघर रह गए हैं, उन पर भी मनोरंजन कर थोंपने का सिलसिला जारी है।
कोई विचारवान व्यक्ति पुन: टूरिंग टॉकीज नामक मृत संस्था को जीवित करके खूब धन कूट सकता है। पहले मेले तमाशों में टूरिंग टॉकीज खेमा डालते थे। अब तो मेले तमाशे ही कम हो गए हैं। राजनीति की नौटंकी ने सबका स्थान ले लिया है। चुनावी नतीजों की घोषणा का दिन अवाम के लिए नया मनोरंजन है।