प्रियंका चोपड़ा का अमेरिकी सीरियल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :17 मार्च 2015
प्रियंका चोपड़ा एक अमेरिकन सीरियल में अभिनय कर रही हैं, जिसमें अन्य कलाकार भी प्रसिद्ध और गुणी लोग हैं। अमेरिका में टेलीविजन तथा सिनेमा के सितारे कोई सख्त खांचों में नहीं बंटे हैं वरन आना-जाना होता रहता है। ज्ञातव्य है कि प्रियंका का रॉक संगीत भी अमेरिका में रिकॉर्ड हुआ था और वहां जमकर मार्केटिंग भी हुई है। संभव है कि प्रियंका के गायिका स्वरूप ने ही उन्हें यह अवसर भी दिलाया है। सीरियल में वे एक गोपनीय संस्थान में अंतरराष्ट्रीय जासूसी की कला सीखती हैं। एफबीआई के निकट 'क्वेंटिको' एक छोटे शहर का नाम है। क्वेंटिको सीरियल का भी नाम है। दरअसल, अमेरिका में अनेक गोपनीय संस्थाएं हैं, जहां अनेक गैर-पारंपरिक विधाएं सिखाई जाती हैं। वहां 'इकोनॉमिक हिटमैन' भी प्रशिक्षित होते हैं, जो गरीब देशों में विकास का मॉडल बेचते हैं, जिसके लिए विश्व बैंक से ऋण भी दिलवाते हैं और कालांतर में किस्त नहीं चुका पाने की दशा में देश की खनिज की खदानें उनके देश की कंपनियों को बेचनी पड़ती हैं। अमेरिकी व्यवस्था-लीला के विविध और रहस्यमय रूप हैं। ज्ञातव्य है कि दूसरे विश्वयुद्ध में माताहरी ने जासूसी क्षेत्र में नाम कमाया था।
इस समय प्रियंका चोपड़ा की मधुर भंडाकर द्वारा बनाई जाने वाली फिल्म 'मैडमजी' की पटकथा दोबारा नए ढंग से लिखी जा रही है। संजय भंसाली की निर्माणाधीन फिल्म में प्रियंका बाजीराव की पत्नी की भूमिका में हैं जबकि दीपिका पादुकोण मस्तानी की भूमिका में हैं। यह संभव है कि भंसाली की 'गोलियों की रासलीला' में उन्होंने एक आइटम शायद इसी शर्त पर किया था कि 'बाजीराव' में उन्हें नायिका की भूमिका मिलेगी। अनेक फिल्मकार भविष्य के प्रोजेक्ट के वादे पर वर्तमान की फिल्म में सितारे बटोरते हैं। यह काम अलग ढंग से हमेशा होता रहा है, जैसे वैजयंतीमाला ने सुचित्रा सेन अभिनीत विमल राय की 'देवदास' में चंद्रमुखी की भूमिका की थी तो उन्हें 'मधुमति' में नायिका बनने का अवसर मिला और शायद इसी का सिला उन्हें 'गंगा-जमुना' तक ले गया।
प्रियंका चोपड़ा ने अपने प्रारंभिक दौर में करीना कपूर अभिनीत 'एतबार' में नकारात्मक भूमिका भी अभिनीत की है। हर सफल सितारा शिखर पर पहुंचने के लिए जाने कहां-कहां से गुजरता है। प्रियंका चोपड़ा सौंदर्य प्रतियोगिता के रैम्प से सीधे स्टूडियो पहुंची थीं। इसी मार्ग से एेश्वर्य राय और सुष्मिता सेन भी आई थीं और उनके दशकों पूर्व जीनत अमान तथा परवीन बॉबी भी इसी राह से आई थीं। याद आता है साहिर लुधियानवी रचित देवदास का एक गीत जो पार्श्व संगीत की तरह इस्तेमाल हुआ था। बोल थे, 'मंजिल की राह में कई यहां आएंगे, कई यहां सोएंगे, कहीं कड़ी धूप है, कहीं घनी छांव है, यह भी एक रूप है, वह भी एक रूप है। मंजिल की चाह में मंजिल की राह में...'
प्रियंका चोपड़ा ने अनुराग बसु की रणबीर कपूर अभिनीत 'बर्फी' में उच्चतम श्रेणी का अभिनय किया है। उस फिल्म के प्रारंभिक दृश्यों में प्रियंका को पहचान पाना कठिन था और अब उस भूमिका को भूल पाना असंभव है। सुंदर होने से अधिक जरूरी है प्रतिभाशाली होना परंतु अनेक लोगों को अवसर ही नहीं मिलते। मनुष्यों की प्रतिभा लगभग उसी प्रतिशत में अनदेखी रह जाती है, जिस प्रतिशत में धरती की भीतरी तहों में छुपे खनिज मिल नहीं पाते। अंग्रेज कवि मिल्टन की 'ऑन हिज ब्लाइंडनेस' में स्पष्ट है अनअभिव्यक्त प्रतिभा की करुणा!