प्रीतम पशेमान क्यों हैं? / जयप्रकाश चौकसे

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प्रीतम पशेमान क्यों हैं?
प्रकाशन तिथि : 21 अगस्त 2013


वर्तमान दौर के सफलतम बयालीस वर्षीय संगीतकार प्रीतम आज अपनी 'बर्फी', 'ये जवानी है दीवानी' जैसी सफलताओं के बाद भी प्राय: दुखी रहते हैं। उन्होंने अपने करियर के एक दौर में निर्माता के आग्रह पर देसी-विदेशी धुनों की चोरी की है और उसका अपराधबोध उन्हें आज की प्रसन्नता का पूरा आनंद नहीं लेने देता। उनके पिता कलकत्ता में रेलवे में थे तथा माता स्कूल में पढ़ाती थीं। अत्यंत छोटे मकान में किसी तरह गुजर होती थी। बरसात में छत से पानी की बूंदें टपकती थीं और उन्हें नीचे बर्तन रखना पड़ता था। पुणे फिल्म संस्थान में ध्वनिबद्ध करने की शिक्षा ने उनका जीवन ही बदल दिया। उन्होंने दो वर्ष तक संघर्ष किया और विज्ञापन फिल्मों के लिए जिंगल बनाए। अपनी पहली सफलता के बाद वे अपना पुराना घर देखने कलकत्ता गए, जो मॉल बनाने के लिए तोड़ा जा चुका था। उस छोटे-से, बरसात में टपकती छत वाले मकान की स्मृति उनके अवचेतन में आज भी गहरी पैठी है। वहां न कोई बुल्डोजर चल सकता है और न ही कोई मॉल ही बन सकता है। यह व्यवस्था की मामूली कृपा नहीं है कि वह अवचेतन में बने घरौंदे नहीं तोड़ता। इसी कृपा के लिए जर्जर दीमक लगी व्यवस्था को नमन किया जा सकता है। हाल ही में आमिर खान दादा जेपी वासवानी के जन्मदिन पर उन्हें बधाई देने पहुंचे थे और उन्होंने अपने देश की हालत बदलने का उपाय दादा से पूछा तो उन्होंने कहा कि यह आसान काम है, इसके लिए मात्र पानी के दो जहाज चाहिए, एक में सारे नेताओं को और दूसरे में सारे धर्मों के ठेकेदारों को भर दो और भारत से दूर भेज दो।

बहरहाल, हमें प्रीतम को बधाई देनी चाहिए, जिन्होंने इतनी साफगोई से अपना जुर्म कबूल किया। अपराधबोध से ग्रसित व्यक्ति बहुत अच्छा आदमी है, क्योंकि अभी तक उसकी आत्मा व्यावसायिकता की दलदल में पूरी तरह नहीं डूबी है। अगर मनुष्य अपने अवचेतन में अत्यंत छोटा-सा छेद खुला छोड़ दे, जिसमें प्रायश्चित्त भीतर आ सके, तो उससे बड़ी आशाएं की जा सकती है। हिंदुस्तान के अधिकांश संगीतकारों ने अपने जीवन के किसी दौर में धुनें चुराई हैं और कोई भी बेदाग नहीं है, परंतु पहली बार एक संगीतकार ने स्वीकार किया है।

हमारे फिल्मकारों ने भी कथाएं चुराई हैं। आईएस जौहर पर 'नॉक ऑन वुड' के निर्माता ने मुकदमा दायर किया था, परंतु फिल्म में थोड़ी-सी आय की बात जानकर उन्हें क्षमा कर दिया था। यह भी सच है कि हमारे संगीतकारों ने किसी विदेशी धुन से प्रेरणा लेकर उसका सर्वथा नया भारतीय संस्करण प्रस्तुत किया है और मूल रचनाकार भी अब अपनी ही धुन नहीं पहचान पाता।

दरअसल, आज संगीत में जिस सिंथेसिस को आधुनिक कहा जा रहा है, वह भारतीय फिल्म संगीत में हमेशा कायम रहा है। यह अपराधबोध अनेक बार मिथ्या भी होता है, परंतु झूठे अपराधबोध का भी प्रायश्चित्त सच्चा होता है, जैसे काल्पनिक प्रेम-प्रसंग का विरह तो सच्चा ही होता है। हस्तिनापुर के महाराज पांडु ने अपनी पत्नी के आग्रह पर जिस हिरण का आखेट किया, वे ऋषि कण्व थे, परंतु गौरतलब यह है कि ऋषि ही हिरण वेश में क्यों विचरण कर रहे थे? इस घटना से जुड़े एक श्राप ने हस्तिनापुर का इतिहास बदल दिया।

ऋषि कपूर के विवाह अवसर पर आमंत्रण पाकर नरगिस वर्षों बाद राज कपूर के घर गईं तो उन्होंने श्रीमती कृष्णा राज कपूर से कहा कि आज माता होने पर वे श्रीमती कृष्णा के उस दर्द को समझ सकती हैं, जो उन्होंने उन्हें दिया है। कृष्णा राज कपूर ने नरगिस से कहा कि उसे उस मिथ्या अपराधबोध से मुक्त होना चाहिए, क्योंकि वह न होतीं तो कोई और होता, क्योंकि उनके पति का मिजाज ही आशिकाना है, शायराना है। महान स्त्रियां किसी और मिट्टी से बनी होती हैं।