प्रियंका चोपड़ा की वापसी का प्रभाव / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :24 अगस्त 2017
प्रियंका चोपड़ा कुछ दिनों के लिए मुंबई आई हैं। इस छुट्टी में भी उनकी प्राथमिकता 25 अभिनय प्रस्तावों में से किसी एक को चुनना है। इसके साथ ही अपनी निर्माण संस्था की नई फिल्म का भी शुभारंभ करना है। मराठी फिल्म 'सैराट' के हिंदी संस्करण के अधिकार करण जौहर ने खरीदे हैं और प्रस्तावित 25 फिल्मों में से एक फिल्म उनकी अपनी संस्था की भी है। करण जौहर के मिज़ाज़ में 'सैराट' जैसी यथार्थवादी फिल्म के लिए कोई जगह नहीं है परंतु वे इसका हिंदी संस्करण बनाने जा रहे हैं। इस तथ्य से हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि वे अपनी सितारा जड़ित फिल्में केवल बॉक्स ऑफिस सफलता की खातिर बनाते हैं और 'सैराट' का हिंदी संस्करण वे भीतरी छटपटाहट के कारण बना रहे हैं। 'सैराट' का निर्णय उन्हें प्रियंका चोपड़ा के मुंबइया फिल्म चयन के मामले में मदद कर सकता है। जैसे कुछ लोग धूम्रपान के आदी होते हैं वैसे ही करण जौहर फिल्म बनाने के आदी हैं परंतु कोई सर्वकालिक महान फिल्म की रचना उनका उद्देश्य नहीं है। उनका सिनेमा सुविधा का सिनेमा है।
करण जौहर के पिता यश जौहर ने उम्र की दोपहर के बाद विवाह किया था। उनका परिवार उन पर विवाह का दबाव बनाए रखता था और एक बार दिल्ली की एक कन्या उन्हें मिल गई परंतु उन्हें कन्या के साथ आई उसकी सहेली पसंद आई, जिससे उन्होंने विवाह किया। उनकी पत्नी का नाम हीरू है और वे बेहद मिलनकार एवं खुशमिज़ाज़ महिला हैं। यश जौहर भी बड़े दोस्ताना मिज़ाज़ के हातिमताई नुमा मददगार व्यक्ति थे। ज्ञातव्य है कि 'कुली' की शूटिंग में घायल अमिताभ बच्चन के लिए विदेश से आनन-फानन में दवाएं बुलाने का काम यश जौहर ने ही किया था। उनका एक सद्गुण यह था कि अगर आप उनसे एक बार भी मिले हों तो आपके हर जन्म दिन पर सबसे पहला बधाई संदेश यश जौहर का ही आएगा। यह उनकी व्यावहारिकता को रेखांकित करता है कि सफल फिल्म 'दोस्ताना' बनाने के बाद भी उन्होंने अपना रेडीमेड वस्त्रों का व्यवसाय जारी रखा।
करण जौहर दक्षिण मुंबई की एक संस्था में शिक्षित हुए। ज्ञातव्य है कि दक्षिण मुंबई में श्रेष्ठि वर्ग के लोग रहते हैं और कुछ इस तरह की भावना भी है कि दक्षिण मुंबई के लोग मुंबई के उपनगरों जैसे बांद्रा, खार, सांताक्रूज इत्यादि के रहवासियों से अधिक सुसंस्कृत है गोयाकि संस्कृति का भी क्षेत्रीयकरण किया गया है। संस्कार का ठेका हमेशा अमीर व्यक्ति ही खरीद पाता है। संभवत: संस्कार पुरुष केंद्रित समाज ने स्त्रियों को दबाए रखने के लिए गढ़े हैं। 'भाभीजी घर पर है' हास्यप्रधान टेलीविजन सीरियल में भी एक पात्र हमेशा संस्कार की बात करता है और दो पात्र जिनकी रचना मासूमियत एवं मूर्खता की सरहद पर हुई है, प्राय: संस्कार की परिभाषा पूछते हैं और दिए गए समाधान से पहले की अपेक्षा अधिक भ्रमित हो जाते हैं। सरकार के सारे समाधान भी ऐसे ही होते हैं कि आप अधिक दुविधाग्रस्त हो जाते हैं।
बहरहाल, प्रियंका चोपड़ा ने हॉलीवुड में अपना स्थान बनाया है और 'क्वांटिको' के साथ ही दो फिल्मों में अभिनय किया है। अब तो वे वहां श्रेष्ठि वर्ग के क्षेत्र में एक फ्लैट भी खरीद चुकी हैं। उन्होंने अपने उच्चारण में भी शुद्धता को कायम रखा है। वे दोनों ही भाषाओं के शब्दों का उच्चारण सही करती हैं। प्राय: अमेरिका में बसे भारतीय जब भारत आते हैं तो अपने उच्चारण द्वारा वे जान-बूझकर अपना अप्रवासी भारतीय होना जताते हैं। एक दौर में अनेक भारतीय फिल्मकार प्रवासी भारतीयों की रुचियों के नाम पर गैर-भारतीय मूर्खतापूर्ण फिल्में बनाने लगे थे। उस डॉलर सिनेमा ने हमारे देशज रुपय्या सिनेमा को हानि पहुंचाई थी। प्रवासी भारतीयों ने देश की राजनीति में भी दखल दिया है। मौजूदा हुकुमत के वे बड़े तरफदार हैं।
एक बार हमारे प्रधानमंत्री अमेरिका गए थे तो वहां उनके पोस्टरों से अधिक संख्या में प्रियंका चोपड़ा के पोस्टर लगे थे। कुछ भोले अमेरिकी नागरिक तो यह कहते हुए भी सुने गए कि प्रियंका चोपड़ा के देश का प्रधानमंत्री यहां दौरे पर आया है। बहरहाल, प्रियंका चोपड़ा जो भी कथा चुनेंगी उसके निर्माण में वे अपने मेहनताने के रूप में फिल्म के लाभ पर भागीदारी मांगेंगी। अभी तक यह अधिकार केवल नायकों तक समित था परंतु प्रियंका चोपड़ा इस क्षेत्र में अपना हक ले कर रहेंगी और उनका अनुसरण दीपिका पादुकोण भी करेंगी।