प्रियंका चोपड़ा जोनास और ‘मैट्रिक्स-4’ / जयप्रकाश चौकसे

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प्रियंका चोपड़ा जोनास और ‘मैट्रिक्स-4’
प्रकाशन तिथि : 24 दिसम्बर 2021


गौरतलब है कि प्रियंका चोपड़ा जोनास को हॉलीवुड में काम करते हुए 10 वर्ष बीत गए हैं। अब प्रियंका मैट्रिक्स की चौथी कड़ी में मुख्य पात्र अभिनीत करने जा रही हैं और इस फिल्म में उनके नायक कियानू रीव्स जैसे बड़े सितारे हैं। प्रियंका, अक्षय कुमार, करीना कपूर, परेश रावल तथा अमरीश पुरी के साथ अपने शुरुआती दौर में ‘ऐतराज’ नामक फिल्म में नकारात्मक भूमिका अभिनीत कर चुकी हैं। इस फिल्म में परेश रावल प्रियंका के बचाव पक्ष के वकील बने थे। मुकदमा हारने के बाद परेश रावल का संवाद है कि ‘21 मुकदमे जीतने के बाद वे पहली बार एक मुकदमा हारे हैं, क्योंकि उनका मुकाबला एक विवाहित स्त्री के खिलाफ था।’ फिल्म में विवाहिता पात्र अपने मंगलसूत्र की खातिर मुकदमा लड़ रही थी। ऐसी विवाहिता के खिलाफ जीतना नामुमकिन होता। यह तो सावित्री का देश है, जहां पत्नी मृत्यु को भी हराकर यमराज से अपने पति के प्राणों को बचा लाती है। इस तरह भारतीय संस्कार फिल्मों में रेखांकित किए जाते हैं। राज कपूर की ‘संगम’ में प्रस्तुत किया गया है कि भारतीय विवाहिता का जीवन तो इंद्रधनुष की तरह है, जो खेले तो तूफानों में और मिटे तो जैसे था ही नहीं। ‘मदर इंडिया’ में नायिका का पति अपने हाथ कट जाने के बाद पलायन कर जाता है। उसकी मृत देह नहीं मिली है, अत: पत्नी अपने मंगलसूत्र की रक्षा के लिए सारी दुनिया से लड़ने लगती है। इस फिल्म को ऑस्कर से इस आधार पर वंचित किया गया था क्योंकि अकादमी व जूरी के सदस्य यह समझ नहीं पाए कि एक भारतीय महिला उस महाजन से शादी करने से क्यों इंकार कर देती है, जो उसे सारी सुविधाएं देना चाहता है! और उसके नन्हे बच्चे का उत्तरदायित्व भी लेना चाहता है, जबकि पति पलायन कर चुका है? फिल्म का अविस्मरणीय दृश्य यह है कि बंद दरवाजे की कुंडी खोलने के लिए नायक उठता है और थोड़ी देर के बाद उसे याद आता है कि उसके तो हाथ ही कट चुके हैं। इस दशा को शारीरिक विज्ञान में फैंटम लिंब कहते हैं। इसमें मनुष्य का अवचेतन शरीर से काटे गए अंग को भी मौजूद ही समझता है। विकास भी इसी तरह का फैंटम लिंब है।

बहरहाल, मैट्रिक्स भी विज्ञान फंतासी है। प्राय: विज्ञान फंतासी फिल्मों में दार्शनिकता का स्पर्श होता है। बहरहाल, अपने संघर्ष के दिनों में प्रियंका चोपड़ा मध्य आय वर्ग की मुंबई की वर्सोवा नामक बस्ती में किराए के मकान में रहती थीं और आज वे मैनहटन के भव्य भवन की ऊपरी मंजिल पर रहती हैं। आलम यह है कि उनके अपार्टमेंट की खिड़की से पूरा मैनहटन देखा जा सकता है। वर्सोवा से मैनहटन तक की यात्रा, लंबी और संघर्षमय रही है। इस तरह की यात्रा, बिना किसी का सहारा लिए रस्सी पर चलने की तरह होती है। रस्सी पर चलते समय उसका एक साथी डमरू बजाता है। अगर वह डमरू ताल पर नहीं बजाए, तो उस रस्सी पर चलने वाला गिर पड़ता है। डमरू बजाने वाले की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है।

प्रियंका के पति जोनास उनसे उम्र में 8 वर्ष छोटे हैं। प्रेम तो सदिया लांघ लेता है। प्रेम मनुष्य को पंख प्रदान करता है। प्रेम में पड़ा अपंग व्यक्ति छलांग लगा सकता है और उड़ भी सकता है। जोनास का एक म्यूजिक बैंड है और उसमें वे प्रमुख गायक हैं। कभी-कभी, प्रियंका बैंड की कोरस गायिका हो जाती हैं। प्रेम का सुरताल शास्त्रीय संगीत नहीं होता। वह लोक गायन है। वह शास्त्रीय संगीत का प्रेरणा स्रोत है। नागपुर के लेखक मनोज रूपड़ा के उपन्यास ‘साज-बेसाज’ में समुद्र तट पर बैठा बूढ़ा व्यक्ति सेक्सोफोन बजाता है। दूर से देखने पर मनुष्य साज और सेक्सोफोन बजाने वाले में अंतर नहीं कर पाता। वादक और साज एकाकार हो जाते हैं। क्या प्रियंका में जोनास समाहित हो जाते हैं। माधुर्य के संसार में ध्वनि प्राणवान है। सृष्टि इसी माधुर्य के गिर्द घूमती रहती है। माधुर्य सृष्टि का केंद्र है