प्रियंका चोपड़ा और मां आनंद शीला बायोपिक / जयप्रकाश चौकसे

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प्रियंका चोपड़ा और मां आनंद शीला बायोपिक
प्रकाशन तिथि : 01 फरवरी 2019


प्रियंका चोपड़ा फिल्मकार बैरी लेविनसन के साथ एक पटकथा पर काम कर रही हैं। विषय आचार्य रजनीश की सबसे निकट एवं विश्वासपात्र रहीं मां आनंद शीला के जीवन से प्रेरित है।

फिल्म के विषय में गुरुडम, आश्रम की भीतरी राजनीति, सेक्स का तड़का और हत्या का संदेह इत्यादि सब कुछ शामिल है। आचार्य रजनीश की मृत्यु के समय यह संदेह सुर्खियों में था कि उनकी हत्या हुई है। थ्रिलर की तरह फिल्म प्रस्तुत की जाएगी। सभी फिल्म बनाने वाले देशों में सफलता साधने का फॉर्मूला होता है। यह बात अलग है कि अधिकांश सफल फिल्में लीक से हटकर बनाई गई फिल्में हैं। बार-बार पटकथा फॉर्मूला अवधारणा ध्वस्त की जाती रही है परंतु यह कभी पूरी तरह ध्वस्त नहीं होती। घर के चौके में एक गोल डिब्बा होता है, जिसके भीतर हल्दी, हींग, जीरा इत्यादि मसाले होते हैं। स्वादिष्ट भोजन बनाने वाली गृहिणी यह भली-भांति जानती है कि कौन-सा मसाला कितना मिलाना है। भोजन में स्वाद रचना आसान काम नहीं होता परंतु स्वादिष्ट भोजन बनाने की अभ्यस्त महिला आंख बंद करके भी सही मात्रा में मसाले डालती है। उसका अभ्यास और अनुभव सदियों में पका है। धीमी आंच पर उसका इस्पात ढला है। पांच सितारा होटल में शेफ का वेतन मैनेजर से भी अधिक होता है। पीजी वुडहाउस के उपन्यास में शेफ का पात्र अनातोले इतना स्वादिष्ट भोजन बनाता है कि धनाढ्य घरानों में उसकी सेवा प्राप्त करने की प्रतिस्पर्धा बनी रहती है।

यहां तक कि अनातोले का अपहरण भी किया जाता है। फिल्म व्यवसाय का आधारस्तंभ ही है अधिकतम की पसंद। हॉलीवुड की संस्था एमजीएम के संस्थापक के सेवानिवृत्त होने पर उनसे पूछा गया कि सुपरहिट बनाने का फॉर्मूला क्या है? उन्होंने जवाब दिया कि ताउम्र वे इस कीमिया को समझने का प्रयास करते रहे परंतु समझ नहीं पाए। इस तथ्य के बावजूद बॉक्स ऑफिस सफलता कोई इत्तेफाक नहीं है। कुछ फिल्मकारों ने अस्सी प्रतिशत सफलता अर्जित की है। शशधर मुखर्जी को फिल्म मसाले का आदिगुरु माना जाता है परंतु वे कभी अपने किसी पुत्र को सफल सितारा नहीं बना पाए। 'मदर इंडिया' जैसी भव्य सफलता रचने वाले मेहबूब खान ने 'सन ऑफ इंडिया' जैसी असफल फिल्म बनाई और राज कपूर ने भी 'मेरा नाम जोकर' बनाई है। शांताराम की आखिरी आधा दर्जन फिल्में इतनी असफल रहीं कि उनका व्यापक प्रदर्शन भी संभव नहीं हुआ। सारांश यह कि अधिकतम दर्शक की पसंद जानने का कोई तर्कसम्मत वैज्ञानिक तरीका है ही नहीं।

यह सर्वविदित है कि आचार्य रजनीश ने सबसे अधिक संख्या में किताबें बांची थीं और हर किताब का उन्होंने गहराई से अध्ययन किया था। पुणे और ऑरेगान में उनके द्वारा रचे आश्रम सुनियोजित संस्थाएं थीं तथा मां आनंद शीला इन संस्थाओं का संचालन करती थीं। उनकी काबिलियत में किसी को कोई संदेह कभी नहीं रहा। उन पर आचार्य रजनीश की हत्या की साजिश रचने की बात कुछ इसी तरह है कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? सभी संस्थाओं की किसी न किसी अलमारी में कंकाल मिलता ही है। सरकारी अलमारियों में कंकाल नहीं वरन जीवित मनुष्य पाए जाते हैं।

अमेरिका में संगठित अपराध सरगना को 'गॉडफादर' कहा जाता है और मारियो पुजो के इसी नाम के उपन्यास पर सफल फिल्म बन चुकी है। इसी तरह धर्म के नाम पर भी संगठन रचे गए हैं और उनमें सत्ता संघर्ष चलता रहता है। आम आदमी सब कुछ जानता है। उसे ठगे जाने का शौक भी है। यह भी संभव है कि सदियों से असमान व अन्याय आधारित व्यवस्थाओं को झेलते हुए ठगे जाना उसकी विचार प्रक्रिया का हिस्सा बन गया हो?

बहरहाल, प्रियंका चोपड़ा का व्यक्तित्व कुछ ऐसा है कि वह सिर से अपनी एड़ी तक को वस्त्र से ढंक ले तब भी इच्छाएं जगाने में समर्थ हैं। कुछ सितारों की देह का तिलिस्म रहस्यमय बना रहता है। मर्लिन मुनरो भी इसी तरह की सितारा थीं। वह नन की भूमिका अभिनीत करे तो पादरी बहक जाएं। इसी तरह प्रियंका चोपड़ा साध्वी की भूमिका करें तो तपस्वी का आसन डोलने लगे। आचार्य रजनीश की सबसे स्थायी विरासत उनकी किताबें हैं। उन्होंने स्थापित धारणाओं की चीर-फाड़ की है। ये किताबें पढ़ने वाले की विचारशैली का कोना-कोना प्रकाश में स्नान करने लगता है। रोशनी के फव्वारों में स्नान का आनंद प्राप्त होता है। प्रियंका चोपड़ा और उनके सहयोगी लेखक कार्य कर रहे हैं। मां आनंद शीला विषय पर कोई उठाइगीर सनसनी बेचने वाला 'शीला की जवानी' बना देगा।