प्रियंका चोपड़ा का कॅरिअर ग्राफ / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :02 दिसम्बर 2015
भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' में भंसाली की 'देवदास' की तर्ज पर दोनों नायिकाओं का नृत्य है। हर फिल्मकार अपने को दोहराता है। उसके कुछ अंधविश्वास और सफलता के टोटके होते हैं। इस मामले में महानगरीय आधुनिक फिल्मकार और आदिम जनजातियां एक समान हैं कि दोनों ही 'लकी चार्म' या भाग्यसूचक चीजों पर यकीन करते हैं। जनजातियों में शरीर पर गुदना करवाने के पीछे उनके अपने विश्वास हैं, मसलन लंबे समय तक कुंआरी रहने पर जनजातियों की कन्या अपनी जांघ पर गुदना करवा लेती है ताकि मां-बाप की नज़र से बची रहे। शरतचंद्र के देवदास में तो पारो और चंद्रमुखी मिलती ही नहीं हैं। वैष्णव प्रवृत्ति के शालीन बिमल राय ने अपनी 'देवदास' के एक दृश्य में एक ओर से पारो कहारो की डोली पर सवार जा रही है तो दो दूसरी ओर से चंद्रमुखी पैदल देवदास की तलाश में उसके गांव जा रही है, ऐसा बताया है। इस दृश्य का पार्श्व-गीत सचिन देव बर्मन ने बहुत मधुर बनाया था। अगर मूल पाठ से यह थोड़ी-सी आजादी को हम विमल राय की मंद मुस्कान कहें तो रंग और ध्वनी की ऑर्जी रचने वाले भंसाली ने अपनी 'देवदास' में पारो और चंद्रमुखी का लंबा दृश्य रखा बिमल राय की सुसंस्कृत मुस्कराहट का जवाब एक अश्लील ठहाके से दिया जा रहा है।
बहरहाल, भंसाली की नई फिल्म ने शिखर सितारा दीपिका पादुकोण और आजकल अमेरिका में भारत से अधिक लोकप्रिय प्रियंका चोपड़ा नाचती नज़र आ रही हैं और प्रियंका की मुद्राएं एवं भंगिमाएं दीपिका से अधिक दिलकश नज़र आती हैं। ज्ञातव्य है कि तैंतीस वर्षीय प्रियंका चोपड़ा का अमेरिकन सीरियल 'क्वांटिको' वहां लोकप्रियता के मानदंड पर दिन-ब-दिन लोकप्रिय होता जा रहा है और प्रसन्नता की बात है कि प्रियंका उस सीरियल का केंद्रीय पात्र है, जबकि अमेरिकन टेलीविजन के सितारे सहायक भूमिकाअों में नज़र आ रहे हैं। अभी कुछ समय पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका यात्रा में वहां के मीडिया में पोप व प्रियंका चोपड़ा को उनसे अधिक महत्व दिया गया गोयाकि एक ही समय अमेरिका में भारतीय प्रधानमंत्री और क्रिश्चियन समाज के बादशाह पोप तथा प्रियंका मौजूद थे और मीडिया की सुर्खियों में पोप और प्रियंका शिखर पर रहे।
एक राजनीति में धर्म के उपयोग की शक्ति का प्रतीक है तो दूसरा अपने क्रिश्चियन धर्म का शिखर व्यक्ति है और दोनों के साथ मनोरंजन जगत की सितारा है। मनोरंजन जगत सदैव ही धर्मनिरपेक्ष रहा है। राजनीति कभी मनोरंजन की तरह ही धर्मनिरपेक्ष थी परंतु अब प्रचार की अांधी ने इस महान आदर्श को अपशब्द-सा बना दिया है। हाल में टाइम्स में दीपांकर गुप्ता का एक लेख छपा है कि धर्मनिरपेक्षता का यह धर्मसंकट दरअसल कानून व्यवस्था के भंग हो जाने और न्यायिक प्रक्रिया के विलंब के साथ आर्थिक पराभव से जुड़ा है। पिछले कुछ वर्षों में देश में कोई बड़ा उद्योग शुरू नहीं हुआ है। जो नौकरियां आई हैं वह व्यापार-वाणिज्य के रूप में आई हैं। आर्थिक नीतियां अनाड़ियों के हाथ का खिलौना बनी हुई हैं। इस वर्ष अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले का यह मौलिक दृष्टिकोण है कि औद्योगिक आंकड़ों से अधिक महत्वपूर्ण है मनुष्य का आनंद, जिसे कोई किसी तरह का मानदंड ही नहीं मानता।
बहरहाल, प्रियंका चोपड़ा ने भारत में भी 'बर्फी' एवं 'मैरीकॉम' में विलक्षण अभिनय किया था। दरअसल, बर्फी की पांचवीं या छठी रील में हम पहचान पाए की दिमाग की कमतरी की शिकार यह पात्र प्रियंका चोपड़ा निभा रही हैं। अमेरिकन सीरियल के निर्माता प्रियंका को उसी ठाठ-बाट से रख रहे हैं, जो वे अपने सुपर सितारों को देते हैं। इरफान खान भी वहां बहुत सम्मान से देखे जाते हैं। दरअसल, अब दुनिया में भौगोलिक सीमाओं के परे आवगमन खूब बढ़ गया है और अनेक पुरानी मान्यताएं टूट रही हैं। हाल ही में प्रदर्शित 'तमाशा' में पिता की भूमिका पाकिस्तान टेलीविजन के एक लोकप्रिय सितारे ने अदा की है। राजनीति तंगदिल होती जा रही है और मनोरंजन जगत फैलता जा रहा है।