प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :19 जनवरी 2016
प्रियंका चोपड़ा को अमेरिकी सीरियल 'क्वांटिको' में लोकप्रियता के लिए पुरस्कृत किया गया है परंतु समारोह में जब प्रियंका भारतीय परंपरा में लंबा धन्यवाद भाषण दे रहीं थीं, तब उद्घोषक ने उन्हें सक्षिप्त में बोलने को कहा और वहां बैठे दर्शकों को यह अच्छा नहीं लगा। भारतीय परंपरा में धन्यवाद का सिलसिला दादा, माता-पिता से शुरू होता है और अपने सेवक तक जाता है। परिवार को धन्यवाद तो सभी देशों में दिया जाता है। यह संभव है कि उद्घोषक को एक विदेशी का अमेरिका में लोकप्रियता पुरस्कार जीतना मन ही मन बुरा लग रहा हो। हम भी तो 'विदेशियों' को कोसते हैं। बहरहाल प्रियंका चोपड़ा अमेरिका की 'बे वाच' फिल्म शृंखला की अगली कड़ी के लिए अनुबंधित की गई हैं। इस लोकप्रिय फिल्म शृंखला में समुद्रतट पर बिकनी पहनी युवा कन्याओं की जलक्रीड़ा प्रस्तुत होती है। यह समझ लीजिए कि समुद्र तट पर जलपरियां मस्ती करती हैं। 'क्वांटिको' में प्रियंका नायिका हैं परंतु 'बे वाच' फिल्म में उनके चरित्र-चित्रण में श्याम और श्वेत मिलकर धूसर की रचना करते हैं। शरीर सौष्ठव जिम संसार में भी मनुष्य की मांस-पेशियों को मछली कहा जाता है। फैंटसी संसार में आधा शरीर स्त्री का और आधा मछली का प्रस्तुत किया जाता है। द्रोपदी के स्वयंवर में भी निशाने पर मछली की आंख थी, जिस पर अर्जुन ने निशाना साधा था। दुष्यंत की दी गई अंगूठी भी एक मछली के पेट में मिली थी। कहा जाता है कि मछली की स्मृति मात्र सात सेकेंड की होती है, इसलिए वह आसानी से पकड़ी जाती है, परंतु मछली खाने से बुद्धि के विकास की बात भी कही गई है और उसके तेल से ओमेगा-3 बनता है जो सेहत के लिए अच्छा माना जाता है।
'भुल्लकड़' मछली खाने से स्मृति मजबूत होती है। बहरहाल, हमारी शिखर सितारा दीपिका पादुकोण ने भी बतौर नायिका एक अमेरिकी फिल्म अनुबंधित की है और अब उन्होंने भारतीय फिल्मों में काम करने का मेहनताना भी खूब बढ़ा दिया है। यह उनके बॉक्स आॅफिस पर बने रिकॉर्ड के कारण है। आज सभी सफल सितारा अभिनेत्रियां विशेषज्ञों की निगरानी में अपने शरीर सौष्ठव पर खूब ध्यान देती हैं और धन भी खर्च करती हैं। उनका खाना-पीना भी डायटिशियन के द्वारा बनाए कार्यक्रम पर चलता है। ये सितारे एकल व्यक्ति उद्योग की तरह हैं। अन्य क्षेत्र में एक उद्योग स्थापित करने के लिए सरकार के कई विभागों से इजाजत लेनी पड़ती है और उद्योग के सारे ताम-झाम को संभालना होता है। प्रतिभावान व्यक्ति एकल उद्योग होता है। अनेक फिल्म सितारों की शुद्ध वार्षिक आय सौ करोड़ रुपए प्रतिवर्ष से अधिक होती है। साहित्य,कला, विज्ञान इत्यादि क्षेत्रों में प्रतिभाशाली लोग एकल व्यक्ति उद्योग की तरह होते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि बाइबिल में टैलेंट को सिक्के के नाम से पुकारा गया है। जॉन मिल्टन की 'ऑन हिज ब्लाइंडनेस' में बाइबिल के पैराबल ऑफ टैलेंट का संदर्भ दिया गया है। कथा है कि एक धनाढ्य व्यक्ति लंबी तीर्थयात्रा पर जाने के पहले अपना धन अपने तीन सेवकों को देता है और कहता है कि वापसी पर वह हिसाब लेगा। लंबे समय बाद उसके लौटने पर पहला सेवक कहता है कि उसने धन से व्यवसाय किया और पूंजी दोगुनी हो गई। दूसरा सेवक व्यवसाय में घाटे के कारण पूंजी के घट जाने की बात करता है। तीसरा सेवक कहता है कि लाभ-हानि के भय से उसने धन को सुरक्षित स्थान पर गाड़ दिया था। वह जस का तस धन लौटाता है। उनका मालिक तीसरे सेवक से नाराज है, जिसे धन (प्रतिभा) दिया गया और उसने उसका उपयोग ही नहीं किया।
इस कथा में 'धन' को प्रतिभा ही कहा गया है। बहरहाल, दीपिका और प्रियंका से सुंदर और अधिक प्रतिभाशाली कलाकार भारत में हुए हैं परंतु उन्हें ऐसे अवसर नहीं मिले। नूतन, नरगिस, मीना कुमारी, मधुबाला, सुचित्रा सेन विलक्षण अभिनेत्रियां थीं परंतु उन दिनों भारतीय फिल्मों का प्रदर्शन विदेशों में कम होता था। आज 1.34 करोड़ भारतीय विदेशों में काम कर रहे हैं और इससे अधिक संख्या में किसी अन्य देश के लोग विदेशों में नहीं बसे हैं। इस एनआरआई दर्शक के कारण सिनेमा का विदेश व्यापार खूब पनप चुका है। इन्हीं लोगों के कारण 'ब्रैन्ड इंडिया' बना है। इन 'डॉलर पुत्रों' ने भारतीय समाज और शिक्षा के मूल्यों में भी परिवर्तन किया है। इनके लिए विशेष कन्याएं 'गढ़ीal146 जाती हैं, जो विवाह के बाद विदेश जा बसती हैं। 'एनआरआई के प्रभाव में शिक्षा में भी परिवर्तन आया है। पश्चिम की जीवन शैली ने घुसपैठ कर ली है। 'पीकू' इसी जीवन शैली के अतिक्रमण की बात करती है। विगत चुनाव में भी 'डॉलर प्रभाव' स्पष्ट नजर आ रहा था।
इन डॉलर पुत्रों की सांस्कृतिक दुविधा यह है कि इनका संपर्क अपनी मिट्टी से टूट गया है और पश्चिम की आधुनिकता इनकी समझ के परे है। ये पंखहीन प्राणी जमीन और आसमान केबीच सांस्कृतिक दुविधा में फंसे है।